देशभर में हो रहा विरोध प्रदर्शन जानिये क्या है इसके ठोस कारण
निक वोटिंग मशिन (EVM ) पहली बार 1982 में पहली बार सीमित तौर पर इस्तेमाल की गयी थी और इस मशीन का 2004 के आम चुनावो के बाद सार्वभौमिक उपयोग किया गयाl इसके आने से कागज़ी बैलेट पेपर चुनावी चरण से बाहर कर दिए गये| इस समय भारत में चुनावी सुधार प्रणाली जोरो पर थीl जिससे कि मतदाता को ये भरोसा दिलाया जा सके की सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष है| यहाँ पर हम उन बातों का ज़िक्र कर रहे है, जिनके कारण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर बैन लगना चाहिएl सम्पूर्ण विश्व ने एक जैसी EVM मशीन को एक सिरे से नकार दिया हैl जो मशिन भारत में evm के नाम से जानी जाती हैl उसे ही अंतर्राष्ट्रीय तौर पर (DRE) यानी *डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशिन* कहा जाता हैl जो वोट को डायरेक्ट इलेक्ट्रॉनिक मेमोरी में सेव कर लेती हैl _इसी से मिलती-जुलती सब मशिन बहुत देशो में बैन की जा चुकी हैl जिनमे जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड इ. यूनाइटेड स्टेट्स के कुछ प्रान्तों में इस मशिन का उपयोग होता हैl लेकिन वो भी कागज़ी बैकअप के साथ
निक वोटिंग मशिन (EVM ) पहली बार 1982 में पहली बार सीमित तौर पर इस्तेमाल की गयी थी और इस मशीन का 2004 के आम चुनावो के बाद सार्वभौमिक उपयोग किया गयाl इसके आने से कागज़ी बैलेट पेपर चुनावी चरण से बाहर कर दिए गये| इस समय भारत में चुनावी सुधार प्रणाली जोरो पर थीl जिससे कि मतदाता को ये भरोसा दिलाया जा सके की सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष है| यहाँ पर हम उन बातों का ज़िक्र कर रहे है, जिनके कारण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर बैन लगना चाहिएl सम्पूर्ण विश्व ने एक जैसी EVM मशीन को एक सिरे से नकार दिया हैl जो मशिन भारत में evm के नाम से जानी जाती हैl उसे ही अंतर्राष्ट्रीय तौर पर (DRE) यानी *डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशिन* कहा जाता हैl जो वोट को डायरेक्ट इलेक्ट्रॉनिक मेमोरी में सेव कर लेती हैl _इसी से मिलती-जुलती सब मशिन बहुत देशो में बैन की जा चुकी हैl जिनमे जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड इ. यूनाइटेड स्टेट्स के कुछ प्रान्तों में इस मशिन का उपयोग होता हैl लेकिन वो भी कागज़ी बैकअप के साथ
विकसित देश जैसे यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जापान और सिंगापुर अभी भी अपने पेपर बैलट पर ही टिके हुए हैl जिससे की मतदाता का भरोसा बरक़रार रखा जा सके| लेकिन भारत अपने इलाके में एकमात्र ऐसा देश है जिसने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशिन के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी है|*
01) ईवीएम मशीनों का उपयोग भी असंवैधानिक और अवैध है
इवीएम मशिन को असंवैधानिक ठहराया जा सकता है क्यूंकि इसके द्वारा मतदाता के मौलिक अधिकारों का हनन होता हैl भारत में मतदान का अधिकार एक कानूनी अधिकार है, लेकिन मतदान एक मतदाता द्वारा प्रयोग किया जाना चाहिएl कैसे नागरिकों को मौलिक अधिकार की गारंटी देता है? जो आर्टिकल 19(1)(a) में कवर किया गया हैl जो बताता है कि वोट देना उसका निजी मामला है और जो नागरिको को मूलभूत अधिकारों की गारंटी देता है|
पारंपरिक कागज़ी प्रणाली, नागरिको के मूलभूत अधिकारों को सुरक्षित रखती है क्योंकि मतदाता को पता रहता है कि उसने किसे वोट दिया था? 1984 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग अवैध करार दे दिया था क्यूंकी रेप्रेज़ेंटेशन ऑफ पीपल (आ) एक्ट 1951 इसकी अनुमति नहीं देता!
आरपी अधिनियम की धारा 61(आ) को शामिल करके 1989 में इसी क़ानून मे संशोधन किया गया थाl हालांकि, संशोधन मे यह साफ तौर पर कहा था कि ईवीएम मशीन का इस्तेमाल उन्ही निर्वाचन क्षेत्र या निर्वाचन क्षेत्रों में अपनाया जा सकता है जहाँ चुनाव आयोग प्रत्येक मामले की खास परिस्थितियों को ध्यान मे रखते हुए आदेश इस संबंध मे आदेश जारी करता है
चुनाव आयोग ने 2004 और 2009 के आम चुनाव मे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशिनों का आम उपयोग जिस तरह किया, क्या वह सुप्रीम कोर्ट के 1984 के फैसले और रेप्रेज़ेंटेशन ऑफ पीपल (आ) एक्ट 1951 का खुला उलंघन नहीं है?
02) EVM का सॉफ्टवेर सुरक्षित नही है
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशिन सिर्फ और सिर्फ तब ही सुरक्षित है जब तक इसमें वास्तविक कोड प्रणाली इस्तेमाल की जाती है| लेकिन चौकानेवाला तथ्य ये है कि EVM मशिन निर्माता कंपनी BEL एंड ECIL ने ये टॉप सीक्रेट (EVM मशीन के सॉफ्टवेर कोड) को दो विदेशी कंपनियो के साथ साझा किया गया हैl विदेशी कंपनियों को दिया सॉफ्टवेयर भी जाहिर तौर पर सुरक्षा कारणों से, निर्वाचन आयोग के पास उपलब्ध नहीं हैl
03) ईवीएम का हार्डवेयर भी सुरक्षित नहीं है
ईवीएम का खतरा सिर्फ उसके सॉफ्टवेर में छेड़खानी से ही नही होता यहाँ तक की उसका हार्डवेयर भी सुरक्षित नहीं हैl डा. अलेक्स हैल्दरमैन मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के मुताबिक *ईवीएम में जो सॉफ्टवेर इस्तेमाल किया जाता है वो वोटिंग मशिन के लिए बनाया गया हैl अगर वो किसी सॉफ्टवेयर हमले से नष्ट होता है तो नया सॉफ्टवेयर तैयार किया जा सकता है और यही बात इसके हार्डवेयर पर भी लागू होती हैl* संक्षेप में भारतीय ईवीएम का कौनसा भी पार्ट आसानी से बदला जा सकता हैl
बंगलौर स्थित सॉफ्टवेयर कंपनी जो की ईवीएम की निर्माता हैl इसमें एक ऑथेंटिकेशन यूनिट लगाई हैl जो सिक्योर स्पिन की सेवा को जारी रखती हैl यह यूनिट 2006 में बनाई और टेस्ट की गयी थीl लेकिन जब इसका इम्प्लीमेंटेशन करना था तो अंतिम समय पर रहस्यमयी तौर इस यूनिट को हटा लिया गया| चुनाव आयोग के इस निर्णय को लेकर कई प्रश्न खड़े हुए थेl लेकिन किसी का भी जवाब नही दिया गया
EVM को छुपाया जा सकता हैl भारतीय evm को इलेक्शन से पहले या बाद में हैक किया जा सकता हैl जैसा की उपर उल्लेख किया जा चूका है कि evm में आसानी से सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर चिप को बदला जा सकता हैl कुछ सूत्रों के मुताबिक भारतीय evm को हैक करने के कई तरीके हैl यहाँ हम 2 तरीको का उल्लेख कर रहे है|
1) हर एक ईवीएम के कण्ट्रोल यूनिट में दो EEPROMs होते हैl जो मतदान को सुरक्षित रखते | यह पूरी तरह से असुरक्षित है और EEPROMs में संरक्षित किया गया डाटा बाहरी सोर्स से बदला जा सकता है| EEPROMs से डाटा पढना और उसे बदलना बहुत आसान हैl*
2) इसमें कण्ट्रोल यूनिट के डिस्प्ले सेक्शन में ट्रोजन लिप्त एक चिप लगाकर हैक किया जा सकता हैl इसे बदलने में सिर्फ 2 मिनट लगते है और सिर्फ 500-600 रुपए में पूरी तरह से यूनिट चिप (हार्डवेयर) बदलने का खर्चा आ जाता| इस तरह से नयी लगाई हुई चिप पुरानी सभी आंतरिक सुरक्षा को बाईपास कर देती हैl यह चिप नतीजो को बदल सकता है और स्क्रीन पर फिक्स्ड रिजल्ट दिखाया जा सकता हैl चुनाव आयोग ने इस तरह की संभावनाओ से पूरी तरह से बेखबर है
04) आंतरिक’ घपलेबाजी होने का खतरा
अच्छी तरह से जमे हुए कुछ राजनितिक सूत्रों के मुताबिक अगर ‘आंतरिक’ अच्छी सांठगांठ हो तो चुनाव के नतीजो पर असर पड़ सकता हैl लेकिन यहाँ सवाल ये पैदा होता है कि ये आंतरिक कौन होते है| जैसा की पारंपरिक बैलेट प्रणाली में ‘आंतरिक’ चुनाव अधिकारी होते थेl लेकिन evm इन आंतरिक लोगो की एक श्रृंखला बना देती है जो भारत निर्वाचन आयोग के दायरे और नियंत्रण से बाहर हैंl इन “अंदरूनी सूत्रों” के कुछ चुनावों फिक्सिंग में संदिग्ध गतिविधियों में शामिल होने की पूरी संभावना हो सकती हैl सम्पूर्ण विश्व को छोड़ सिर्फ भारत में ही चुनाव आयोग ने इस ‘आंतरिक सूत्र’ के खतरे को जिंदा किया हुआ है| ये आंतरिक सूत्र इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशिन बनानेवाली कंपनी *भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड(BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ़ इन्डिया (ECIL)* ये विदेशी कंपनियां जो EVM के लिए चिप सप्लाई करती हैl निजी कंपनियां जो की evm का रखरखाव और जाँच पड़ताल करती हैl (जिसमें से कुछ कंपनियां राजनेता ही चला रहे हैl ) इनमे से कोई भी हो सकते है|
05) संग्रहण और मतगणना चिंता का विषय
ईवीएम जिला मुख्यालय पर जमा होती हैl ईवीएम की सुरक्षा के लिए चुनाव आयोग की चिंता केवल चुनाव के दौरान ही की जाती हैl जहां सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार वोटिंग मशिनों को जीवन चक्र के दौरान एक सुरक्षित वातावरण में रहना चाहिएl *बेव हैरिस एक अमेरिकी कार्यकर्ता कहते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक गिनती के साथ जुड़े कई कदाचार हो सकते हैl हर कोई बारीकी से मतदान देखता हैl लेकिन कोई भी मतगणना को नजदीकी से नही देखता
हमारे चुनाव आयोग को संसदीय चुनाव का संचालन करने के लिए तीन महीने लग जाते हैंl लेकिन सिर्फ तीन घंटे में मतगणना का खेल खत्म हो जाता है! परिणाम और विजेताओं की घोषणा करने के लिए भीड़ में, कई गंभीर खामियों मतगणना की प्रक्रिया में अनदेखी की जाती हैl पार्टियाँ यह इस गतिविधि के हकदार हैं कि किस तरह डाले गये वोट और मतगणना के वोट में अंतर आता हैl अगर यही अंतर राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ कर चले तो सिर्फ अंतर से ही कई सांसद चुने जा सकते है|
06) अविश्वासी मतदान
सिर्फ कुछ पार्टियाँ evm के विरोध में नही बल्कि लगभग सभी पार्टियाँ भाजपासहित कांग्रेस, वामपंथी दलों, आदि तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा), अन्नाद्रमुक, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), जनता दल (यूनाइटेड) जैसे क्षेत्रीय दलों 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद ईवीएम को सबने अरक्षित बताया थाl
कथित तौर पर उड़ीसा के चुनाव के बाद ये कहा गया था कि कांग्रेस ने evm में गड़बड़ी करके ये चुनाव जीता हैl चुनाव आयोग evm की टेक्नोलॉजी के बारे में क्ल्यूलेस हैl चुनाव आयोग ने बिना इसकी प्रयोगी तकनीक जांचे evm का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया हैl नतीजतन, चुनाव आयोग की अपेक्षा के विपरीत चुनावी प्रक्रिया पर बहुत कम नियंत्रण है| न तो चुनाव आयोग, ना वर्तमान आयोग और ना ही उनके पहले वालो को evm टेक्नोलॉजी की समझ थीl तकनीकी सलाहकार के तौर पर एक कमिटी जिसके मुखिया प्रो. पी वी. इन्दिर्सन हैl मिशिगन में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर हल्दरमेन ने डेमोक्रेसी अट रिस्क – “कॅन वी ट्रस्ट आवर ईवीम्स” नामक एक किताब सिर्फ evm के खतरों को केन्द्रित करते हुए लिखी है
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