कैसे दिन आये कभी हाजी हज को जाते तो एक रूहानियत,आख़िरत का खौफ…जिंदगीही बदली नज़र आती थी…मआशरे में “हाजी”लकब कोई मामूली नहीं हुआ करता था.लोग उन्हें हाजी कहते थे..मगर उस बन्दे में तो खुदा का खौफ इतना हुआ करता था के एक आज़िज़ बंदा बन कर रहता था.वक़्त बदला,लोग बदले,सोच ओ फ़िक्र बदली…किसी पर तंज़ करना मेरी औकात नहीं है.और ना ही हाजियों पर कुछ कहना मुनासिब समझता हूँ.लेकिन क्या ये कोई बात ढकी छिपी है के जितने भी हज के लिए जा रहे है जा कर वापिस होते है…इनका वक़्त सेल्फी लेने में नहीं गुज़रता है…आखिर साबित क्या करना चाहते है…..?
हज इस्लाम का अहम् तरीन फ्रिज़ है.और यकीनन अल्लाह जिसे बुलाता है वही हज के लिए बैतुल्लाह की जियारत के लिए पहुँचता है.लेकिन हाजी जब हज से वापिस होते है (सेल्फी के साथ ) ,जब मुनादी अज़ान के ज़रिये बुलाता है नमाज़ के लिए तो क्यों घर में बैठ जाता है…?ये बात उन हाजियों के लिए जब मैंने उन्हें कहा के आप बार बार हज क्यों जाते है तो ..?तो उन्होंने जवाब दिया के अल्लाह मुझे बार बार बुलाता है इस लिए मैं हज के लिए जाता हूँ..तो क्या उन्हें नमाज़ के लिए नहीं नहीं बुलाता…?
इक़बाल अहमद जकाती, बेलगाम
CITY TIMES