भारत में अल्पसंख्यकों और दलितों पर अत्याचार बढ़े : यूएस कमीशन रिपोर्ट

यू.एस. कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम की रपट के अनुसार केन्द्रीय और राज्य सत्ता एवं तथाकथित राष्ट्रवादी दलितों-आदिवासियों के अधिकारों का हनन कर रहे हैं। रिपोर्ट का सारांश बता रहे हैं बापू राउत

हाल ही में अमेरिकी कमीशन के “इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम” द्वारा सार्वजनिक तौर पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई। यह कमीशन विश्व स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता पर नज़र रखता है और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में उल्लिखित मानकों को ध्यान में रखकर अपना रिपोर्ट बनाता है। और अमेरिकी सरकार को उस देश के प्रति नीतिगत फैसला लेने के लिए सुपुर्द करता है। इस रिपोर्ट में 1 फ़रवरी, 2015 से 29 फ़रवरी, 2016 तक की अवधि की महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया गया है।

दलित और मुस्लिम समुदाय के ऊपर हमले के खिलाफ विरोध
रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में, भारत में धार्मिक सहिष्णुता की स्थिति बिगड गई है और धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघनों में अधिक वृद्धि पाई गई। अल्पसंख्यक समुदायों को हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा बड़े पैमाने पर प्रताड़ना, उत्पीड़न और हिंसा की कई घटनाओं का अनुभव करना पड़ा है। इन तथाकथित राष्ट्रवादी समूहों को भारतीय जनता पार्टी का मौन रूप से समर्थन प्राप्त होने का आरोप लगा है। ये राष्ट्रवादी धार्मिक –विभाजनकारी भाषा का इस्तेमाल कर लोगों क भड़काते हैं, और भिन्न-भिन्न समाज के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा करते हैं।

राष्ट्रीय सरकार या राज्य सरकारों ने धर्मांतरण, गौ हत्या और गैर सरकारी संगठनों द्वारा विदेशों से आर्थिक सहायता लेने पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए कई कानून लागू किए हैं। भारत के संविधान में किये गये प्रावधान अल्पसंख्यक  समुदाय को समानता और धर्म के विश्वास की स्वतंत्रता प्रदान करते है, लेकिन इसके विपरीत सरकारों और तथाकथित राष्ट्रवादियों द्वारा उनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। इन परिस्थितियों को देखकर अमेरिकी कमीशन के “इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम” (USCIRF) ने भारत को फिर से टायर-2  की  स्थिति में रखा है, जहां वह 2009 से स्थित है। इसके तहत आने वाले वर्षों के दौरान अगर स्थिति और गंभीर होती है तथा धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन होते रहे तो ऐसी स्थिति में भारत को अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (IRFA) के तहत “विशेष चिंतावाला देश” घोषित करने के लिए अमेरिकी प्रशासन को कमीशन द्वारा सिफारिश की जा सकती है।


चर्च पर हमले के खिलाफ प्रदर्शन
अधिकारिक तौर पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की अनुमानित संख्या 20 करोड़ है। रिपोर्ट कहती है कि जनवरी 2016 में, अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष संवाददाता रीटा नाडिया के अनुसार, 2015  में दलितों के विरुद्ध अपराधों की संख्या और उसकी भीषणता बढ़ी है। हिंदू दलितों को धार्मिक भेदभाव का सामना करना पडता है। कई मामलों में, “उच्च जातियों” के व्यक्तियों और स्थानीय राजनीतिक नेताओं द्वारा उन हिंदुओ को धार्मिक मंदिरों में प्रवेश करने से रोका है, जिन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (दलितो) का हिस्सा माना गया है। तमिलनाडु राज्य में तिरुपुर जिले के 7 गावों में, दलितों को मंदिरों में  दाखिल होने या आरती करने की अनुमति नहीं थी क्योंकि दलितों के प्रवेश से मंदिर “अपवित्र” हो जाता है ऐसी एक धारणा है। ऐसे मंदिर प्रतिबंध के विरोध में दर्ज मामले जिला अदालत में अधिकतर अनिर्णीत होते हैं। जून 2015 के अनुसार, पिछले 5 वषों में गुजरात राज्य के 8 जिलों में ऐसे 13 मामले दर्ज थे, जहां दलितों द्वारा मंदिरों में प्रवेश करने पर प्रतिबंध था। इसके अतिरिक्त, गैर-हिंदू दलित, विशेष रूप से ईसाइयों और मुसलमानों को हिंदू दलितो के लिए उपलब्ध नौकरियों या स्कूल नियोजन में अधिकारिक आरक्षण नहीं मिलता, जो इन समूहों की महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक उन्नति में बाधा पहुंचाता है।

रिपोर्ट में कहा गया कि भारत एक बहु-धार्मिक, बहु-जातीय, बहु-सांस्कृतिक देश और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है।  भारत विश्व की कुल जनसंख्या की 1/6 जनसंख्या वाला विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है, जहां लगभग 80% जनसंख्या हिंदू, 14% से ज्यादा मुस्लिम, 2.3% इसाई, 1.7% सिख , 1% से कम बुध्दिष्ट हैं (80 लाख), 1% से कम जैन हैं (50 लाख) और एक प्रतिशत वे लोग हैं, जो अन्य धर्मो से सबंधित हैं या जिनका कोई धर्म नहीं है। फिर भी देश ने समय-समय पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसाओ का अनुभव किया है। 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में हुई हिंसक घटनाओं के कारण 40 लोग मारे गए, 12 से अधिक औरतें और लडकियों के साथ बलात्कार हुआ और 50,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए।

रिपोर्ट के नुसार, जब से भाजपा ने सत्ता संभाली है, तब से धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों पर भाजपा नेताओं द्वारा अपमानजनक टिप्पणियाँ हुई हैं और हिंदू राष्ट्रवादी समूहों, जैसे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद द्वारा बल-पूर्वक धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया है और कई हिंसक हमले हुए हैं। भाजपा एक हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से स्थापित हुई है और इन दोनों ने उच्चतम स्तर पर घनिष्ठ संबंध बनाए रखें हैं। ये समूह हिंदुत्व की विचारधारा को मानते हैं, जो हिंदुत्व के मूल्यों पर भारत को एक हिंदू राज्य बनाने का प्रयास करते हैं।

मुजफ्फरनगर दंगे (2013) के पीड़ित
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे वर्तमान सरकार से पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन भाजपा सरकार के समय से उन्हें अधिक लक्षित किया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया कि 2008 और 2010 में भारत में आतंकवादी हमलों के बाद से मुसलमानों (युवा लड़को एंव पुरुषों) को अनुचित जांच और मनमाने ढंग से गिरफ़्तारी का सामना करना पड़ा है, जिसे सरकार आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए आवश्यक ठहरा रही है।  एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक वर्ष के दौरान भारत में मुस्लिम समुदाय के प्रति उत्पीड़न, हिंसा, नफरत और लक्षित अभियानों में वृध्दि हुई है। मुसलमानों पर अक्सर आतंकवादी होने, पाकिस्तान के लिए जासूसी करने, धर्म परिवर्तित करने और हिंदू महिलओं से शादी करने और गायों का कत्लेआम करने का आरोप लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त, मुस्लिम समुदाय के नेताओं और सदस्यों का कहना है कि  मसजिदों की निगरानी रखी जा रही है. अल्पसंख्यकों के इन आरोपों के मद्देनजर अमेरिकन कमीशन (USCIRF) के प्रतिनिधि मंडल ने मार्च 2016 में भारत का दौरा करने की योजना बनाई थी, लेकिन भारत सरकार ने इस पर आपत्ति कर वीजा जारी करने के लिए इन्कार कर दिया था। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने इसे निराशाजनक कहा था।

रिपोर्ट में कहा गया है की, भाजपा और आरएसएस के सदस्यों द्वारा यह दावा करना कि मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि हिंदू बहुमत कम करने का प्रयास है, धार्मिक तनाव को बढ़ाता है। योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज जैसे भाजपा सांसदों द्वारा मुस्लिम जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने के लिए कहकर हिन्दुओं  को मुसलमानों के खिलाफ उद्दीपित किया जाता है। फ़रवरी, 2015 में संघ परिवार की बैठक का वीडियो सामने आया है। जहां स्पष्ट कहा गया कि, प्रतिभागी “मुसलमानों को नियंत्रित करें और राक्षसों को नष्ट करें”। भाजपा शासित कई राज्य और राष्ट्रीय राजनीतिक स्तर के नेता वीडियो में दिखाई दे रहे हैं, मुसलमान दावा करते हैं कि  वे पुलिस पक्षपात और आरएसएस द्वारा पुलिस की धमकी के कारण शायद ही कभी दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करते हैं।

विश्वहिन्दू परिषद् का शक्ति प्रदर्शन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 के मद्देनजर ज्यादातर भारतीय राज्यों (2015 में, 29 में से 24) ने गौ हत्या पर पाबंदी लगाई है। इन प्रावधानों ने मुसलमानों और दलितों को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया है। सितंबर  2015 में,  उत्तर प्रदेश के बिशारा गांव में, लगभग 1,000 लोगों की भीड़ ने मोहम्मद अखलाक को कथित तौर पर गाय की हत्या के लिए मार डाला। रिपोर्ट कहता है कि हत्या व दंगा करने के आरोप की समीक्षाधीन अवधि के अंत तक कोई अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध नहीं हुई। अक्टूबर 2015 में कश्मीर में जाहिद रसूल भट्ट को कथित तौर पर गौ हत्या के लिए गायों को ले जाने के कारण आग लगाकर मार दिया गया। पिछले दो वषों में भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के सदस्यों द्वारा गौमांस प्रतिबन्ध कानून के उल्लंघन का इस्तेमाल हिंदुओ को मुसलमानों और दलितों पर हिंसक हमला करने के लिए भड़काया गया।

हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने तथाकथित “घर वापसी” कार्यक्रम के हिस्से के रूप में हजारों ईसाई और मुसलमान परिवारों को हिंदू धर्म में वापस लाने की योजना की घोषणा की। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए तथाकथित हिंदू राष्ट्रवादियों ने इस अभियान के लिए धन इकट्ठा करना शुरू किया। लेकिन घरेलू और अंतराष्ट्रीय हाहाकार के बाद आरएसएस ने अपनी योजना को स्थगित कर दिया। फिर भी, 2015 में भारत के धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों का छोटे पैमाने पर बलपूर्वक धर्मांतरण की रिपोर्ट सामने आई है।

जिस तरह हमेशा से होता आ रहा है, उसी तरह भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को  ख़ारिज किया है। और रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए है। लेकिन इससे अच्छा ये होता कि जो घटक इन परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार है, उनपर कार्यवाही का आश्वासन देकर देश के अल्पसंख्यक समुदायों और दलितो कों आश्वासित किया होता। सत्ता में कौन सी भी सरकारे आये, लेकिन वह कभी भी अल्पसंख्यक और दलितों को सुनना नहीं चाहती। डरबन में हुई मानवाधिकार परिषद में कांग्रेस की सरकार ने भी यही भूमिका अदा की थी।

लेकिन अमेरिकी कमीशन के “इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम” द्वारा जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई, उसमे दलितों के प्रश्नों और अत्याचार की घटनाओ पर अधिकतर प्रकाश नहीं डाला गया। 1 फ़रवरी, 2015 से 29 फ़रवरी, 2016 तक की अवधि में दलितों पर तथाकथित राष्ट्रवादियों और जातिवादी मानसिकता द्वारा आत्यंतिक अत्याचार किए गए। लेकिन इन सबका प्रतिबिंब इस रिपोर्ट में नहीं दिखाई देता। इसीलिए भारत के अनुसूचित जाति  और जनजाति (दलितों और आदिवासी) को अपने खिलाफ अत्याचारों का लेखा अंतरराष्ट्रीय समुदायोंके सामने रखने और घटनाओ का संकलन एंव उसके विश्लेषण के लिए स्वतंत्र संस्थाओ का निर्माण करना चाहिए।

-बापू राउत
ब्लॉगर, लेखक तथा बहुजन विचारक बापू राउत विभिन्न मराठी व हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लिखते रहे हैं। बहुजन नायक कांशीराम, बहुजन मारेकरी (बहुजन हन्ता) और परिवर्तनाच्या वाटा (परिवर्तन के रास्ते) आदि उनकी प्रमुख मराठी पुस्तकें हैं।
CITY TIMES

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Cart

Your Cart is Empty

Back To Shop