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म्यांमार के रख़ाइन प्रांत में जारी हिंसा की वजह से हज़ारों लोग अपना घर छोड़कर भाग रहे हैं. म्यांमार में अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हिंदू परिवार भी बांग्लादेश सीमा की ओर भागने को मजबूर हैं. मुसलमानों के साथ हिन्दुओं पर भी अत्याचार का मतलब साफ़ है के बुद्धिस्ट के अलाव किसीको बक्शा नहीं जाएगा. बौद्ध बहुल म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर कई तरह के प्रतिबंध हैं. यहां कई सालों से रोहिंग्या और बौद्धों के बीच संघर्ष चल रहा है. दसियों हज़ार रोहिंग्या जान बचाकर बांग्लादेश भाग चुके हैं. रोहिंग्या लोग म्यांमार सरकार पर नस्लीय हिंसा का आरोप लगाते रहे हैं.
म्यांमार में जारी हिंसा की वजह से 400 से ज्यादा हिंदू भी अपना घर छोड़ चुके हैं. इनमें महिलाओं और बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है. कई लोगों की हत्या की गई है जबकि बहुत से घरों में आग लगा दी गई है. कॉक्स बाज़ार में हिंदू बुद्धिस्ट क्रिस्चियन यूनिटी काउंसिल के नेता स्वपन शर्मा ने बताया कि उखिया के कुटुप्लोंग शरणार्थी शिविर से 412 हिंदुओं ने मंदिरों और आसपास की जगहों में शरण ले रखी है.
कॉक्स बाजार के जिला प्रशासन ने भी इसकी पुष्टि की है.
जान बचाकर सीमा की ओर भाग रहे रोहिंग्या, बांग्लादेश ने वापस खदेड़ा
सेना ने किया अत्याचार
रमा कर्माकर अपने दो बच्चो के साथ रख़ाइन प्रांत के रिक्ता गांव में रहने आई थी. म्यांमार सेना ने उनके पति समेत गांव के कई लोगों की हत्या कर दी. आरोप है कि सेना ने उनके घरों में आग लगा दी और महिलाओं व बच्चों का उत्पीड़न किया. इस वजह से कई हिंदू परिवार बांग्लादेश की तरफ भागने को मजबूर हो गए. रिक्ता गांव के अलावा चिआंगछारी और फकीराबाज़ार के गांवों में रहने वाले हिंदू भी अपना-अपना घर छोड़कर बांग्लादेश की तरफ भाग रहे हैं.
कादिर कल्लोल बीबीसी संवाददाता, ढाका
जान बचाकर सीमा की ओर भाग रहे रोहिंग्या, बांग्लादेश ने वापस खदेड़ा
सेना ने किया अत्याचार
रमा कर्माकर अपने दो बच्चो के साथ रख़ाइन प्रांत के रिक्ता गांव में रहने आई थी. म्यांमार सेना ने उनके पति समेत गांव के कई लोगों की हत्या कर दी. आरोप है कि सेना ने उनके घरों में आग लगा दी और महिलाओं व बच्चों का उत्पीड़न किया. इस वजह से कई हिंदू परिवार बांग्लादेश की तरफ भागने को मजबूर हो गए. रिक्ता गांव के अलावा चिआंगछारी और फकीराबाज़ार के गांवों में रहने वाले हिंदू भी अपना-अपना घर छोड़कर बांग्लादेश की तरफ भाग रहे हैं.
कादिर कल्लोल बीबीसी संवाददाता, ढाका
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