पेश है उनका इस्लामिक सफर:
अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाहि वबराकातुह,
“मैं एक बहुत ही धार्मिक हिन्दू परिवार में पैदा हुई और मैं भी उस समय हिन्दू धर्म को ही मानती थी। मुझे हिन्दू धर्म की कई बातों पर हमेशा से शक था पर मैंने कभी उन पर ज़्यादा गौर नहीं किया। मैं ईसाई, बौद्ध, जैन धर्म के बारे में जानती थी और मेरे इन सभी धर्मों के दोस्त भी थे, पर मैंने कभी इस्लाम को जानने की कोशिश नहीं की थी। क्यूंकि मुझे हमेशा से ही बताया गया और मुझे ऐसा लगता भी था की इस्लाम एक कट्टरपंथ और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला धर्म है।
और उनकी इन् बातों ने मेरे दिमाग में कई सवाल पैदा कर दिए…………………।
आगे चल कर एक ऐसा समय आया जब मेरे पिता ने मूर्तियों को पूजना छोड़ दिया और वह एक गुरु को मानने लगे। मैंने सोचा कि ये गलत है, हम एक इंसान को ही सब कुछ मानने लगे। मैं यह सोचती थी कि जिसने सब को बनाया है हमको सिर्फ और सिर्फ उसे ही पूजना चाहिए। मुझे ये सब बिलकुल गलत लगता था।
और मैंने ये तय किया कि मुझको एक सही रास्ता ढूंढ़ना पड़ेगा जिस पर मैं चल सकूँ……….।
मैंने काफी धर्म को जानने की कोशिश की, पर मुझे कुछ समझ नहीं आया। फिर मैंने इस्लाम को जानना चाहा जिसमें मेरे एक दोस्त ने मेरी काफी मदद की। मैंने इस्लाम से जुडी वीडियो, ब्लॉग, आर्टिकल, और क़ुरआन पढ़ना, और साथ में रोज़े भी रहा करती थी। फिर मैंने एक दिन इस्लाम को क़ुबूल करने का कर ही लिया और अल्हम्दुलिल्लाह मैंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया।
मेरे परिवार ने, मेरे दोस्तों ने सभी ने मिल कर मुझको इस्लाम के रास्ते पर जाने से रोकने के लिए बहुत कोशिश की, पर मैंने इस्लाम का साथ नहीं छोड़ा। एक ऐसा समय आया जब मैं बिलकुल टूट गई थी पर इस्लाम ने मुझे एक नई ज़िन्दगी दी । जब लोग इस्लाम के खिलाफ बोलते तो मेरा इस्लाम पर भरोसा और भी बढ़ जाता, क्यूंकि कहते हैं न की ‘बुराई के साथ तो सब होते हैं पर अच्छाई के साथ कोई नहीं होता है।’
आज मैं हर दिन कोशिश करती हूँ कि मैं एक अच्छी से अच्छी मुसलमान बन सकूँ और ये ही मेरा लक्ष्य है। मैं सभी से यह कहना चाहती हूँ की एक ईश्वर को मानें, उसकी पूजा करें, उसका आदर करें और हमेशा ही सच्चे और सही रास्ते पर चलते रहें। अल्लाह माहिया साहिबा को दीन पर क़ायम रखे और उनको दुनिया आख़िरत में हर परेशानी से महफूज़ रखे। उन्हें दुनिया और आख़िरत में बेहतरीन अज्र से नवाज़े………….।