नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को शुक्रवार (20 अप्रैल) खारिज कर दिया जिसमें केंद्र को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि मुस्लिम पुरूषों से शादी कर चुकी हिंदू महिलाओं पर तीन तलाक या बहुविवाह के नियम लागू नहीं होने चाहिए।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा की पीठ ने कहा कि मुस्लिम पसर्नल लॉ में बदलाव संबंधी तीन तलाक का मामला पहले ही उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है इसलिए वह इस मामले में सुनवाई नहीं करेगी।
पीठ ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि इस मामले की सुनवाई के लिए एक संवैधानिक पीठ का गठन किया गया है। इसलिए इसके द्वारा बनाया गया कानून समाज की सभी महिलाओं एवं बच्चों पर लागू होगा। अदालत ने यह भी कहा, ‘‘सभी महिलाओं को कानून के तहत समान सुरक्षा पाने का हक है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘इसके (उच्चतम न्यायालय के मामले पर विचार करने) मद्देनजर हम इस मामले पर सुनवाई को इच्छुक नहीं हैं। याचिका को खारिज किया जाता है।’’
वकील विजय कुमार शुक्ला द्वारा दायर इस जनहित याचिका में तीन तलाक से प्रभावित हिंदू महिलाओं की दुर्दशा का जिक्र किया गया है। इस याचिका में विशेष विवाह कानून या विवाह पंजीकरण अनिवार्यता कानून के तहत अंतर-जातीय विवाह के पंजीकरण को इस उपधारा के साथ अनिवार्य बनाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि यदि अंतरजातीय विवाह का पंजीकरण नहीं कराया जाता है तो जुर्माना लगाया जाएगा।
उच्चतम न्यायालय की एक संविधान पीठ 11 मई से कई याचिकाओं की सुनवाई करेगी जिनमें तीन तलाक और बहुविवाह को असंवैधानिक एवं महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण बताते हुए इन्हें चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि मुस्लिमों में पाए जाने वाला तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह ‘बेहद अहम’ मुद्दे हैं और इनसे ‘भावनाएं’ जुड़ी हैं। (यहाँ से साभार है)
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