कल की ही बात है। इसी लखनऊ शहर के चिनहट इलाके के रहने वाले पुत्ती लाल के बेटे पर आवारा कुत्तों ने एक साथ हमला कर उसे बुरी तरह घायल कर दिया था। खून से बुरी तरह लथपथ अपने बच्चे को लेकर वह लोहिया, ट्रामा और सिविल अस्पताल के चक्कर लगाता रहा। हर जगह गंभीर हालत में जख्मी बच्चे को भर्ती करने की बजाय उसे एक के बाद दूसरे अस्पताल भेजा जाता रहा। इस बीच उसकी गंभीर होती जा रही हालत को देखकर बमुश्किल बलरामपुर अस्पताल में उसे भर्ती किया जा सका।
इससे भी कहीं ज्यादा कडुवा सच यह है कि लखनऊ के इन बडे सरकारी अस्पतालों में मरीजों की मौत के बाद भी उनके तीमारदारों को बख्शा नहीं जा रहा है। इन अस्पतालों के पोस्ट मार्टम हाउस अवैध वसूली के अड्डा बन गये है। यहां लाशों की पैकिंग या उन्हें फ्रीजर में रखने आदि के नाम पर प्रति लाश तीन सौ से लेकर पांच सौ रु की जबरन वसूली की जा रही है। सिविल अस्पताल में लाश के पंचनामा के समय उसकी सिलाई के लिये भी मनमानी रकम वसूली जाती है। इसकी शिकायत करने पर जांच के नाम पर सिर्फ खनापूरी कर सारे मामले को रफादफा कर दिया जाता है।
प्रदेश के बहराइच जिला के रहने वाले शिवदत्त कीे माने, तो गंभीर रूप से बीमार अपने बच्चे के इलाज के लिये उब उसने लखनऊ के सिविल अस्पताल में उसे भर्ती कराया, तो उससे हर कदम पर पैसे की ही मांग की जाती रही है। मसलन, बच्चे को इंजैक्शन लगाने के लिये बीस रु, उसे बिस्तर देने के लिये 30 रु और भर्ती करने के लिये सौ रु। ऐसे ही और भी बहुत कुछ।
राजधानी के सरकारी महिला अस्पतालों का हाल तो बहुत ही बुरा है। इनमें आवारा कुत्ते वार्डों के अंदर तक घूमते रहते हैं। ये इन अस्पतालों में नवजात शिशुओं को ये अपना शिकार बना कर खींच ले जाते हैं। अब तक इस तरह की कई घटनाएं हो गयी हैं। इन अस्पतालों में बच्चा चुराने वाला गिरोह भी मौका पाते ही अपना काम करता रहता है। यहां के क्वीन मेरी अस्पताल की ओपीडी में रोजाना लगभग पांच सौ गर्भवती महिलाएं इलाज के लिये आती हैं। इनमें से लगभग तीन दर्जन महिलाओं का प्रसव होता है। इनमें से अधिकांश जनरल वार्ड में रहती हैं, जहां आवारा कुत्ते बेधडक होकर धूमते रहते हैं। ये मौका पाते ही नवजात शिशुओं को धसीट ले जाते हैं।
इस संबंध में आरोपी हेल्थ महिला सुपरवाइजर का कहना रहा है कि बच्चा मरा पैदा हो या जिंदा। उसे इससे मतलब नहीं है। उसका काम गर्भवती महिला का प्रसव कराना होता है। इसके बाद जो भी हो, उसमें उसकी जिम्मेदारी नहीं। यही क्या कम है कि बच्चा भले ही मरा पैदा हुआ हो, जच्चा की तो जान बच ही गयी है। इस जान बचने का तीन सौ रु तो उसे देना ही पडेगा। इस मामले की शिकायत बस्ती के सीएमओ से भी की गयी। लेकिन, मामला रफादफा कर दिया गया।
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