गढ़ीमाई शक्ति की देवी मानी जाती है. समारोह के दौरान देवी को खुश रखने और मनोकामना पूरा करने के लिए ढाई लाख से भी ज़्यादा पशुओं की बलि दी जाएगी. मंदिर के एक पुजारी चंदन देव चौधरी कहते हैं, “देवी को ख़ून चाहिए. यदि किसी को कोई परेशानी होती है तब मैं मंदिर में किसी जानवर की बलि देता हूँ जिससे उस व्यक्ति की परेशानी दूर हो जाएगी.” दो दिनों तक चलने वाले इस समारोह में भारत से भी अनेक श्रद्धालु हिस्सा लेने पहुँचे हैं. परिवार के साथ बिहार से समारोह में हिस्सा लेने आए पहुँचे 60 वर्षीय सुरेश पाठक बलि देने के लिए अपने साथ एक बकरा भी ले गए हैं.
श्रद्धा और विश्वास की देवी
देवी को ख़ून चाहिए. यदि किसी को कोई परेशानी होती है तब मैं मंदिर में किसी जानवर की बलि देता हूँ जिससे उस व्यक्ति की परेशानी दूर हो जाएगी
एक ऊँची दीवार के घेरे में हज़ारों भैसों को रखा गया है. हालांकि समारोह में ज़्यादातर बलि भैंस की दी जाती है लेकिन बकरे, मुर्गी, कबूतर और चूहों की भी बलि दी जाएगी. भैसों को जिस घेरे में रखा गया है उसकी देखभाल करने वाले एक पुलिस अधिकारी बिकेश अधिकारी कहते हैं, “सबसे पहले पाँच भैसों की बलि मंदिर में दी जाती है.” जानवरों की बलि देने के काम को अंजाम देने के लिए 250 स्थानीय लोगों को पारंपरिक खुखरी चाकू का लाइसेंस दिया गया है. बलि देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी है, जिसके लिए लोगों को 20 नेपाली रुपए देने पड़े हैं.
मंदिर के बाहर जानवरों के अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने नारियल फोड़कर सांकेतिक रूप से बलि का विरोध किया. बलि प्रथा का विरोध करने वाले प्रमादा शाह का कहना है, “हम एक संदेश देना चाहते हैं. इस स्तर पर हम बस यही कर सकते हैं.” कार्यकर्ताओं ने समारोह के व्यवस्थापकों से बलि प्रथा को रोक देने की अपील की है. उनका कहना है कि यह बर्बरतापूर्ण है और हिंदू देवताओं को फूल और फल देकर भी ख़ुश किया जा सकता है. जबकि नेपाली अधिकारियों का कहना है कि बड़ी संख्या में जानवरों की बलि एक धार्मिक परंपरा है. (source)