साल 1990 से लेकर 9 अप्रैल, 2017 तक की अवधि में मौत के शिकार हुए इन लोगों में स्थानीय नागरिक, सुरक्षा बल के जवान और आतंकवादी शामिल हैं। जम्मू कश्मीर में जारी अलगाववादी हिंसा के दौरान पिछले 27 सालों में अब तक राज्य में आतंकवादी गतिविधियों और आतंकवाद विरोधी अभियानों में 40,961 लोग मारे गए हैं। जबकि 1990 से लेकर 31 मार्च, 2017 तक की अवधि में घायल हुए सुरक्षाबल के जवानों की संख्या 13 हजार से अधिक हो गई है। मंत्रालय की उपसचिव और मुख्य सूचना अधिकारी सुलेखा द्वारा आरटीआई के जवाब में स्थानीय नागरिकों, आतंकवादियों और सुरक्षा बल के जवानों की मौत का 1990 से अब तक का हर साल का आंकड़ा जारी किया है।
इस साल हुई 3,552 मौत की घटनाओं में 996 स्थानीय लोग और 2020 आतंकवादी मारे गये। जबकि सुरक्षा बल के 536 जवानों की जानें गईं।
हालांकि स्थानीय नागरिकों की सबसे ज़्यादा 1341 मौतें साल 1996 में हुई। आंकड़ों के मुताबिक साल 2001 में आतंकवादी हिंसा से जान-माल को सर्वाधिक नुकसान होने के बाद साल 2003 से इसमें लगातार गिरावट दर्ज की गई है। साल 2003 में 795 स्थानीय नागरिकों और 1494 आतंकवादियों की मौत के अलावा 341 सुरक्षा बल के जवानों की जानें गयी हैं। साल 2008 से स्थानीय नागरिकों और सुरक्षा बल के जवानों कीमौत का आंकड़ा दो अंकों में सिमट गया है।
हालांकि साल 2017 में 9 अप्रैल तक 5 स्थानीय नागरिक और 35 आतंकवादी मारे गए। जबकि सुरक्षाबल के 12 जवानों की जान गयी है। वहीं इस साल 31 मार्च तक सुरक्षा बल के 219 जवान घायल हो चुके हैं। गत 9 अप्रैल को श्रीनगर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव के बाद कश्मीर घाटी में अलगाववादी हिंसा तेजी से भड़की है। इसे रोकने के लिए राज्य में सुरक्षा बलों का अभियान जारी है। आए दिन सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों के बीच झपड़ हो रही है।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इन मौतों की जिम्मेदारी कौन लेगा और इसपर जवाबदेही कौन तय करेगा। कांग्रेस गई भाजपा आई भाजपा गई कांग्रेस आई लेकिन यदि नहीं आए तो कश्मीरियों के अच्छे दिन नहीं आए।(साभार)