वर्णव्यवस्था : सिर पर या हाथ में चप्पल नहीं लेने पर होता है जुर्माना -रितु सिंह

Loading…


जाति भारतीय समाज की एक ऐसी बीमारी है जो हजारों सालों से देश को खोखला कर रही है। लेकिन इस बीमारी को आज भी बहुत गंभीर नहीं लिया जाता, बल्कि उसे परम्परा के नाम पर लगभग नकार दिया जाता है। देश के हर कोने में जाति की समस्या है लेकिन कुछ राज्यों में जाति आधारित शोषण और उसका स्वरूप आज भी वैसा ही है।

अछूतों के लिए आज भी हैं अलग दूकानें
राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में कई जिलों में आज भी अनुसूचित जाति के लोगों के लिए अलग से दूकानें हैं। नाई उनके बाल नहीं काटते, कुम्हार बर्तन नहीं देते, पीने के पानी की अगर बात करें तो लगभग पूरे ही देश में उन्हें अलग से पीने का पानी लेना पड़ता है।

गृह मंत्रालय के 2016 के आंकड़ों के अनुसार, 2014 में देश भर में अनुसूचित जाति लोगों के उत्पीड़न के 47,000 मामले दर्ज हुए, जबकि 2015 में 54,000 के क़रीब मामले दर्ज हुए हैं। यानी एक साल में 7000 घटनाएं बढ़ीं हैं। इसी तरह 2014 में गुजरात में 1100 अत्याचार के मामले रजिस्टर किए गए थे, जो 2015 में बढ़कर 6655 हो गए।

इस प्रकार अकेले गुजरात में पिछले साल में उत्पीड़न में पाँच गुना वृद्धि हुई है। न्यायालय में सबसे खराब स्थिति गुजरात की है जहाँ दोष सिद्धि की दर 2.9 फीसदी है। जबकि देश में अनुसूचित जाति के लोगों पर होने वाले अत्‍याचार से जुड़े मामलों में दोष सिद्धि की दर 22 फीसदी रिकॉर्ड की गई है।


सिर पर या हाथ में चप्पल नहीं लेने पर होता है जुर्माना
शमशानघाट भी अलग हैं, और सवर्णों के घर के सामने से अनुसूचित जाति के लोगों को नंगे पैर गुजरते पड़ता है। उन्हें अपनी चप्पलें उतारकर अपने सिर या हाथ में लेनी पड़ती हैं। अगर कोई ऐसा नहीं करता तो उसपर जुर्माना लगाया जाता है। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के एक बड़े इलाके में यह प्रथा अभी तक क़ायम है।
 
सवर्ण महिलाएँ जाति के मामले में लाभी हैं
समाज में महिलाओं के साथ भी दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है और आज भी मौजूद है। लेकिन अगर बात करें अछूत महिलाओं की तो वो व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर हैं। सवर्ण महिलाएँ जाति के मामले में लाभी हैं। मर्द उनपर अत्याचार तो करते हैं जब बात जाति की आती है तो उन्हें सवर्ण होने का लाभ हमेशा मिलता है।


मर्द अस्मिता का नहीं जातिवाद का है मामला
मर्दवादी समाज में सवर्ण मर्दों द्वारा प्रताड़ित सवर्ण महिला अक्सर अछूत मर्दों को खुद से नीचा ही समझती हैं। और यहाँ सारा मामला जाति का आता है। सवर्णों के घर के सामने से गुजरने पर अछूत मर्दों और अछूत महिलाओं दोनों को चप्पल उतारनी पड़ती हैं, जबकि अछूत महिलाओं को अछूत मर्दों के सामने भी चप्पल उतारनी पड़ती हैं। कुछ लोग इसे सिर्फ मर्द अस्मिता से जोड़कर देखते हैं जो कि सच नहीं है। अगर यह सिर्फ लिंग-भेद का मामला होता तो सवर्ण महिला को भी अछूत मर्दों के सामने नंगे पैर आना पड़ता। मगर ऐसा कोई उदाहरण देखने में नहीं आता ? दूसरी तरफ अछूत मर्दों को भी सवर्णों के घर के सामने से गुजरने पर चप्पल नहीं उतारनी पड़ती अगर यह मामला सिर्फ मर्द अस्मिता का होता।

जातिवाद और मर्दवाद दोनों तरह के शोषण मौजूद हैं
जब अछूत पुरुष सवर्ण पुरुषों के सामने चप्पल नहीं पहन सकते तो वह जातिगत मामला है और जब अछूत महिला अछूत पुरुष के सामने चप्पल नहीं पहन सकती तब वह मर्दवाद है जो कि असल में जातिवादी सवर्ण समाज से यहाँ पर आया है।यहाँ पर यह स्वतः स्फूर्त नहीं है। हालाँकि यहाँ पर जातिवाद और मर्दवाद दोनों तरह के शोषण मौजूद हैं। सवर्ण महिलाओं का शोषण सिर्फ सवर्ण पुरुषों द्वारा होता है जबकि अछूत महिलाएँ तीहरी मार झेलती हैं। अपने घर में पुरूष की, सवर्ण मर्द की और समाज में जाति की। यह बहुत बड़ा फ़र्क़ है जिसे समझना बहुत जरूरी है।

मनुस्मृति के नियम आज भी कायम
सवर्ण पुरूषों के लिए अछूत महिलाएँ हमेशा से ज्यादा प्राप्य हैं, जबकि इसका उलटा वर्जित है। मनुस्मृति में तो वर्ण के आधार पर सजा तय की गई हैं जिसमें सबसे कठोर सजा अछूत मर्द के लिए है। जिसका पालन देश के कई हिस्सों और कई समाजों में आज तक किया जा रहा है।

जब कोई अछूत पुरूष किसी सवर्ण महिला से प्यार करता है और शादी करता है तो उसको मार दिया जाता है। और कई मामलों में तो सजा इतनी भयानक होती है जो आदमी को एकदम हिला देती है। मनुस्मृति में जिस तरह की सजा तय है उसी तरह से उसको सजा दी जाती है ताकि सम्पूर्ण समाज को डराया जा सके।

ज़ाहिर है कि यहाँ अहम् मुद्दा जातिवाद/वर्णवाद है जिसके अंदर मर्दवाद फलता-फूलता है।
(लेखिका- रितु सिंह)

किसी भी तरह की अतिवादिता के ख़िलाफ़ और सहज सामाजिकता के पक्ष में


CITY TIMES

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *