अल्लाह का अस्तित्व और ‘कवाकॅ लेबोनेन’ विज्ञानवादी, तर्कवादी और अक्ल वालो के लिए स्पेशल

दुनिया में हर किस्म के लोग होते है. खुदकी बढ़ाई करने वाले, खुदको श्रेष्ठ साबित करने वाले भी होते है. और ऐसे लोगो में एक ख़ास बात होती है किसीने इनके विरोध में कोई सवाल पूछा या उनके झूठ की पोल खुल जाए ऐसे विषय पर बात की तब यह लोग उस विषय को छोड़कर अजीबोगरीब बाते बकते है. और खुद ऐसे सवाल करने लगते है जिससे उनके विषय पर पूछे गए सवालों का कोई भी संबंध ना हो. और किसी तरह अपनी बात मनवाने की कोशिस में लगे होते है. कुछ वैज्ञानिकों ने तो आसानी से कह दिया की किसी गॉड या अल्लाह का कोई अस्तिव नहीं है, गॉड के बारे में तो मुझे पता नहीं है लेकिन मैं मानता हूँ की अल्लाह का अस्तित्व है. अगर इन वैज्ञानिकों को साबित करना है की कोई अल्लाह का अस्तित्व नहीं है तो सिर्फ मेरे एक छोटे से सवाल का जवाब दे.
अल्लाह का अस्तित्व नहीं है यह दुनिया *कवाकॅ लेबोनेन* से बनी है – वज्ञानिक
तब मेरा सवाल है की, तो फिर *कवाकॅ लेबोनेन* का निर्माण किसने किया ? कौन है इन कणों का निर्माता ? वैज्ञानिक या उनके पिताजी ?
मेरे इस सवाल को पढने वाले लाखो लोग भी सिर्फ मेरे इसी सवाल का जवाब दे जो यह मानते है की अल्लाह का अस्तित्व नहीं है. बाकी बातो से मुझे कुछ लेना देना नहीं है.
मैं कुछ उदाहरण देना चाहूँगा….

सभी लोग का कहना है और मानते है की टेलीफोन की खोज ग्राहम बेल ने की, अगर मैं कहूंगा की नहीं टेलीफोन का निर्माण पहले अलाह ने किया और उसी की मदत से ग्राहम बेल ने टेलिफोन का निर्माण किया. तब जाहिर है लोग मुझपर हँसेंगे….

तब मुझे इस बात का खुलासा करना पडेगा. क्यूंकि जो बात मेरे दिमाग में चल रही है वह बात सबके दिमाग में चल रही हो यह मुमकिन नहीं. वैसेही इन वैज्ञानिकों ने भी खुलासा करना चाहिए की *कवाकॅ लेबोनेन* निर्माण किसने किया क्या *कवाकॅ लेबोनेन* का निर्माण इन वैज्ञानिकों ने किया या फिर इनके बाप दादा ने ?

कुछ नहीं इससे पहले ऐसे कई दावे किये गए जो झूठ साबित हुए. वैज्ञानिक तिगातात तेजासन जो चमड़ी (स्कीन) के वैज्ञानिक थे उन्होंने भी अल्लाह के अस्तित्व को नकारा था. और उसके कुछ साल बाद उन्होंने इस्लाम कुबूल किया था. क्यूंकि उन्होंने कुरआन का अध्ययन किया तब उन्हें पता चला की उन्होंने कोई नई खोज नहीं की कुरआन में इस खोज का जिक्र 14 सौ साल पहले ही हो चुका था. यह बात को जानने के बाद उन्होंने इस्लाम कुबूल किया था. ऐसे कई वैज्ञानिक है जिन्होंने इस्लाम कुबूल किया और ऐसे कई वैज्ञानिक है जिन्होंने कुरआन को उस शक्ति का निर्माण बताया जिसने यह ब्रम्हांड को बनाया.

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जो लोग मानते है की किसी अल्लाह का कोई अस्तित्व नहीं है उन्ही से जब पूछा जाए की बताओ आजसे 15 सौ साल पहले ऐसी कोई सूक्ष्मदर्शी का निर्माण हुआ था जो छोटी चीज बड़ी दिखाई दे. तब वह कहेंगे “नाही” अगर उनसे पूछा जाए की किसी दूरबीन की खोज की गयी थी तब भी उनका जवाब होगा ” नहीं” और ऐसे वैज्ञानिक दो चार सवाल पूछने पर अल्लाह के अस्तित्व का इनकार करने वाले दो शब्दों में कह देते है की, कोई भी वैज्ञानिक खोज यही 300 साल के बिच ही हुई है इससे पहले कोई खोज नहीं की गयी…. आग जलाना, खाना बनाना यह छोटी छोटी खोजे है जो उससे पहले ही खोजी गयी लेकिन इनका ब्रम्हांड के खोज से कोई ताल्लुक नहीं….

फिर उनको कुरआन की यह आयात जो 1441 साल पहले नाजिल/लिखी हुई है तब वह आश्चर्य में पड़ेंगे उनका दिमाग भी इस बात को मानी करेगा की इतने साल पहले यह खोज ना मुमकिन है यह उसी का लिखा हो सकता है जिसने यह दुनिया बनाई. लेकिन वह पहले से ही अल्लाह के अस्तित्व का इनकार किये हहुए होते है इसलिए वह खुदका अपमान होगा यह समझकर इस विषय को छोड़ देंगे चर्चा भी ना करते हुए गूल हो जायेंगे.

यह आयात है जो बताती है की अल्लाह का अस्तित्व है. और यह बात 1441 साल पहले वाही कह सकता है जो इसका निर्माता हो.

उंगलियों के निशाँ 
जिसने समुन्दर बनाया वो बखूबी जानता था उसी अल्लाह ने कुरान में 1441 पहले कहा
 “क्या मानव ये समझ रहा है के हम उनकी हड्डियों को एकत्रित नहीं किर सकेंगे ? क्यों नहीं ? हम तो उसकी उँगलियों की एक एक निशान को तक ठीक-ठीक बना देने का कुदरत (प्रभुत्व) रखते है ” (अल-कुरआन 75 आयात 3-4)
(दुनिया में हर इंसान की उंगलियों के निशाँ अलग अलग है
दर्द कोशिकाओके बारे में  
जिन लोगों ने हमारी आयातों को मानने से इनकार कर दिया, उन्हें बिलाशुबाह (नि:संदेह) हम उन्हें आग में झोकेंगे और उनके शारीर की खाल (त्वचा) जितनी बार गल जायेगी/नष्ट होजायेगी तो उसकी जगाह दूसरी खाल पैदा कर देंगे ता की वो खूब अझाब/तकलीफ का मजा चखे. अल्लाह बड़ी कुदरत रखता है, और अपने फैसलों को व्यवहार में लानेका बहोत ही अच्छी तरहा जानता है (कुरआन:- 4 आयात-56)
दो समुन्दर के बिच है रुकावट 
दो समुन्दरों को उसने (आल्लाह) ने छोड़ दिया के वे एक दूसरे से मिल जाए,फिर भी उनके बिच एक दीवार है जो एक दूसरे को घुलने नहीं देती (कुरान:-सुराह-55 आयात-19-20)

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दुनिया की एकमेव किताब है कुरआन जो गलतिया निकालने के लिए बुद्धिजीवियों को चुनौती है.
और अगर तुम्हें इस मामले में संदेह हो कि यह किताब जो हम ने अपने बंदों पर उतारी है, यह हमारी है या नहीं तो इसकी तरह एक ही सूरत (क़ुरआनी आयत) बना लाओ, अपने सारे साथियों को बुला लो एक अल्लाह को छोड़ कर शेष जिस – जिस की चाहो सहायता ले लो, अगर तुम सच्चे हो तो यह काम कर दिखाओ, लेकिन अगर तुमने ऐसा नहीं किया और यकी़नन कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन बनेंगे इंसान और पत्थर। जो तैयार की गई है मुनकरीन हक़ (सत्य को नकारने वालों)के लिये ( अल – क़ुरआन: सूर 2, आयत 23 से 24 )

कुरआन सिर्फ दिमाग वालो के लिए है
यक़ीनन उसमें भी एक निशानी है उन लोगों के लिए जो लोग (शोध,सोच विचार चिंतन करते है ) समझ रखते है (कुरान-सुराह;16, आयात 68-69)

सृष्टि का निर्माण
”’क्या वो लोग जिन्होंने (मुहम्मद स.) का इनकार किया, गौर नहीं करते? की यह सब आकाश, धरती एक-  दूसरे से मिले हुवे थे, फिर हमने (अल्लाह) ने उन्हें अलग-अलग कर दिया (अल-कुरआन:21 आयात 30)
“और ना ये सूरज के बस में है के वो चाँद को जा पकडे (टकराए) और ना रात दिन पर वर्चस्व ले जा सकती है, ये सब एक आकाश में तैर रहे है (अल-कुरआन:36 आयात:40)

“फिर वे आसमान के तरफ ध्यान आकर्षित हुवे जो उस वक्त सिर्फ धुंवा(gas) था, उस (अल्लाह) ने असमान और जमीन से कहा: अस्तित्व में आजाओ ! चाहे तुम चाहो या ना चाहो” दोनों ने कहा: हम आ गए है आज्ञाकारी लोगों की तरहा ” (अल-कुरआन:41, आयात 11)

उपरोक्त आयात में धुंवा का जिक्र हुआ है. और हर इंसान बखूबी जानता है की धुंवा अति सूक्ष्म कणों से निर्माण होता है. जब यह सृष्टि बनाने वाले ने अपनी किताब में 1441 साल पहले ही बता दिया की सृष्टि का निर्माण मैंने (अलाह) अति सूक्ष्म कणों से किया है तो फिर *कवाकॅ लेबोनेन* कणों की खोज करने वालो ने आधुनिक मशीनरी के जमाने में कौनसा तीर मारा ? यह तो हमें पहले ही पता था….! *कवाकॅ लेबोनेन* वाली खबर इस हफ्ते में ही प्रकाशित हुई है. मान लिया जाए तो इन वैज्ञानिकों से बड़ा मैं वैज्ञानिक हूँ मैंने तो यह बात July 10, 2012 को ही अपने फेसबुक पेज पर लिख दी थी.(हाहा) सूक्ष्म कणों का नाम उन्होंने *कवाकॅ लेबोनेन* यह बताया. जो वैज्ञानिकों ने ही रखा है….

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आधुनिक मशीनों की खोज के 200 साल बाद वैज्ञानिक इस बात की खोज करने में सफल हुए की *कवाकॅ लेबोनेन* से ब्रम्हांड का निर्माण हुआ. लेकिन अभी इनकी एक खोज बाकी है. *कवाकॅ लेबोनेन* निर्माण किसने किया. जबतक यह नहीं बताएँगे तबतक यह लोग साबित नहीं कर सकते की, अल्लाह का अस्तित्व है या नहीं……! यह बात पांच साल के बच्चे के भी दिमाग में आती है की, अगर ब्रम्हांड का निर्माण *कवाकॅ लेबोनेन* से हुआ है तो *कवाकॅ लेबोनेन* का निर्माण किसने किया ? लेकिन अल्लाह के अस्तित्व को मानने वाले लोग इस बात पर गौर करे बिना ही जश्न मनाने लग जायेंगे की वैज्ञानिकों ने हमारी बात को सही साबित किया. 

‘अगर यह कुरआन अल्लाह के बजाये किसी और की ओर से होता तो वे उसके भीतर बडा विरोधाभास पाते।‘ (सूरःनिसा (कुरआन 4:82 )

उपरोक्त लेख लिखकर मैं कुरआन को एक विज्ञान की किताब साबित करने की कोशिस में नहीं हूँ. कुरआन किसीके साबित करने के लिए मोहताज नहीं वह खुद अपने आप में एक विज्ञान है…
यह लेख पढने के बाद सिर्फ मेरे एक सवाल का जवाब आप दे सकते हो,
अगर अल्लाह का अस्तित्व नहीं है तो *कवाकॅ लेबोनेन* कणों का निर्माण किसने किया ???
कृपया विषयांतर ना करे…..

(नोट- अल्लाह के अस्तित्व को मानना या मानना यह इंसान के मर्जी की बात है,  यह बात या इस्लाम को अल्लाह ने जबरदस्ती मनवाने से भी मना किया है. )
-अहेमद कुरेशी, संपादक

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