बर्मा से एक मज़लूम बेटी का ख़त…मुस्लिम राष्ट्रों के हुक्मरानों के नाम

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मैं ये ख़त बर्मा से लिख रही हूँ ,
ये वही बर्मा है जहां अब्बासी ख़लीफ़ा के दौर में इस्लाम पंहुचा. मैं ने अपने बुजुर्गों से सुना जब राजा दाहिर के गुंडों की क़ैद में श्रीलंका से एक औरत ने ख़त लिखा था तो मुहम्मद बिन क़ासिम ने हिंद व सिंध को रौंद डाला था. आप सभी इस्लामिक मुमालिक हुक्मरान जो बड़ी फ़ौजे रखतें हैं जो मॉर्डन हथियारों से लैस हैं. आख़िर किस लिए सिर्फ़ दुनियां में आप को ताकतवर दिखाने के लिए …

यहां आप की बहन, बेटियां की इज़्ज़त को रौंदा जा रहा है बच्चों को बेदर्दी से ज़िब्ह किया जा रहा हैं. बूढों और नौजवानों को अज़ीयत देकर बेदर्दी से क़त्ल किया जा रहा है और पूरी दुनियां ख़ामोश है अल्लाह भी मज़्लूमो की मदद करता है, तो ज़रिया किसी न किसी को बनाता है. जब अब्रहा लश्कर के साथ बड़े ग़ुरूर से क़ाबा को ढाने चला चला था तो अल्लाह ने उसकी तबाही का ज़रिया अबाबील को बनाया था .. मैं ये ख़त ज़ख़्मी हालत में लिख रही हूँ मेरे सामने मेरी बहन की सर कटी लाश आप सब से सवाल कर रही है और मेरे भाई और दादा की गर्दन सामने वाले चिनारों पर लटकी है और आंखे उनकी खुली आप का इंतज़ार कर रही हैं । 
मेरे पास भी चंद अल्फाज़ो के सिवा कुछ नहीं बचा आप को तोहफ़े में देने के लिए. ज़िन्दगी के आख़री वक़्त में आप को ये ख़त लिख रही हूँ मुझे यक़ीन है जैसे ही आप के पास ये ख़त पंहुचेगा आप अपनी फ़ौजों को हरकत ज़रूर दोगे. क्योंकि मैं जानती हूँ आप के अंदर भी वही ख़ून है जो मोहम्मद बिन क़ासिम के जिस्म के अंदर था. क्योंकि आप में भी वही दिलेरी और हिम्मत है जो सुलतान सलाहुद्दीन अय्यूबी के अंदर थी. क्योंकि आप ने ख़ालिद बिन वलीद की बहादुरी के किस्सों से अपने फ़ौजों का जोश कई बार बढ़ाया होगा वक़्त बहुत कम बचा है।
आख़िर में यह कहना चाहूंगी …. मेरी आख़री ख्वाहिश ये है जब आप की फ़ौज बर्मा पहुचे तो मेरी क़ब्र पर एक इस्लामिक झंडा नसब ज़रूर कीजियेगा. जिसपर लिखा हो ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मदुर रसूलुल्लाह और हो सके तो यहां के बचे हुए लोगो को अपने यहां पनाह ज़रूर देदीजियेगा. क्यों की सुना है आप सब बड़े सख़ी हैं .. मैं ये ख़त हवा के हवाले कर रही हूँ शायद आप तक पहुचं जाए ..
आप सब की एक बदनसीब बेटी और बहन
एक ख़्याली खातून 
 
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