दादा की वसीयत और रोजी की तलाश ने मुझे मुसलमान बना दिया -अब्दुल अजीज

भारतीय राज्य पंजाब के हिन्दू परिवार में मेरा जन्म हुआ, लगभग दस साल पहले  रोज़गार की तलाश में कुवैत आया, यहाँ आने के बाद मेरी आर्थिक स्थिति भी ठीक हुई और इस्लाम का महान उपहार भी मिला। यूं तो मैं बहुत समय से इस्लाम से प्रभावित था, लेकिन मुझे इसकी पूरी जानकारी प्राप्त न हो सकी थी।

मेरे दादा धार्मिक व्यक्ति थे, उनके पास सिक्के की शक्ल का एक लाकेट था, जिसकी वह बड़ी सुरक्षा करते और धरोहर समान अपने पास रखते थे, बुढ़ापे की उम्र को पहुंचे तो उन्हों ने वह लाकेट मेरे हवाले कर दी, और ताकीद कि कि इसका हमेशा सम्मान करना, इस से तुम्हारी बहुत सारी समस्यायें हल होंगी. मैंने किसी मुसलमान से लाकेट पर लिखित अक्षर पढ़वाया तो पता चला कि उस पर ला इलाहा इल्लल्लाह लिखा हुआ है, कुवैत में आने के बाद एक दिन मैं ने अज़ान पर विचार किया तो मेरे कानों से यह आवाज़ टकड़ाईः अल्लाहु अकबर, ला इलाह इल्लल्लाह। दादा की वसीयत को ध्यान में रखते हुए मैं ने इस कलमे को ज़बानी याद कर रखा था, जब मैंने अज़ान में यह शब्द सुना तो चौंक पड़ा, उसके बाद जब भी मैं अज़ान सुनता मस्जिद में चला जाता, मुझे मस्जिद में अजीब तरह की शान्ति का अनुभव हुआ. अब मेंमुसलमानों के साथ उठने बैठने लगा, यह देख कर हिन्दुओं को मुझ से जलन होने लगी वे कहने लगे कि तुम ऐसा क्यों करते हो।

भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश के मुहम्मद साहब थे जो आफिस में चाय क़हवा पिलाने का काम करते थे. उनको मैंने कलिमा सुनाया और उसके सम्बन्ध में पूछा तो उन्हों ने कहा कि मुझे कलमा सही उच्चारण के साथ याद नहीं, उसने मुझे सही उच्चारण के साथ कलिमा याद कराया, अब मैं मस्जिद जाने लगा, कुवैत के फ़िंतास क्षेत्र में एक मस्जिद थी मैं इस्लाम स्वीकार करने से पहले उस मस्जिद में जाने लगा. मेरे हिन्दू साथियों का और अधिक बढ़ गया, वे मुझ से नफरत करने लगे, ताना देते कि देखो यह अपने धर्म को छोड़ कर मुसलमानों के धर्म का पालन करता है.

Shoppersstop CPV

पहले अपने बुरे साथियों की संगत में रहने के कारण शराब का सेवन करता था, एक दिन एक मुसलमान साथी ने मुझे बड़े प्यार से बताया कि शराब मत पियो, यह अच्छी आदत नहीं है, उसी दिन से मैंने शराब पीना छोड़ दिया. मेरे साथियों ने मुझे शराब की लालच दी लेकिन मैंने उनकी ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया क्यों कि वे काम में भी मुझ से दुश्मनी करने लगे थे. चूंकि कंपनी में मेरा फोरमैन मेरा एक रिश्तेदार ही था, उसने जब इस्लाम की ओर मेरा आकर्षन देखा तो वह मुझे कष्ट पहुंचाने लगा, कभी वह मुझे हाफ लाड़िय चलाने को कहता तो कभी दूसरा काम दे देता, यहाँ तक कि उसने कुवैती से शिकायत कर दी कि यह आदमी काम ठीक से नहीं करता है. तात्पर्य यह कि उसने मुझे बहुत टार्चर किया ताकि इस्लाम की ओर मेरी जो इच्छा है कम हो जाए लेकिन मैं ने उसकी कुछ परवाह नहीं की और सच्चाई की खोज में लगा रहा.

एक दिन मैं सोया हुआ था तो सपने में देखा कोई मुझ से कह रहा है कि तुम आगे जाओ तुम्हारे लिए काम बहुत है. और सच्ची बात यह है कि कुछ ही दिनों में एक दूसरी जगह मुझे नौकरी मिल गई, और मैं आराम से काम करने लगा, हमारी कंपनी में सईद साहब इंजिनियर के रूप में काम करते थे, उन्हों ने इस्लाम के परिचय पर आधारित कुछ हिंदी पुस्तकें लाईं और मुझे पढ़ने के लिए दिया. मैंने किताबें पढ़ीं तो इस्लाम की सच्चाई और अधिक दिल में बैठने लगी, एक दिन वह मुझे IPC ले कर आए जहां मैं ने इस्लाम स्वीकार किया. उसके बाद IPC में नव मुस्लिमों के लिए विशेष कक्षा में उपस्थित होकर इस्लाम सीखने लगा. तीन वर्ष तक कुवैत में इस्लाम की शिक्षा प्राप्त करने के बाद घर गया तो दिल्ली में अपनी पत्नी और दोनों बेटों उमर और उस्मान को बोलाया और सब को दिल्ली में ही इस्लाम क़ुबूल कराया उसके बाद पंजाब गया।

Shoppersstop CPV

यह थी संक्षिप्त कहानी मेरे इस्लाम स्वीकार करने की, मेरी अल्लाह से प्रार्थना है कि वह हमें इस्लाम पर जमाये रखे।

प्रिय पाठक! अभी आपने अब्दुल अज़ीज़ भाई की भावनायें पढ़ी हैं, यदि उन्हें देख रहे होते तो उसका मज़ा कुछ और ही होता, अब्दुल अज़ीज़ गंभीर तबीयत के हैं, अच्छे अख़लाक़ के हैं, किसी से कोई मतभेद नहीं रखते, हंसते मुस्कुराते रहते हैं। मैंने जब भी उन्हें देखा है उनके चेहरे पर ताजगी और मुस्कान पाई है। हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि उन्हें सलामत रखे, उनके परिवार की सुरक्षा करे और उन्हें अपने परिवार के साथ इस्लाम पर दृढ़ता प्रदान करे। आमीन


CITY TIMES

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *