जिस्म की चोटें बताती हैं इरादतन लेकिन पुलिस की निगाह में ग़ैर इरादतन ह्त्या
बुलंदशहर से लेकर शाहजहांपुर तक योगी सरकार में माब लिंचिंग
अगले दिन 20 सितम्बर को शरीफ अहमद पुत्र नबी अहमद ने थाना प्रभारी, जलालाबाद को इसकी लिखित सूचना देनी चाही लेकिन प्रभारी ने उसे लेने से इनकार कर दिया. उल्टे शिकायतकर्ता पर दबाव बनाया और अपने मन से लिखी दूसरी तहरीर पर उसका हस्ताक्षर भी ले लिया जिसमें मोटरसाइकिल सवारों पर हुए इरादतन और घातक हमले का कोई वर्णन नहीं था. इसमें वारदात को सामान्य सड़क दुर्घटना का रूप देने की कोशिश की गई. इसी तहरीर के आधार पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 279, 337, 338, 304ए, 427 के तहत सुनील और चार अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई.
मतलब कि पहली तहरीर में दर्ज आरोप प्रथम दृष्टया सही नज़र आते हैं जिसमें इरादतन लाठियों से मोटरसाइकिल सवारों पर हमला करने और जान से मारने की कोशिश करने की बात है. इस आधार पर आरोपियों के खिलाफ भ.द.स. की धारा 302 लगाया जाना अनिवार्य था. लेकिन दूसरी तहरीर के आधार पर दर्ज प्राथमिकी में तथाकथित सड़क दुर्घटना को अंजाम देने में सुनील के अलावा बाकी चार व्यक्तियों की भूमिका स्पष्ट नहीं है.
यह प्राथमिकी पूरे मामले को पलटने और आरोपियों को बचाने की चालाकी भरी कोशिश है. पुलिस की मंशा साफ़ है कि आरोपी सुनील और उसके हमलावर साथियों की जगह मृत मोटरसाइकिल चालक नवी अहमद को ही अपराधी साबित कर दिया जाए. यह असली कहानी को दबाने, झूठी और कमज़ोर कहानी के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने और इस तरह आरोपियों को संरक्षण देने का सीधा मामला है.
पिटाई से दोनों बेहोश हो गए. लगभग 6 घंटे बाद बरेली अस्पताल में नवी अहमद की मृत्यु हो गयी और गंभीर रूप से घायल अज़मत को कई दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिली. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नवी अहमद के जिस्म पर 11 चोटें पायी गयीं. सुनील को मामूली चोट आई. उसकी और उसके साथियों की अभी तक गिरफ़्तारी नहीं हुई है.
उन्होंने कहा कि लाठियों से दोनों मुसाफिर बेतरह पिटे और एक का तो इलाज के दौरान दम ही टूट गया. लेकिन पुलिस ने योगी सरकार और अपना भी रिकार्ड अच्छा रखने के लिए धारा 304 ए (गैर इरादतन क़त्ल) के अंतर्गत मुक़दमा दर्ज किया,302 के अंतर्गत नहीं।
मृतक नवी अहमद के परिजनों और घायलअजमतउल्ला से मिलने के बाद रिहाई मंच के नेता राजीव यादव ने कहा कि नवी अहमद को जितनी क्रूरता से सांप्रदायिक तत्वों ने अपना शिकार बनाया उससे कहीं अधिक क्रूरता का परिचय पुलिस ने दिया. इस वीभत्स घटना को मामूली दुर्घटना की शक्ल दी और उससे कहीं ज्यादा योगी सरकार के इस दावे को बनाए रखने का आपराधिक झूठ रचा कि सूबे में माब लिंचिंग का कोई मामला नहीं हुआ. नवी अहमद की लाश के फोटोग्राफ और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता लगता है कि उसके साथ वहशियाना सुलूक हुआ. पुलिस ने इस बर्बरता के पीछे खड़ी सांप्रदायिक नफ़रत की जानबूझ कर अनदेखी की. उसे बताना होगा कि मामूली घटना में इतनी उग्र प्रतिक्रिया भला कैसे हो सकती है.