रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर नही कर सकता भारत – संयुक्त राष्ट्र मा.प.

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जहाँ रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार को लेकर विश्वभर में विरोध प्रदर्शनों का दौर जारी है वहीँ भारत के रोहिंग्या शरणार्थीयों पर हालिया बयान से दुनिया भौचक्क है. गौरतलब है की भारत के गृह मंत्री ने बयान दिया था की चूंकि भारत पर रिफ्यूजी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाला देश नहीं है इसलिए भारत इस मामले पर अंतर्राष्ट्रीय कानून से हटकर काम कर सकता है, लेकिन बुनियादी मानव करुणा के साथ।’. इस बयान को रोहिंग्या मुसलमानों के विरुद्ध बताया जा रहा है जिसकी आज संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार में भी आलोचना की गयी गयी.

भारत को अंतरराष्ट्रीय कानूनों से बंधे होने की याद दिलाते हुए मानवाधिकार परिषद के प्रमुख जैद राद अल हुसैन ने कहा, ‘भारत इस तरह से सामूहिक तौर पर किसी को निष्कासित नहीं कर सकता। वह लोगों को ऐसे स्थान पर लौटने के लिए मजबूर नहीं कर सकता, जहां उनके उत्पीड़न और अन्य तरीकों से सताए जाने का खतरा है।’ रोहिंग्याओं के खिलाफ म्यांमार में जारी हिंसा को लेकर हुसैन ने कहा, ‘अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा और अन्याय नस्लीय सफाये की मिसाल मालूम पड़ती है।’

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सत्र को संबोधित करते हुए जैद राद अल हुसैन ने पहले 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमले की बरसी का उल्लेख किया और फिर म्यांमार में मानवाधिकार की स्थिति को लेकर चिंता प्रकट की।

इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने ये भी कहा कि म्यांमार में अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा और अन्याय ‘‘नस्ली सफाये’’ की मिसाल मालूम पड़ती है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सत्र को संबोधित करते हुए जैद राद अल हुसैन ने पहले 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमले की बरसी का उल्लेख किया और फिर म्याम्यांमार में मानवाधिकार की स्थिति को लेकर चिंता प्रकट की। उन्होंने बुरूंडी, वेनेजुएला, यमन, लीबिया और अमेरिका में मानवाधिकार से जुड़ी चिंताओं के बारे में बात की। जैद ने कहा कि हिंसा की वजह से म्यांमार से 270,000 लोग भागकर पड़ोसी देश बांग्लादेश पहुंचे हैं और उन्होंने ‘सुरक्षा बलों और स्थानीय मिलीशिया द्वारा रोंहिंग्या लोगों के गांवों को जलाए जाने’ और न्याय से इतर हत्याएं किए जाने की खबरों और तस्वीरों का भी उल्लेख किया। (साभार)

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