किसानो के लिए MSP की शुरुआत करने वाले पहले बादशाह है अल्लौद्दीन खिलजी -पंडित वी. एस. कुमार


1296 में जब ये बादशाह बने, तब भारतीय अर्थ-व्यवस्था टूटी फूटी पड़ी थी। शाही खजाना बिल्कुल खाली था, फ़ौज रखने के पैसे नहीं थे। भारत पर तातारी लोग हमले का मंसूबा बना रहे थे। महंगाई बहुत बढ़ गई थी।
आज हम जिसे किसानों के लिए कम से कम सहारा क़ीमत या minimum support price (MSP) कहते हैं, उसको पूरी दुनिया में सबसे पहले सोचने वाला और लागू करनेवाला बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी ही था। आज की MSP अनाज, तिलहन, दलहन मिलाकर पूरे देश की कुल 21 फ़सलों पर है, और दाल,चावल, गेहूँ समेत सिर्फ़ 6 फ़ीसद किसानों को यह दस्तयाब है, और इनमें से किसी भी जीन्स की MSP क़ीमत भी हमारे किसानों को नहीं मिलती है।
 
अल्लाउद्दीन खिलजी के वक़्त शायद ही कोई ऐसी चीज़ थी, जिसकी क़ीमत सरकारी निर्धारित ना हो। मसलन, गेहूँ, चना, जौ, चावल, दाल ये सब तो छोड़ें, धनिए और हरे पौदीने की भी क़ीमत तय थी। गोबर के ऊपलों (पाथियों) की और रेशमी गाउन से लेकर सूती रूमाल तक की MSP थी। हलवे और मिठाइयों की MSP थी। गाय, बैल, भैंस, ऊंट, घोड़े,गधे और खच्चर की MSP थी।


भारत में मंडी सिस्टम अल्लाउद्दीन खिलजी ने लागू किया। इनके खुलने और बंद होने का वक़्त तय था। एक निश्चित और निर्धारित मुनाफ़े के ऊपर कुछ भी बेचना मना था। घटतौली करने या ज्यादा क़ीमत वसूलने वालों और जमाखोरों के सरे-बाज़ार नाक और कान काटे जाते थे। सरकारी अहलकार किसानों का अनाज तय क़ीमत पर खेत से ही उठाते थे, और बाज़ार में दुकानदारों को transport खर्चे पर मुहैया करवाते थे। यह महकमा अल्लाउद्दीन खिलजी के खुद के पास ही था और बादशाह इन दुकानदारों की बेईमानी पकड़ने के अपने महकमे के अहलकारों की रिपोर्ट के अलावा खुद ही बच्चों को कुछ पैसे देकर खरीददारी करने भेजता था। बच्चों से भी बेईमानी करने की किसी सेठ की हिम्मत नहीं होती थी ।

इन सब क़दमों से महंगाई बहुत कम हो गई, लोग खुशहाल हुए, और जिसको आज के अंग्रेजीदां GDP कहते हैं, वह इतनी बढ़ी कि भारत में पहली बार 4 लाख 75 हज़ार फ़ौजियों की विशाल फ़ौज खड़ी हो गई, और वे फ़ौजी भी पूरी दुनिया में सब फ़ौज से ज्यादा सुविधाओं के साथ और, ज्यादा खुशहाली के साथ।
ज़मीन सुधार इनका दूसरा बड़ा काम था, उस पर फिर कभी चर्चा करेंगे।
पर कोई आज की जन-कल्याणकारी सरकारों तक इनकी लोकभलाई के बीस साला राज की कहानी पहुंचाओ।।
और, यह 700 साल से भी पुरानी बात है।
– बलराज कटारिया
Via- पंडित वी. एस. कुमार जी

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