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मुजफ्फरपुर के एक गांव दामोदरपुर टोला में एक सड़क के बीच दीवार खड़ी कर दी गई है. इस गांव को मुसलमानों का गांव कहा जाता है क्योंकि इस गांव में करीब 70 मुस्लिम परिवार रहते हैं. दामोदरपुर टोला में शेख और अंसारी (दो मुस्लिम जातियां) रहती हैं और एक ही रोड का इस्तेमाल करते-करते उन्होंने इस रोड को बीच में से बांट दिया है ताकि न ही ऊंची जाति के मुस्लिम नीची जाती के साथ जा सकें और न ही किसी और को कोई परेशानी हो.
रोड का आधा हिस्सा शेखों का है और बाकी आधा है अंसारियों का. एक तो गांव की सड़क ऊपर से अब ये इतनी संकरी हो गई है कि लोग आसानी से गाड़ियां लेकर भी नहीं जा सकते. ये दीवार हाल ही में बनाई गई है. 18 नवंबर को एक अंसारी परिवार के घर शादी थी और वहीं किसी बात को लेकर अंसारी और शेख परिवारों में झड़प हो गई. एक झड़प में एक के बाद एक लोग जुड़ते चले गए और मामले ने तूल पकड़ लिया.
इस मामले का हल ये निकाला गया कि सड़क के बीच में एक दीवार बना दी जाए जो दोनों गुटों को एक दूसरे से अलग कर दे. इंडिया टुडे के एक रिपोर्टर से बात करते वक्त स्थानीय निवासी नसीरुद्दीन अंसारी ने कहा कि, ‘शेख उनके साथ सही बर्ताव नहीं करते और ये अच्छा है कि दीवार बना दी गई है क्योंकि हमें उनसे कोई लेना देना नहीं रखना.’
उसी जगह शेखों की तरफ से मोहम्मद सलीम ने बताया कि , ‘ये बेहद गलत है और अंसारी लोग आपे से बाहर हो गए हैं. जो दीवार बनाई गई है वो हमें और अंसारियों की तरफ बने मस्जिद को भी अलग कर देती है. हम वहां नमाज़ पढ़ने भी नहीं जा सकते. ये कितनी अजीब बात है कि जो लोग एक ही धर्म का पालन करते हैं, एक ही किताब को सही मानते हैं वो ही मस्जिद के बीच में दीवार खड़ी कर देंगे.’
क्या कभी सोचा है आपने कि वाकई ये समस्या इतनी बड़ी है कि एक ही धर्म के दो अलग-अलग गुटों में इतनी रांजिश हो गई कि अपने ईष्ठ से प्रार्थना करने जाने में भी दिक्कत खड़ी कर दी गई.
जिस तरह से हिंदू धर्म में जाति विभाजित है उसी तरह मुस्लिम धर्म भी विभाजित है और ये मूलत: तीन अलग-अलग जातियों को दिखाता है. ये हैं अशरफ, अजलाफ और अरजल (Ashraf, Ajlaf, Arzal). ये विभाजन खास तौर पर एशिया में ही पाया जाता है. हालांकि, ये और भी ज्यादा विभाजित है, लेकिन मूलत: ये ही हैं.
दूसरा पायदान है अजलाफ का यानि छोटी जाति का. ये वो लोग हैं जो अपने पेशे से जाने जाते हैं. इनकी पहचान उन लोगों से होती है जिनके पूर्वज अन्य धर्मों से थे और अंत में इस्लाम से जुड़ गए थे. इस जाति के लोगों का पेशा अक्सर खेती, व्यापारी, बुनकार आदि का होता है (अंसानी और जुलाहा सरनेम वाले लोग). खास तौर पर गावों में कई अशराफ ये मानते हैं कि अजलाफ जाति भारतीय मुस्लिम समुदाय का हिस्सा नहीं है और उनसे दूरी बनाकर रखते हैं. यही हुआ शेख और अंसारियों की भिड़ंत में भी क्योंकि अंसारियों को शेख अपने से नीचे मानते है. सबसे नीचे आते हैं अरजल जो धोबी, चमार, हज्जाम जैसे काम करते हैं. उन्हें मुस्लिम समुदाय में अछूत का दर्जा दिया जाता है.
ये तो था जाति विभाजन जो शायद मुगलों के जमाने से भी पुराना है, लेकिन अगर आज की बात करें तो आज भी हिंदुस्तान के कई इलाकों में इस जाति प्रथा को इस तरह संदीजा होकर माना जाता है कि लगता है जैसे हम आगे नहीं बल्कि पीछे जा रहे हैं और इस तरह से चलता रहा तो शायद इसी धर्म और जाति के नाम पर हिंदुस्तान अपनी पहचान ही खो देगा.
Written by ancientworld2
6 thoughts on “एक ही अल्लााह को मानने वाले आपस में बंट गए तो बात ही खत्म – श्रुति दीक्षित”
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