अमेरिका के “ट्वीन टावर्स” पर 11 सितंबर के हमले की 15वीं बरसी आने वाली थी । इस बीच, किसी यूजर ने सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म टंबलर पर एक तस्वीर पोस्ट की। तस्वीर में ट्वीन टावर्स को दिखाते हुए लोगों से मुस्लिमों के बगैर दुनिया की कल्पना करने की अपील की गई थी। लेकिन मुस्लिमों के प्रति नफरत भरे इस कड़वे पोस्ट पर “वारपाथ यूजर” नाम से पोस्ट करने वाले शख्स की ओर से उतना ही धारदार जवाब मिला। वारपाथ यूजर नाम से किए गए पोस्ट में उस शख्स ने मानव सभ्यता में मुस्लिमों के योगदान की लंबी सूची चस्पा करते हुए लिखा- ठीक है,
कर सकेंगे?
देखते ही देखते यह पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। यूजर ने सवाल किया था क्या मुस्लिमों के बगैर ये चीजें आपको नसीब हो पातीं। ये वे चीजें हैं, जो मुस्लिमों के योगदान के तौर पर गिनाई गई हैं-
कॉफी, कैमरा, एक्सपेरिमेंटल फिजिक्स, शतरंज , शैंपू, सिंचाई, इत्र, स्पिरिट, क्रैंक साफ्ट, इंटरनल कम्बशन इंजिन, वाल्व पिस्टन, कांबिनेशन ताले। स्थापत्य कला में किए गए प्रयोग (नोंक वाली स्थापत्य शैली- यूरोप में गोथिक शैली में बनाए गए गिरिजाघरों के निर्माण में इसी शैली को अपनाया गया। इससे भवन मजबूत बने। खिड़कियां ऊंची की गईं। गुंबदों के इस्तेमाल का आइडिया आया और गोल टावरों के निर्माण की प्रेरणा मिली)।
सूची में और भी कई चीजें हैं। मसलन- सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले औजार, एनिसथीसिया, पवन चक्की, काउ पॉक्स का इलाज, फाउंटेन पेन, संख्या पद्धति, बीजगणित, त्रिकोणमिती, आधुनिकी क्रिप्टोलोजी, तीन कोर्स का खाना ( सूप, मांस या मछली, फल या नट्स) , क्रिस्टल कांच, कालीन, चेक (चौखाने कपड़े) , जड़ी-बूटी के बजाय सौंदर्य और ध्यान लगाने के लिए बाग लगाने की कला, रसोईघर, यूनिवर्सिटी, प्रकाश विज्ञान, संगीत, टूथब्रश, अस्पताल, स्नान, लिहाफ, समुद्री यात्रियों का कंपास, सॉफ्ट ड्रिंक, ब्रेल, कॉस्मेटिक्स, प्लास्टिक सर्जरी, कैलिग्राफी, कागज और कपड़ों का निर्माण।
पोस्ट के मुताबिक, मुस्लिमों ने ही पहले पहल यह जाना कि प्रकाश की किरणें आंखों में आती हैं न कि आंखों से बाहर जाती हैं।
अब तक “ग्रीस के लोगों का यह मानना था कि आंखों से ही रोशनी निकलती है। इसके बाद इसी सिद्धांत के आधार पर मुस्लिमों ने कैमरा ईजाद किया।
ये मुस्लिम ही थे, जिन्होंने ईस्वी सन 852 में आकाश में उड़ने की कोशिश थी। यह अलग बात है कि आसमान में उड़ने का श्रेय राइट बंधुओं को मिला और इसी से विमानों के उड़ने का रास्ता साफ हुआ।
आधुनिक रसायनशास्त्र (केमिस्ट्री) की नींव भी जाबिर इब्न हय्यान नाम के एक मुस्लिम ने रखी थी। उन्होंने ही कीमियागिरी को आधुनिक रसायनशास्त्र में बदला। हय्यान ने ही रसायन शास्त्र की विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे – डिस्टिलेशन (आसवन), प्योरिफिकेशन (शुद्धिकरण), ऑक्सिडेशन (ऑक्सीकरण) इवोपोरेशन ( वाष्पीकरण) , फिल्टरेशन ( निथारने की कला) का ईजाद किया। उन्होंने ही सलफ्यूरिक और नाइट्रिक एसिड की खोज की।
टीकाकरण की खोज भी मुस्लिम ने ही की थी। जबकि काउपॉक्स का इलाज खोजने का श्रेय “जेनर” और “पाश्चर” को दिया जाता है। पश्चिम का इसमें योगदान इतना भर है कि वे इस तरीके को तुर्की से अपने यहां ले आए थे।
मुस्लिमों ने गणित में काफी योगदान दिया। बीजगणित और त्रिकोणमिती जैसे विषयों को मुस्लिमों ने ही खोजा था, जो बाद में “फिबोनिकी” और दूसरे गणितीय संकल्पनाओं के आधार बने।
मुस्लिमों ने गैलिलियो से 500 साल पहले यह पता लगा लिया था कि पृथ्वी गोल है।
पोस्ट में कहा गया है- …. तो दोस्तो, मुस्लिमों की योगदान की सूची में अगर और भी चीजें जोड़ी जाएं तो यह अंतहीन हो जाएगी।
वारपाथ की पोस्ट में कहा गया है- मेरे ख्याल से मुस्लिमों के बगैर दुनिया की कल्पना करने की अपील का आपका मतलब आतंकवादियों से खाली दुनिया की कल्पना से है। बिल्कुल, मैं आपकी इस अपील से मुतमइन हूं। निश्चित तौर पर दुनिया इस गंदगी के बगैर ज्यादा अच्छी होगी। लेकिन कुछ लोगों की करतूतों कि लिए पूरी कौम को जिम्मेदार ठहरा देना अज्ञानता है। एक तरह से यह नस्लीय भेदभाव फैलाना है। कोई भी इस बात से सहमत नहीं होगा कि “टिमोथी मेकवेह” (ओकलाहामा विस्फोट) या “आंद्रे ब्रेविक” (नार्वे हत्याकांड) या फिर सांसद रहीं “गिफोर्ड” के सिर पर गोली मारने (इस कांड में 6 लोगों की हत्या हो गई थी और 12 घायल हुए थे) वाले हत्यारों की करतूतों के लिए पूरी ईसाई कौम या गोरे लोगों को जिम्मेदार ठहराया जाए।
जिस तरह इन हत्याकांडों के लिए पूरी ईसाई कौम को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, उसी तरह चंद सिरफिरों की करतूतों के लिए डेढ़ अरब मुस्लिमों को कठघरे में कैसे खड़ा किया जा सकता है।