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धर्म के तौर पर तो नहीं पर सामाजिकता के तौर पर मेरे मन में इस्लामी समाज के प्रति काफी सम्मान है. यह दुनिया का अकेला ऐसा समाज है जिसमे सबसे पहले समाजवाद आया है. यहाँ आमिर गरीब सब समान है. मस्जिद में चाहे वह गुलाम हो, गरीब हो या अपांग सब समान है. सब एक ही कतार में खड़े होकर नमाज पढ़ते है. विदा लेते है. आजकल सब आमिर गरीब रोजा रखते दीखते है. दिनभर रोजी कमाने के लिए म्हणत करते है. और शाम को ही इफ्तारी लेते है. कोई भी प्राच्य भारतीय समाज हिन्दू, बौद्ध अथवा जैन इसके आगे नहीं टिकते. इसलिए मेरा मानना है की दुनिया में जलजला भले आ जाए इस्लामी समाज ज़िंदा है और रहेगा.
कुछ बात ऐसी की हस्ती मिटती नहीं हमारी .
इस्लाम है हम वतन है, हिन्दोसीताँ हमारा.
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