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गोरखपुर हादसे के बाद योगी सरकार ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज के NICU प्रभारी डॉ कफील अहमद को इस पद से हटा दिया है। वहीं अब डॉक्टर महेश शर्मा को एनआईसीयू का प्रमुख बनाया गया है। दरअसल इस हादसे के बाद आज यूपी के सीएम अस्पताल का जायजा लेने पहुंचे थे। जहाँ उन्होंने मीडिया को ये सलाह दी की इस मामले में फेक रिपोर्टिंग नही, वास्तविक रिपोर्टिंग कीजिये। दरअसल गुरुवार की रात करीब दो बजे डॉक्टर कफील को अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी होने की सूचना मिली। इस पूरी घटना में इंसेफेलाइटिस के विशेषज्ञ बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर कफील खान ने बच्चों को बचाने की जोरदार कोशिशें की। वह कर्मचारी को लेकर बाईक से एसएसबी के डीआईजी के पास गए। वहां डीआईजी एसएसबी ने तत्काल उन्हें 10 ऑक्सीजन सिलेंडर दे दिए। पूरे वक्त डॉ मरीजों के पास इधर से उधर दौड़ते रहे। वहां मौजूद लोगों ने डॉक्टर के कोशिसों की काफी प्रशंसा की। लेकिन अभी भी इन्सफेलाइटिस वार्ड में मासूम बच्चों की मौत का सिलसिला नहीं थम रहा है। वार्ड में लगातार बच्चों की मौत हो रही है। कल रात केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल के दौरे के कुछ मिनट पहले एक नवजात बच्चे की मौत हुई है जिसके बाद आज सुबह भी एक बच्चे के मौत की खबर है। बताया जा रहा है कि मरने वालों की संख्या अब 70 के पार चली गई है।
गोरखपुर : प्राचार्य की पत्नी पूर्णिमा शुक्ला चलाती थी मेडिकल कॉलेज की सत्ता
ऑक्सिजन की कमी से हुई मौतों के बाद सुर्खियों में आये बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राजिव मिश्र की पत्नी डॉ. पूर्णिमा शुक्ला ही दरअसल कॉलेज की सत्ता चलाती थी. उनकी दखलंदाजी से मेडिकल कॉलेज के सभी अधिकारी और कर्मचारी त्रस्त थे. लेकिन मैडम के रुतबे से डरे सहमे लोगों ने कभी उनका विरोध करने की जुर्रत नहीं की. यह आरोप है हाल तक मेडिकल कॉलेज में प्रमुख चिकित्सा अधिकारी की जिम्मेदारी सँभालने वाले डॉ. ए.के. श्रीवास्तव का. उनके मुताबिक़ मैडम के बारे में चर्चाएँ प्राचार्य द्वारा कार्यभार संभालने के बाद. से ही शुरू हो गयी थी. ट्रांसफर पोस्टिंग व खरीद जैसे मामलो में उनकी दखलंदाजी बढ़ने पर लोगो में असंतोष बढ़ने लगा. लेकिन कोई विरोध करने की स्थिति में नहीं था.
जागरण में छपी खबर के अबुसार, श्रीवास्तव का कहना है की हाल में मैडम के बारे में चर्चाएं तब ज्यादा शुरू हुई जब लिक्विड ऑक्सिजन सप्लाई करने वाली कंपनी के एक प्रतिनिधि ने आरोप लगाया की भुगतान के लिए लम्बे समय तक प्राचार्य के घर के चक्कर लगाने पर भी उसका काम नहीं बना. कॉलेज के कई जिम्मेदार कर्मचारी तो मैडम के नाम से कांपते है. जबतक मैडम से हरी झंडी नहीं मिल जाती थी कोई फाइल आगे नहीं बढ़ पाती. मैडम ने बादमे तो यहाँ तक कह दिया की,बगैर उनकी अनुमति के अस्पताल के स्वीपर तक का भी तबादला नहीं होगा. श्रीवास्तव के अनुसार ऑक्सिजन, दवाओं व अन्य जरुरी सामान सप्लाई करने वाली कंपनियों को भुगतान मैडम की मर्जी से ही होता था. हाल यह था की, वह हर छोटे बड़े कर्मचारी को खुद फोन करके आदेश देती थी.
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