शिविरों में रह रहे अहमद नाम के शरणार्थी ने अंग्रेजी अखबार गार्डियन को म्यांमार सेना के हैवानियत के बारें में बताया. उसने बताया, सेना के जवानों ने हमारे गांव के पास की एक नदी के किनारे पर भाग रहे लोगों को रोक लिया. कुछ लोगों को तो मौके पर ही गोली मार दी और कुछ लोग जो भागने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें पानी में डुबो दिया.
उसने बताया, वह नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में छुपा हुआ था. उसने अपनी आखों से अपने परिवार को खत्म होता देखा. अहमद का कहना है कि सेना के जवान बड़े लोगों को गोली मार रहे थे और बच्चों को नदी में फेंक रहे थे. इन बच्चों में उनकी छह महीने की बेटी भी शामिल थी.
अली ने बताया, ‘मैं गांव में उत्तरी दिशा में रहता था और सेना के जवान नदी पार करके आ गए थे. मैं मेरे परिवार को छोड़कर जंगल की ओर आया ताकि गांव की ओर आ रहे जवानों को देख सकूं.हमने सुबह आठ बजे तक इंतजार किया और देखा कि वह गांव में घुस रहे हैं.मैं मेरे परिवार को लेने के लिए वापस आया.लेकिन हम लोग जल्दी में थे और मेरी बुजुर्ग दादी चल नहीं पा रही थी.जंगल से हम लोगों ने अपने घरों को जलते हुए देखा. जब जवान वहां से चले गए तो मैं गांव में वापस गया. गांव में मैंने देखा कि कई लोगों को गोली मार दी गई. मेरी दादी की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई.’