सच में ईश्वर का भेजा फरिश्ता ही कह सकते है उन्हें। यहाँ फेसबुक में डॉ कफील अहमद के बारे में पढ़ पढ़कर बार -बार आँखे डबडबा रही है कि इस इंसान ने अकेले वहां बच्चों की जान बचाने कैसे संघर्ष किया। ऐसे लोगों को मेरी उम्र लग जाये। यहाँ लोग देश बनने के बाद से रोज मुसलमानों का देशभक्ति टेस्ट करते हैं। लेकिन कई मुस्लिम समय -समय पर अपनी जान देकर या कुर्बानी देकर बताया है कि उनका अल्लाह उन्हें हिन्दू -मुसलमान में फर्क करना नहीं सिखाया।
उनको 8 सितंबर, 2006 में मालेगांव के मुशवरत चौक पर स्थित हमिदिया मस्जिद के पास हुए बम ब्लास्ट के सिलसिले में जेल भेजा गया था। मालेगांव बम ब्लास्ट के आरोप में 9 मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया गया था। डॉ. फारसी भी इनमें से एक थे। बाद में एनआईए की जांच में पता चला कि ब्लास्ट तो दरअसल एक हिंदू चरमपंथी संगठन ने करवाया था। बाद में वे बेगुनाह साबित हुए।
– Vikram Singh Chauhan