*अल-कुरान:* “जिसने कोई जान क़त्ल की, बग़ैर जान के बदले या ज़मीन में फसाद किया तो गौया उसने सब लोगों का क़त्ल किया और जिसने एक जान को बचा लिया तो गौया उसने सब लोगों को बचा लिया” *– (सूरह माइदह, 32)*
*अल-कुरान:* “किसी जान को कत्ल न करो जिसके कत्ल को अल्लाह ने हराम किया है सिवाय हक के” – (सूरह इसरा, 33)*
– कुरान जिस जगह नाज़िल हुआ था पहले वहां के इंसानों की नज़र में इंसानी जान की कोई कीमत न थी। बात-बात वो एक दूसरे का खून बहा देते थे, लूटमार करते थे। कुरान के अवतरण ने न केवल इन कत्लों को नाजायज़ बताया बल्कि कातिलों के लिये सज़ा का प्रावधान भी तय किया।
वो आतंकी लोग जो कुरान के मानने वाले होने की बात करते हैं उन्हें ये जरुर पता होना चाहिये कि इस्लाम ने ये सख्त ताकीद की है कि अल्लाह की बनाई इस धरती पर कोई फसाद न फैलाये !
*अल-कुरान:* “हमने हुक्म दिया कि अल्लाह की अता की हुई रोजी खाओ और धरती पर फसाद फैलाते न फिरो” – (सूरह बकरह:60)*
– कुरान वो ग्रंथ है जो न केवल फसाद (आतंकवाद) यानि दहशतगर्दी फैलाने से मना करता है बल्कि दशहतगर्दी फैलाने वालों को सजा-ए-कत्ल को जाएज करार देता है ,..– (सूरह माइदह, 32)