दुनिया को सबसे पहला और अच्छा लोकतंत्र पैगम्बर ह.मुहम्मद ने दिया है -राजीव शर्मा

सोशल डायरी ब्यूरो
इसे उन लोगों की बदकिस्मती कहूं या कुछ और, मैंने जब भी वोट डाला, मेरा उम्मीदवार चुनाव हार गया। एकाध बार किसी के भाग्य ने जोर मारा हो तो बात और है, पर ज्यादातर चुनावों में मैंने जिसे पसंद किया, उसे जनता ने पसंद नहीं किया। कई बार ऐसा भी हुआ कि मेरा पसंदीदा उम्मीदवार जमानत जब्त करवा बैठा। 

यह देखकर मेरा बहुत दिल रोया, मगर मैंने हिम्मत नहीं हारी। इन सबके बावजूद लोकतंत्र के प्रति मेरी आस्था न तो कम हुई और न खत्म। अगर राजशाही, तानाशाही और लोकतंत्र में से किसी एक का चुनाव करना हो तो मैं हजार बार लोकतंत्र को ही चुनूंगा। अब तक मैं ब्रिटेन और कुछ यूरोपीय देशों के लोकतंत्र को सबसे बेहतर मानता आया हूं। 


दुनिया को 1947 में ही मालूम हो गया था कि भारत में लोकतंत्र आ गया है लेकिन मुझे बहुत बाद में जाकर खबर हुई। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि मेरा जन्म भारत की आजादी के करीब चालीस बाद हुआ।

लोकतंत्र के बारे में मुझे सबसे पहले मेरे सहपाठी कैलास ने बताया जो स्कूल की छुट्टी के बाद आटा चक्की चलाया करता था। उसे और मुझे वोट से कोई सरोकार नहीं था। न तो हमारा मतदाता सूची में नाम था और न ही वोट डालने की हमारी उम्र थी। तब हम बच्चे ही थे। 

जब चुनाव आते तो हमारे लिए सबसे खास आकर्षण रंग-बिरंगी टोपियां, हवा में शान से लहराने वाले झंडे और जीप की सवारी थी। ये सब चीजें किस पार्टी से होनी चाहिए, इससे हमें कोई मतलब नहीं था। हम भाजपा की टोपी पहनते, कांग्रेस का झंडा उठाते, कम्यूनिस्ट पार्टी की जय-जयकार करते और किसी निर्दलीय की जीप में सैर करते। हमारे लिए लोकतंत्र का मतलब सिर्फ यही था।


मुहम्मद (सल्ल.) पैगम्बर थे। उन्होंने सीधे-सीधे लोकतंत्र के बारे में कुछ नहीं कहा, पर जैसी जिंदगी जीकर दिखाई, जैसे सिद्धांत बनाए, उसे मैं दुनिया का सबसे महान लोकतंत्र कहना चाहूंगा। 

मुहम्मद (सल्ल.) आधुनिक विश्व के पहले नेता थे जिन्होंने अमीर-गरीब, राजा-रंक, ताकतवर-कमजोर, काले-गोरे को एक छत और एक पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया और नमाज पढ़ना सिखाया।

किसी किस्म का कोई भेदभाव नहीं। कोई बड़ा नहीं लेकिन कोई छोटा भी नहीं। इससे पहले किसी मनुष्य ने ऐसे दृश्य की कल्पना तक नहीं की होगी। लोकतंत्र कैसा होना चाहिए, यह थी उसकी एक झलक। 

मुहम्मद (सल्ल.) जितने महान पैगम्बर थे, उनका जीवन उतना ही सादा था। न कोई दिखावा, न भारी-भरकम तथा बहुत महंगे कपड़ों का बनावटीपन। बहुत ही सादगीपसंद। अक्सर तो कपड़ों पर पैबंद लगे होते। 


जब उहुद का युद्ध हुआ तो जनता से पूछा- बोलो, क्या राय है? उस युद्ध में स्वयं (सल्ल.) घायल भी हुए लेकिन साथियों का हौसला बढ़ाने के लिए दुश्मन की सेना को बहुत दूर तक खदेड़ कर आए। मायूसी, निराशा और भटकाव तो हर कोई दे सकता है, पर महान नेता वही होता है जो मुश्किल हालात में भी उम्मीद की रोशनी को बुझने न दे। मुहम्मद (सल्ल.) ऐसे ही महान नेता थे। 

अगर कोई मुझसे लोकतंत्र की सबसे अच्छी परिभाषा पूछेगा तो मैं अब्राहम लिंकन को याद करूंगा। अगर कोई लोकतंत्र के सबसे महान नेता का नाम पूछेगा तो मैं हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का नाम लिख दूंगा।
– राजीव शर्मा (कोलसिया) –
+918949380771
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