क्या मुसलमानों अब भी नही जागोगे
जिस उम्मत को इंसाफ करने का और बेगुनाह के हिमायत में लड़ने का हुक्म है वो उम्मत खुद जुल्म का शिकार है क्या मुसलमानों अपने हालात पर तवज्जो नही दोगे आखिर कब तक
जिस उम्मत को इंसाफ करने का और बेगुनाह के हिमायत में लड़ने का हुक्म है वो उम्मत खुद जुल्म का शिकार है क्या मुसलमानों अपने हालात पर तवज्जो नही दोगे आखिर कब तक
भारत मे मुसलमानो के ऊपर बेइंतहा जुल्म हो रहा है, कभी कही मुसलमानों को उनके धर्म के आधार पर मार दिया जाता है तो कभी तराबीह से लौट रहे मुसलमानों पर संघ के खूनी भेड़िये “मारो टोपी वालों” को कहकर हमला करते है, कभी राजस्थान मे डेयरी के लिए गाय ले जा रहे मुसलमान युवक की गाय के नाम पर हत्या कर दी जाती है तो कभी मंदिर से ऐलान करके अख्लाक को मार दिया जाता है।कोई पल और कोई दिन ऐसा नही गुजर रहा जब मुसलमानों पर जुल्म ना किया जा रहा हो, मुसलमानों का खून अब जानवरों से भी ज्यादा सस्ता हो गया है और आज जुल्म की इंतेहा हो गई जब बिजनौर मे ट्रेन मे एक रोजेदार मुसलमान औरत के साथ जीआरपी पुलिस के एक सिपाही ने बालात्कार किया।
ऐ भारत के मुसलमानों! किस गफलत मे सोए हो? क्या तुम्हें अपनी बारी का इंतेजार है? क्या तुम्हें अपने नम्बर का इंतेजार है? क्या तुम्हें अपनी माँ-बहनों की इज्जत लुटने तक का इंतजार है? क्या तुम्हें अपने बाप-भाई के कत्ल तक का इंतेजार है?
क्या एक मुसलमान औरत तुम्हारी माँ या बहन नही है?
क्या उम्मत का एक मर्द तुम्हारा भाई और बाप की बराबर नही है?
क्या शहीद हुई मस्जिदों से तुम्हारा कोई वास्ता और कोई सम्बन्ध नही है?
क्या इस्लाम जुल्म पर जुल्म सहना सिखाता है?
क्या इस्लाम की यह तालीम है कि औरतों की इज्जतों के साथ खिलवाड़ होता रहे और तुम अय्याशी, मक्कारी, धोखाधड़ी और नाच गानों मे लगे रहो?
महिलाओं की इज्जतों की तरफ उठने वाली हर आँख को फोड डालो।
ऐ
भारत ! उठो और जुल्म के खिलाफ उठ खडे हो जाओ, हमारे बडों और हमारा मजहब हमें जुल्म सहना नही सिखाया, जालिमों के जुल्म करने वाले हाथ को तोड डालो।महिलाओं की इज्जतों की तरफ उठने वाली हर आँख को फोड डालो।
बुझदिली की चादर तानकर मत सोईए, हम बुझदिल कौम नही हैं, हम मौत से नही डरते, हमें हर जुल्म से टकराना होगा और अपने वतन के लिए और अपनी कौम के लिए कुरबानियाँ देकर इस
भारत की पाकीजा सरजमीं पर अमन कायम करना होगा।CITY TIMES