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‘‘दुनिया में बाक़ी और क़ायम रहने वाला दीन (धर्म) यदि कोई है तो वह केवल इस्लाम है’’ -अन्नादुराई (पूर्व मुख्यमंत्री, तमिलनाडु)

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तमिलनाडु के भूतपूर्व मुख्यमंत्री अन्नादुराई इस्लाम के संधर्भ में कहते है –
“इस्लाम केवल एक धर्म नहीं है, बल्कि वह एक जीवन-सिद्धांत और अति उत्तम जीवन-प्रणाली है।” इस जीवन-प्रणाली को दुनिया के कई देश ग्रहण किए हुए हैं।

*जीवन-संबंधी इस्लामी दृष्टिकोण और इस्लामी जीवन-प्रणाली के हम इतने प्रशंसक क्यों हैं? सिर्फ़ इसलिए कि इस्लामी जीवन-सिद्धांत इन्सान के मन में उत्पन्न होने वाले सभी संदेहों ओर आशंकाओं का जवाब संतोषजनक ढंग से देते हैं।
– अन्य धर्मों में शिर्क (बहुदेववाद) की शिक्षा मौजूद होने से हम जैसे लोग बहुत-सी हानियों का शिकार हुए हैं। शिर्क के रास्तों को बन्द करके इस्लाम इन्सान को बुलन्दी और उच्चता प्रदान करता है और पस्ती और उसके भयंकर परिणामों से मुक्ति दिलाता है।

– इस्लाम इन्सान को सिद्ध पुरुष और भला मानव बनाता है। ख़ुदा ने जिन बुलन्दियों तक पहुँचने के लिए इन्सान को पैदा किया है, उन बुलन्दियों को पाने और उन तक ऊपर उठने की शक्ति और क्षमता इन्सान के अन्दर इस्लाम के द्वारा पैदा होती है।’’

*इस्लाम की एक अन्य ख़ूबी यह है कि उसको जिसने भी अपनाया वह जात-पात के भेदभाव को भूल गया।
मुदगुत्तूर (यह तमिलनाडु का एक गाँव है जहाँ ऊँची जात और नीची जात वालों के बीच भयानक दंगे हुए थे।) में एक-दूसरे की गर्दन मारने वाले जब इस्लाम ग्रहण करने लगे तो इस्लाम ने उनको भाई-भाई बना दिया। सारे भेदभाव समाप्त हो गए। नीची जाति के लोग नीचे नहीं रहे, बल्कि सबके सब प्रतिष्ठित और आदरणीय हो गए। सब समान अधिकारों के मालिक होकर बंधुत्व के बंधन में बंध गए।

*इस्लाम की इस ख़ूबी से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ। बर्नाड शॉ, जो किसी मसले के सारे ही पहलुओं का गहराई के साथ जायज़ा लेने वाले व्यक्ति थे, उन्होंने इस्लाम के उसूलों का विश्लेषण करने के बाद कहा था:
‘‘दुनिया में बाक़ी और क़ायम रहने वाला दीन (धर्म) यदि कोई है तो वह केवल इस्लाम है।’’

– आज 1957 ई॰ में जब हम मानव-चिंतन को जागृत करने और जनता को उनकी ख़ुदी से अवगत कराने की थोड़ी-बहुत कोशिश करते हैं तो कितना विरोध होता है। चौदह सौ साल पहले जब नबी (सल्ल॰) ने यह संदेश दिया कि बुतों को ख़ुदा न बनाओ। अनेक ख़ुदाओं को पूजने वालों के बीच खड़े होकर यह ऐलान किया कि बुत तुम्हारे ख़ुदा नहीं हैं। उनके आगे सिर मत झुकाओ। सिर्फ एक स्रष्टा (इश्वर) ही की उपासना करो।
इस ऐलान के लिए कितना साहस चाहिए था, इस संदेश का कितना विरोध हुआ होगा। विरोध के तूफ़ान के बीच पूरी दृढ़ता के साथ आप (सल्ल॰) यह क्रांतिकारी संदेश देते रहे, यह आप (सल्ल॰) की महानता का बहुत बड़ा सुबूत है।

*इस्लाम अपनी सारी ख़ूबियों और चमक-दमक के साथ हीरे की तरह आज भी मौजूद है। अब इस्लाम के अनुयायियों का यह कर्तव्य है कि वे इस्लाम धर्म को सच्चे रूप में अपनाएँ। इस तरह वे अपने रब की प्रसन्नता और ख़ुशी भी हासिल कर सकते हैं और ग़रीबों और मजबूरों की परेशानी भी हल कर सकते हैं। और मानवता भौतिकी एवं आध्यात्मिक विकास की ओर तीव्र गति से आगे बढ़ सकती है।’’
– अन्नादुराई ( भूतपूर्व मुख्यमंत्री तमिलनाडु)


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