1912 में बिहार के मुंगेर ज़िला में पैदा हुए मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब के वालिद का नाम हज़रत मौलाना मुहम्मद अली मुंगेरी(र.अ.) था, जो बहुत ही बड़े बुज़ुर्गान ए दीन थे और उन्होने ही 1901 में ख़ानक़ाह रहमानीया मुंगेर की बुनियाद डाली थी।
शुरुआती तालीम घर पर हासिल करने के बाद मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब आगे की तालीम के लिए दारुल उलुम देवबंद गए ये वो दौर था जब शेख़ उल हिन्द महमुद हसन (र.अ) के शागिर्द शेख़ उल इस्लाम हुसैन अहमद मदनी(र.अ) जंग ए आज़ादी को लीड कर रहे थे।
दारुल उलुम देवबंद में तालीम के दौरान ही मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब तहरीक ए आज़ादी में हिस्सा लेने लगे और जल्द ही वो वहां मौजुद तमाम स्टुडेंट की क़यादत करने लगे।
इस दौर में उल्मा पुरे मुल्क में लोगों के अंदर सियासी और इंक़लाबी बेदारी लाने के लिए अलग अलग शहर में काम कर रहे थे और जेल से बाहर आने के बाद मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब को सहारनपुर की ज़िम्मेदारी दी गई।
अब मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब ने सहारनपुर का रुख़ किया और वहां हुए कई जलसों में शरीक हुए और महज़ 22 साल की उम्र में उनके द्वारा की गई इंक़लाबी तक़रीरों मे जहां अवाम के अंदर एक नया जोश भर दिया, वहीं मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब एक बार फिर अंग्रेज़ों के निशाने पर आ गए, उन्हे गिरफ़्तार कर लिया गया और सलाख़ों के पीछे डाल दिया गया।
जेल में मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब चार माह तक क़ैद रहे जहां आपसे मिलने शेख़ उल इस्लाम हुसैन अहमद मदनी(र.अ) ख़ुद आए।
जेल से बाहर आने के बाद 1934 में मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब ने दारुल उलुम देवबंद से सनद हासिल की और खुल कर मिल्ली और मुल्क की सियासत में हिस्सा लेना शुरु किया।
मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब की ज़ेर ए निगरानी में इमारत शरिया तहरीक ए आज़ादी में हिस्सा ले रहा था और “ईमारत ए शरीया” से 15 रोज़ा रिसाला निकलता था ‘अल-इमारत’ जिसमे शाए होने वाली इंक़लाबी तहरीरें सीधे तौर पर अंग्रेज़ो के उपर हमलावर होती थी, अंग्रेज़ो ने इस बाग़ीयाना समझा और मुक़दमा चलाया, फिर जुर्माना भी वसुल किया पर इंक़लाबी मज़ामीन में कोई कमी नही आई जिससे थक हार कर अंग्रेज़ो ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के वक़्त बैन कर दिया था तब ‘नक़ीब’ नाम से एक रिसाला निकाला गया जिसने और मज़बुती से अपनी बात रखी और इस रिसाले में मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब ने कई इंक़लाबी मज़ामीन लिखे।
12 सितम्बर 1936 को इमारत ए शरिया ने मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब की ज़ेर ए निगरानी में मुस्लिम इंडिपेंडेट पार्टी की स्थापना की और 1937 के इलेकशन में हिस्सा भी लिया, मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब साहेब मुस्लिम इंडिपेंडेट पार्टी के टिकट पर मुंगेर से भारी मतों से जीत हासिल की।
और इसी साल 1937 मे बैरिसटर युनुस साहब ने बिहार मे मुस्लिम इंडिपेंडेट पार्टी की सरकार का गठन किया, सरकार की राह मे सबसे बड़े रोड़ा बने जय प्रकाश नारायण … कुछ ही महीने बाद यूनुस साहब ने इस्तीफ़ा दे दिया उसके बाद कांग्रेस ने बिहार मे सरकार का गठन किया।
मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब ने खुल कर मुस्लिम लीग और 1940 के लाहौर अधिवेशन की मुख़ालफ़त की। अमीर ए शरीयत मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब के इंतक़ाल के बाद मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब इमारत शरिया के मोहतमिम यानी अमीर ए शरीयत बने।
अपने वालिद हज़रत मौलाना मुहम्मद अली मुंगेरी(र.अ.) के इंतक़ाल के बाद मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब ख़ानक़ाह रहमानीया मुंगेर के सज्जादानशीं मुक़र्रर हुए और 1942 में उन्होने जामिया रहमानी मुंगेर की बुनियाद डाली। यहां से भी तहरीक ए आज़ादी में हिस्सा लेते रहे, जिसके लिए उन्होने इमारत ए शरिया और जमियत उल्मा के प्लैटफ़ॉर्म का भरपुर उपयोग किया।
जैसे ही गांधी जी की क़ियादत में 8 अगस्त 1942 को युसुफ़ जाफ़र मेहर अली नें मुम्बई में ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ का नारा दिया पुरे भारत में इंक़लाब की चिंगारी फुट पड़ी और इसका असर बिहार में दिखने लगा, अंग्रेज़ो ने ख़ानक़ाह रहमानीया मुंगेर पर 12 घंटे के अंदर दो बार छापेमारी की।
भारत छोड़ो आंदोलन के समय बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ख़ानक़ाह रहमानीया मुंगेर में 22 दिन रहे थे। इस दौरान ख़ानक़ाह रहमानीया मुंगेर इंक़लाबीयों का महफ़ुज़ आरामगाह बन चुका था, बड़ी तादाद में इंक़लाबी अंग्रेज़ो से बचते हुए यहीं से ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को लीड कर रहे थे।
वैसे 1934 के जलज़ले के दौरना भी ख़ानक़ाह रहमानीया मुंगेर ने हिन्दुस्तान के कई बड़े रहनुमाओं का स्वागत किया था, जलज़ले से मुतास्सिर लोगों की मदद और हाल चाल लेने जब गांधी जी, पंडित नेहरु और ग़फ़्फ़ार ख़ान मुंगेर आए थे तो उन्होने ख़ानक़ाह को ही अपना हेडक्वाटर बनाया था। ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान ख़ुदाई ख़िदमतगार तहरीक के रज़ाकारों के साथ यहां 15 दिन ठहरे थे ताके जलज़ले से मुतास्सिर लोगों की मदद कर सकें। इनसे पहले बी अम्मा और उनके साहेबज़ादे अली बेराद्रान मौलाना शौकत अली और मौलाना मुहम्मद अली जौहर भी यहां तशरीफ़ ला चुके थे।
जब मुल्क आज़ाद हुआ तो भारत के पहले प्राधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह की चाहत थी के मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब राजसभा के सदस्य बनें पर उन्होने यह कह कर इंकार कर दिया के 1940 में ही उन्होने सियासत से तौबा कर लिया था।
1972 में मौलाना मिन्नतउल्लाह रहमानी साहेब की फ़िक्र की वजह कर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का क़याम हो पाया और आपका इंतक़ाल साल 1991 में हुआ, आपने अपने आख़री वक़्त में भी मुल्क और क़ौम की फ़िक्र करना नही छोड़ा।
Md Umar Ashraf