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मुरादाबाद के दंगों पर नए तथ्य : मुसलमानो के सबसे भयावह नरसंहार को कैसे निगल गयी कांग्रेस कांग्रेस ने अंग्रेजी के एक बड़े अखबार और लेफ्ट के नामी गिरामी लेखकों की मदद से 300 मुसलमानो के कातिलों को सिर्फ सज़ा से नहीं इलज़ाम से भी बचा लिया.
नई दिल्ली : मुसलमानो पर अत्याचार क्या कांग्रेस के राज में भी हुआ है ? क्या वामपंथियों ने भी मुसलमानो को सताया है ? या देश को सिर्फ 1984 के सिख और 2002 के गुजरात दंगे ही याद हैं . आधुनिक भारतीय इतिहास के दो शोधकर्ताओं ने जब मुरादाबाद नरसंहार पर रौशनी डाली तो इंडिया संवाद ने भी दंगो की यादों को कुरेदा. सच ये है कि दंगे बेहद खौफनाक थे लेकिन इन्साफ बेहद शर्मनाक.और जिस तरह इन दंगो को ढका गया उससे देश की सरकार और न्यायिक व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लगते हैं.
जलियांवाला बाग़ जैसा था ईदगाह का गोलीकांड
दिल्ली स्थित जेएनयू के शोधकर्ता शरजील इमाम और साकिब सलीम का शोध जाहिर करता है कि जिस तरह जालियांवाला बाग़ में जनरल डायर ने निर्दोष देशवासियों को गोलियों से छलनी करवाया था उसी तर्ज़ पर आज़ाद हिंदुस्तान में कांग्रेस सरकार की पुलिस ने ईदगाह के नमाज़ के दौरान सैकड़ो मुसलमानो को गोलियों से बींध दिया था. 13 अगस्त 1980 के दिन जब मुरादाबाद के ईदगाह में नमाज़ अता की जा रही थी, तब उसी वक़्त पुलिस और नमाज़ियों की झड़प के बाद पीएसी ने ईदगाह को घेरकर कई राउंड गोलियां चलाईं. वीपी सिंह उस वक़्त यूपी के मुख्यमंत्री थे और इंदिरा गाँधी देश की प्रधानमत्री. ईदगाह गोलीकांड के बाद कई दिनों तक चले दंगो में 300 से ज्यादा मुसलमान मारे गए और कई हज़ार घायल हुए. जेएनयू के शरजील और सलीम का कहना है कि कांग्रेस और वामपंथी नेताओं ने इस दंगे के लिए पुलिस के बजाए मुसलमानो को ही कसूरवार ठहराया.
दिल्ली स्थित जेएनयू के शोधकर्ता शरजील इमाम और साकिब सलीम का शोध जाहिर करता है कि जिस तरह जालियांवाला बाग़ में जनरल डायर ने निर्दोष देशवासियों को गोलियों से छलनी करवाया था उसी तर्ज़ पर आज़ाद हिंदुस्तान में कांग्रेस सरकार की पुलिस ने ईदगाह के नमाज़ के दौरान सैकड़ो मुसलमानो को गोलियों से बींध दिया था. 13 अगस्त 1980 के दिन जब मुरादाबाद के ईदगाह में नमाज़ अता की जा रही थी, तब उसी वक़्त पुलिस और नमाज़ियों की झड़प के बाद पीएसी ने ईदगाह को घेरकर कई राउंड गोलियां चलाईं. वीपी सिंह उस वक़्त यूपी के मुख्यमंत्री थे और इंदिरा गाँधी देश की प्रधानमत्री. ईदगाह गोलीकांड के बाद कई दिनों तक चले दंगो में 300 से ज्यादा मुसलमान मारे गए और कई हज़ार घायल हुए. जेएनयू के शरजील और सलीम का कहना है कि कांग्रेस और वामपंथी नेताओं ने इस दंगे के लिए पुलिस के बजाए मुसलमानो को ही कसूरवार ठहराया.
कांग्रेस और लेफ्ट दोनों ने मुसलमानो को ही गुनहगार बताया
जब इलज़ाम खुद अपने सर पर आ रहे थे तो कांग्रेस ने इस भयावह नरसंहार में अपना वोट बैंक भी भुला दिया. कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उलटे इलज़ाम मुसलमानो पर ही थोपे. कोई शक नहीं जब मुंसिफ ही कातिल हो तो ऐसा इंसाफ पीड़ित को मिलता है. जेएनयू के युवा शोधकर्ताओं ने अंग्रेजी वेबसाइट फर्स्टपोस्ट में प्रकाशित अपने लेख में कहा है कि कांग्रेस और लेफ्ट के नेताओं द्वारा नियंत्रित मीडिया ने मुरादाबाद नरसंहार को हिन्दू -मुस्लिम दंगे की शक्ल देने की कोशिश की थी. खासकर टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपनी रिपोर्टिंग में कहा था कि मुसलमानो के पास हथियार थे और उन्होंने पुलिस पर ज़बरदस्त हमला किया था. बाद में पुलिस ने बचाव में गोली चलायी. लेफ्ट विचारों से प्रेरित , रोमिला थापर के भाई रोमेश थापर ने भी तब एक नई थ्योरी गढ़ी थी. उन्होंने कहा था कि मुसलमानो को भारत में अस्थिरता फैलाने के लिए सऊदी अरब से आर्थिक सहायता मिली जिसके नतीजे में कई दिन तक मुरादाबाद में खूनी दंगे चलते रहे. लेफ्ट विचारधारा की पत्रिका EPW के पत्रकार कृष्णा गाँधी ने भी अपने लेखों में ये प्रचारित किया कि स्थानीय मुस्लिम नेताओं द्वारा सरंक्षित आपराधिक गुटों ने दंगे की शुरुआत की थे. यानी EPW के मुताबिक दंगो की ज़िम्मेदार कांग्रेस सरकार, स्थानीय प्रशासन या PAC नहीं बल्कि मुसलमान खुद थे. सिर्फ सैय्यद शहाबुद्दीन ऐसे नेता रहे जिन्होंने कहा कि पुलिस ने मुसलमानो पर खुलकर गोली चलाई जबकि नमाज़ के वक़्त किसी भी मुसलमान के पास कोई हथियार नहीं थे.
जब इलज़ाम खुद अपने सर पर आ रहे थे तो कांग्रेस ने इस भयावह नरसंहार में अपना वोट बैंक भी भुला दिया. कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उलटे इलज़ाम मुसलमानो पर ही थोपे. कोई शक नहीं जब मुंसिफ ही कातिल हो तो ऐसा इंसाफ पीड़ित को मिलता है. जेएनयू के युवा शोधकर्ताओं ने अंग्रेजी वेबसाइट फर्स्टपोस्ट में प्रकाशित अपने लेख में कहा है कि कांग्रेस और लेफ्ट के नेताओं द्वारा नियंत्रित मीडिया ने मुरादाबाद नरसंहार को हिन्दू -मुस्लिम दंगे की शक्ल देने की कोशिश की थी. खासकर टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपनी रिपोर्टिंग में कहा था कि मुसलमानो के पास हथियार थे और उन्होंने पुलिस पर ज़बरदस्त हमला किया था. बाद में पुलिस ने बचाव में गोली चलायी. लेफ्ट विचारों से प्रेरित , रोमिला थापर के भाई रोमेश थापर ने भी तब एक नई थ्योरी गढ़ी थी. उन्होंने कहा था कि मुसलमानो को भारत में अस्थिरता फैलाने के लिए सऊदी अरब से आर्थिक सहायता मिली जिसके नतीजे में कई दिन तक मुरादाबाद में खूनी दंगे चलते रहे. लेफ्ट विचारधारा की पत्रिका EPW के पत्रकार कृष्णा गाँधी ने भी अपने लेखों में ये प्रचारित किया कि स्थानीय मुस्लिम नेताओं द्वारा सरंक्षित आपराधिक गुटों ने दंगे की शुरुआत की थे. यानी EPW के मुताबिक दंगो की ज़िम्मेदार कांग्रेस सरकार, स्थानीय प्रशासन या PAC नहीं बल्कि मुसलमान खुद थे. सिर्फ सैय्यद शहाबुद्दीन ऐसे नेता रहे जिन्होंने कहा कि पुलिस ने मुसलमानो पर खुलकर गोली चलाई जबकि नमाज़ के वक़्त किसी भी मुसलमान के पास कोई हथियार नहीं थे.
इंडिया संवाद ने भी नए तथ्यों की तस्दीक की..चौंका देने वाले हैं खुलासे
जेएनयू के शोधकर्ताओं के नए खुलासे की तस्दीक के लिए इंडिया संवाद ने उर्दू के लेखक और संपादक हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी से बात की जिन्होंने मुरादाबाद में ढाई महीना रहकार तब दंगो को कवर किया था. हिसामुल कहते हैं कि ईद की नमाज़ के वक़्त ईदगाह के अंदर हथियार ले जाने के आरोप सरासर झूठे हैं. ” दरअसल ईदगाह के गेट के भीतर जानवर (सुअर) घुस जाने को लेकर नमाज़ियों और PAC के जवानो में झड़प हो गयी थी. मामला नियंत्रण से बाहर देखते हुए जवानो ने ईदगाह में ही फायरिंग कर दी. फिर तो सारा मंज़र ही कुछ सेकंड में बदल गया, ” हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी बताते हैं. ईदगाह में ही कोई 82 -83 नमाज़ी मारे गए. लाशों के ढेर लग गए थे. बाद में काफी दिनों तक चली हिंसा में 250-300 मुसलमान और मारे गए. हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी ने कहा कि इस सिलसिले में उन्होंने 14 अगस्त 1980 को तत्कालीन यूपी के मुख्यमंत्री वीपी सिंह की उस ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस को भी कवर किया था जिसके बाद सच बोलने वाले दो मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया था.
जेएनयू के शोधकर्ताओं के नए खुलासे की तस्दीक के लिए इंडिया संवाद ने उर्दू के लेखक और संपादक हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी से बात की जिन्होंने मुरादाबाद में ढाई महीना रहकार तब दंगो को कवर किया था. हिसामुल कहते हैं कि ईद की नमाज़ के वक़्त ईदगाह के अंदर हथियार ले जाने के आरोप सरासर झूठे हैं. ” दरअसल ईदगाह के गेट के भीतर जानवर (सुअर) घुस जाने को लेकर नमाज़ियों और PAC के जवानो में झड़प हो गयी थी. मामला नियंत्रण से बाहर देखते हुए जवानो ने ईदगाह में ही फायरिंग कर दी. फिर तो सारा मंज़र ही कुछ सेकंड में बदल गया, ” हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी बताते हैं. ईदगाह में ही कोई 82 -83 नमाज़ी मारे गए. लाशों के ढेर लग गए थे. बाद में काफी दिनों तक चली हिंसा में 250-300 मुसलमान और मारे गए. हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी ने कहा कि इस सिलसिले में उन्होंने 14 अगस्त 1980 को तत्कालीन यूपी के मुख्यमंत्री वीपी सिंह की उस ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस को भी कवर किया था जिसके बाद सच बोलने वाले दो मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया था.
वीपी सिंह सच दबा रहे थे लेकिन मंत्री ने पुलिस फायरिंग की असलियत बता दी
ईदगाह में पुलिस फायरिंग के बाद वीपी सिंह ने उसी रात यूपी के दो कैबिनेट मंत्री अब्दुर रहमान नश्तर और जगदीश प्रसाद को मौके पर भेजा था. मौके का हाल लेकर लखनऊ लौटे दोनों मंत्रियों को वीपी सिंह ने अगले दिन अपनी प्रेस कान्फरेन्स में बैठाया.” मै भी प्रेस कांफ्रेंस कवर कर रहा था. वीपी सिंह ने अपनी सरकार और पुलिस को बचाने के लिए आपसी झगड़े को तरजीह दी. इस बीच कैबिनेट मंत्री अब्दुर रहमान नश्तर ने प्रेस कांफ्रेंस के बेच में खुलासा किया कि मामला PAC जवानो की फायरिंग से भड़क गया था. नश्तर ने आगे कहा कि मौके पर फैसला लेने वाला कोई जिम्मेदार अफसर नहीं था. उन्होंने सारा दोष PAC जवानो पर मढ़ दिया. नश्तर के कड़वे सच से वीपी सिंह तिलमिला गए और उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस वहीँ खत्म कर दी. कुछ देर बाद वीपी सिंह ने दोनों मंत्री-अब्दुर रहमान नश्तर और जगदीश प्रसाद को सरकार से बर्खास्त कर दिया. उसी रात इंदिरा गाँधी ने फ़ोन पर नश्तर से बात की और जब उन्हें असलियत पता लगी तो नश्तर को दिल्ली बुला लिया,” वरिष्ठ पत्रकार हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी ने इंडिया संवाद को बताया.
ईदगाह में पुलिस फायरिंग के बाद वीपी सिंह ने उसी रात यूपी के दो कैबिनेट मंत्री अब्दुर रहमान नश्तर और जगदीश प्रसाद को मौके पर भेजा था. मौके का हाल लेकर लखनऊ लौटे दोनों मंत्रियों को वीपी सिंह ने अगले दिन अपनी प्रेस कान्फरेन्स में बैठाया.” मै भी प्रेस कांफ्रेंस कवर कर रहा था. वीपी सिंह ने अपनी सरकार और पुलिस को बचाने के लिए आपसी झगड़े को तरजीह दी. इस बीच कैबिनेट मंत्री अब्दुर रहमान नश्तर ने प्रेस कांफ्रेंस के बेच में खुलासा किया कि मामला PAC जवानो की फायरिंग से भड़क गया था. नश्तर ने आगे कहा कि मौके पर फैसला लेने वाला कोई जिम्मेदार अफसर नहीं था. उन्होंने सारा दोष PAC जवानो पर मढ़ दिया. नश्तर के कड़वे सच से वीपी सिंह तिलमिला गए और उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस वहीँ खत्म कर दी. कुछ देर बाद वीपी सिंह ने दोनों मंत्री-अब्दुर रहमान नश्तर और जगदीश प्रसाद को सरकार से बर्खास्त कर दिया. उसी रात इंदिरा गाँधी ने फ़ोन पर नश्तर से बात की और जब उन्हें असलियत पता लगी तो नश्तर को दिल्ली बुला लिया,” वरिष्ठ पत्रकार हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी ने इंडिया संवाद को बताया.
इंदिरा गाँधी को गुमराह करने के लिए वीपी ने ली टाइम्स ऑफ़ इंडिया से मदद
प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को असलियत न पता लगे इसलिए वीपी सिंह ने फटाफट टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अपने एक खास पत्रकार से संपर्क किया. हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी बताते हैं,” दरअसल तब टाइम्स ऑफ़ इंडिया की तूती बोलती थी और इंदिरा गाँधी भी अख़बार का संज्ञान लेती थीं. इसलिए वीपी सिंह ने लखनऊ के मशहूर पत्रकार विक्रम राव को हेलीकाप्टर से मुरादाबाद भेजा. राव ने लौटकर नई कहानी छापी. उन्होंने लिखा कि सऊदी अरब के पेट्रो डॉलर की कमाई दंगे के पीछे अहम वजह थी. सऊदी की आर्थिक सहयता से ही मुरादाबाद के कुछ मुसलमानो तक हथियार पहुंचे जिसके कारण इतनी बड़ी हिंसा हुई. ये कहानी इंदिरा गाँधी ने भी पढ़ी और कुछ दिन के लिए वीपी सिंह की कुर्सी बच गयी. इस बीच पुलिस फायरिंग के बाद मुरादाबाद में हिन्दू-मुस्लिम दंगे शुरू हो गए. इन दंगो के कारण ईदगाह की पुलिस फायरिंग से लोगों का ध्यान हट गया. हिसामुल आगे बताते हैं कि बाद में इंदिरा गाँधी ने केंद्रीय मंत्री पी शिव शंकर और सीएम ज़ाफ़र शरीफ को मुरादाबाद भेजा. उसके बाद इंदिरा गाँधी खुद मुरादाबाद गयी. जब तक उन्हें सारी हकीकत पता लगती तब तक देर हो चुकी थी. कांग्रेस को फिर अपना वोट बैंक याद आया. शायद इसलिए आज़ाद भारत की इस सबसे भयावह पुलिस फायरिंग काण्ड को दफन कर दिया गया . एक सोची समझी रणनीति के तहत मुरादाबाद दंगो की जांच इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एमपी सक्सेना के सुपुर्द कर दी गयी. सच तो ये है कि सक्सेना इस जांच के लिए कांग्रेस के ‘कोल्ड स्टोरेज’ इंचार्ज थे.
प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को असलियत न पता लगे इसलिए वीपी सिंह ने फटाफट टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अपने एक खास पत्रकार से संपर्क किया. हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी बताते हैं,” दरअसल तब टाइम्स ऑफ़ इंडिया की तूती बोलती थी और इंदिरा गाँधी भी अख़बार का संज्ञान लेती थीं. इसलिए वीपी सिंह ने लखनऊ के मशहूर पत्रकार विक्रम राव को हेलीकाप्टर से मुरादाबाद भेजा. राव ने लौटकर नई कहानी छापी. उन्होंने लिखा कि सऊदी अरब के पेट्रो डॉलर की कमाई दंगे के पीछे अहम वजह थी. सऊदी की आर्थिक सहयता से ही मुरादाबाद के कुछ मुसलमानो तक हथियार पहुंचे जिसके कारण इतनी बड़ी हिंसा हुई. ये कहानी इंदिरा गाँधी ने भी पढ़ी और कुछ दिन के लिए वीपी सिंह की कुर्सी बच गयी. इस बीच पुलिस फायरिंग के बाद मुरादाबाद में हिन्दू-मुस्लिम दंगे शुरू हो गए. इन दंगो के कारण ईदगाह की पुलिस फायरिंग से लोगों का ध्यान हट गया. हिसामुल आगे बताते हैं कि बाद में इंदिरा गाँधी ने केंद्रीय मंत्री पी शिव शंकर और सीएम ज़ाफ़र शरीफ को मुरादाबाद भेजा. उसके बाद इंदिरा गाँधी खुद मुरादाबाद गयी. जब तक उन्हें सारी हकीकत पता लगती तब तक देर हो चुकी थी. कांग्रेस को फिर अपना वोट बैंक याद आया. शायद इसलिए आज़ाद भारत की इस सबसे भयावह पुलिस फायरिंग काण्ड को दफन कर दिया गया . एक सोची समझी रणनीति के तहत मुरादाबाद दंगो की जांच इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एमपी सक्सेना के सुपुर्द कर दी गयी. सच तो ये है कि सक्सेना इस जांच के लिए कांग्रेस के ‘कोल्ड स्टोरेज’ इंचार्ज थे.
दीपक शर्मा
Email deepaks1074@gmail.com
twitter @deepakIndSamvad
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