मेरे गांव का डेटा कहता है की आरक्षण से एक इंच भी फायदा नही हुआ अलबत्ता किसानी कौमे शिल्पकार कौमें अपने वैचारिक संघर्ष को कमजोर ही किए,,, सामाजिकता को विचारधारा के नाम पर तोड़ते गए… 2-4-5% आगे बढ़े लेकिन औसत में समाज को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। हासिए का हर व्यक्ति आज अपनो के बीच भी अकेला हो गया है
किसानी कौमो को दिया गया आरक्षण वास्तव में सिड्यूल कॉस्ट के एक खास जाती के लिए मोरल सपोर्ट का लॉन्चिंग पैड बनके रह गया है जहां से वो अपने वर्गीय आरक्षण को निगल जाते है और राजनीति करते है
आपकी क्या राय है आरक्षण पर ?
Brijesh Maurya Pancham