नुजूल कुरआन से पहले जमाना जाहिलियत था, आज के मुसलमान गाफिल -अस्मा खान

महान क़ुरअान और बेखबर मुसलमान
इसबार हम एक काम करें कि कुरअान को समझ कर पढ़े। रसमन रिवाज़न से थोड़ा हट कर वैसा ही जैसा कि कुरअान को पढ़ने का हक़ है। आपको जो भी भाषा समझ आती है उसमें पढ़े, सबसे अच्छा तो यही है कि अरबी में ही समझ कर पढ़े अगर आपको अरबी समझ नहीं आती तो आप अपनी मातृभाषा उर्दू, हिंदी, बंगला, मराठी, तेलगु, तमिल, कन्नड़, कश्मीरी, पंजाबी… जो भी आपकी भाषा है उसमें क़ुरअान उपलब्ध है उसमें पढ़े।

तोते की तरह रटना और उसमें क्या लिखा है उसे समझे बगैर सालो तक क़ुरअान पढ़ने का क्या मतलब है जबकि यह तो ज़िन्दगी गुज़ारने और क़ानून की किताब है उसे रटने से कैसे काम चलेगा। जैसे कि नियम है कि रोड पर पैदल दाएं चले तो यह नियम जब समझेंगे तभी तो चलेंगे न, नियम रट लिया और मतलब पता नहीं तो क्या होगा!

आपकी ज़िंदगी कोई क़िताब या फिर कोई गुरु या उस्ताद या मार्गदर्शक ही बदल सकता है चाहे तो इतिहास उठाकर देखलो। तो क़ुरअान जैसी महान किताब आपकी ज़िंदगी नहीं मोड़ेगी क्या जिसका एक एक शब्द इतना वजनी है कि शब्दों और हर्फ़ों के जानकार हैरान हैं, लेकिन हम बस राग में पढ़े जा रहे हैं। इनाम और खुशखबरी की आयत पर रो रहे हैं और अज़ाब की आयत पर मुस्कुरा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि क़ुरअान की तिलावत का भी बहुत सवाब है लेकिन यह सिर्फ तिलावत के लिए नाज़िल नही की गई है।

इसबार आप क़ुरअान को समझ कर पढ़े। फिर देखिए क्या होता है, अक़ल के न जाने कितने दरवाजे खुल जाएंगे, सोचने समझने के तरीके बदल जाएंगे, आपको वह नज़र आने लगेगा जो कि आम अक़ल वाले को नहीं दिखता। अल्लाह ने इस क़ुरअान में हिकमत (तत्वज्ञान) रखा है यानि अक़ल का समंदर। देखिए क़ुरअान के नाज़िल होने के पहले के वक़्त को “जमाना ए जाहिलियत” कहते थे और अगर हमें अब भी नहीं पता कि क़ुरअान में क्या लिखा है तो दोस्तों हम क्या हुए????
आज से अहद करें कि कुरान समझ कर पढेंगे चाहे थोड़ा थोड़ा ही सही

CITY TIMES

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