नई दिल्ली। पांच राज्यों के चुनावों के नतीजे आने के बाद ईवीएम में छेड़छाड़ किए जाने के आरोप लग रहे हैं। ये आरोप अब भले ही नए लग रहे हैं लेकिन ईवीएम बहुत पहले से ही संदिग्धता के घेरे में रही है। दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मान चुके हैं कि ईवीएम विश्वसनीय नहीं है, इसमें छेड़छाड़ संभव है।
साल 2012 में दिल्ली हाई कोर्ट ने ईवीएम के साथ छेड़छाड़ संभव होने की बात कही थी। कोर्ट ने कहा था, “भारत की चुनाव प्रणाली में ईवीएम रीढ़ की हड्डी साबित हुई है इनमें छेड़छाड़ की बात से इनकार नहीं किया जा सकता।” दिल्ली हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को ईवीएम के माध्यम से वोटों को दर्ज करने के लिए पेपर ट्रेल को शामिल करने के निर्देश देने से इनकार कर दिया था और इससे बचाव की गेंद चुनाव आयोग के पाले में डाल दी थी।
जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस राजीव सहाय एंडला की खंडपीठ ने कहा था, “ईवीएम के साथ छेड़छाड़ करना असंभव नहीं है।” पीठ ने आगे कहा, “इस मामले पर चुनाव आयोग को कोई भी निर्देश जारी करना मुश्किल है, फिरभी इलेक्शन कमीशन को संदेह दूर करने के रास्ते निकालने चाहिए।” दायर याचिका में कहा गया था, “ईवीएम मशीनों में पारदर्शिता की कमी है।” याचिकाकर्ता के मुताबिक, “इंग्लैंड, अमेरिका और जापान में ईवीएम की असफलता के चलते उनका बहिष्कार किया जा चुका है, इन देशों में चुनाव के दौरान बैलेट पेपर का इस्तेमाल किया जाता है।”
याचिकाकर्ता के मुताबिक, “ईवीएम में इस्तेमाल होने वाले कई उपकरणों का निर्माण जापान में किया जाता है इसके बावजूद जापान में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं किया जाता।” वहीं चुनाव आयोग ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था, देश में बैलेट पेपर से चुनाव कराना संभव नहीं है, इस पर अधिक खर्च आएगा।”
(यह खबर नेशनल दस्तक से साभार)
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