सोशल डायरी ब्यूरो
रमजान की आखरी जुमा और करीब आती ईद “ईद-उल-फ़ित्र” जकात, सदका, खैरात देने और इबादतवाले मुबारक महीने की ख़ुशी में मनाई जाने वाली ईद.
इसईद मेंहर मुसलमान जितना चाहे ज्यादा से ज्यादा इबादत करने की कोशिस में लगा होता है. और हर मालदार को हुक्म है की, सदका, खैरात, जकात फ़ित्र के स्वरूप में गरीबो, मुफलिसों की मदत करे और कोई भूका ना रहे इसपर ध्यान दिया जाए. रमजान का मकसद ही यह है की, भूक की शिद्दाद को एक महीना महसूस करे और 11 महीने किसीको भूखा ना रहना पड़े इसका ख़याल रक्खा जाए. लेकिन अक्सर ऐसा होता नहीं दिखाई देता.
कई मालदार लोग अपनी इबादतों के साथ अल्लाह के सारे हुक्मको पूरा करते है और रमजान के बाद भी 11 महोने तक इस बात का भी ख़याल रखते है की, अपना कोई पडोसी भूखा ना रहे. लेकिन ऐसे लोगो की तादाद बहुत कम है पांच या सात फिसद. ज्यादा तादाद तो ऐसे लोगो की है जो महज दिखावे के लिए रमजान रोजा वगैराह करते है.. आज मैं रास्ते से गुजर रहा था तब देखा के रस्ते के दोनों बाजू सैकड़ो बैनरों से भरे पड़े है और उसी बैनर के निचे होटल के सामने मजबूर और मुफलिस महिलाएं भीख मांग रही है. सुबह से देर रात तक यह महिलाएं मांगती है और रात को जाकर अपने बच्चो के पेट भारती है. महिलाओं के साथ बुजुर्ग पुरुष और महिलाएं भी देखने को मिलती है. एक बुजुर्ग महिला ने मेरे सामने हाथ फैलाया उस महिला का हाथ मेरी और था लेकिन उसकी नजरे बैनर की और. तब मैंने सोचा क्या यह बुजुर्ग महिला बैनर को देखकर अल्लाह से शिकायत तो नहीं कर रही होगी की लोग शैतान की फितरत फिजूल खर्ची कर रहे है और हम लोगो को घरो में खाने को अनाज तक नहीं. ????????????????
अगर सच में गरीब मुफलिस लोग अगर अलाह से यह शिकायत कर रहे होंगे तो जानलो तुम्हारी दुनिया तो कामियाब हो जायेगी जैसे फिरोन और कारून की हुई थी लेकिन आखिरत भिऊ वैसे ही होगी जो फिरून और कारून की हु.अक्सर लोग रौशनाई जगमगाहट के साथ-साथबैनरों में लाखो-करोडो रुपया बर्बाद करते दिखाई दे रहे है.यह लानत भेजने लायक बुरा काम है. हमने ऊपर कुछ तस्वीरे दिखाई है वहसांकेतिकतस्वीरे है. लेकिन हकीकत इन तस्वीरो से परे नहीं है. आपने अगर यह आर्टिकल पढ़ा हो तो कृपया ऐसे फिजूल खर्ची के बदले गरीबो, मुफलिसों और मोहताजो की मदत करे. अल्लाह तुम्हे बैनरों से ज्यादा शोहरत अता फरमाएगा. लानत हो बैनर बाजी करने वालो पर.
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