लैंगिक उत्पीडन को सांस्कृतिक उत्सव न बनाएं

क्या अजीब संयोग है कि अभी 8 मार्च को पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर महिलाओं के संघर्ष, सम्मान और बराबरी की लड़ाई को समर्थन और सम्मान देते हुए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। जगह जगह महिलाओं को समर्पित प्रोग्राम किये गए, उन्हें सम्मानित किया गया। इसमें सभी देश, सभी धर्म और सभी जातियों के लोगों ने महिलाओं के हको हकूक की बात की। उसी के कुछ दिन बाद ही भारत खासकर उत्तर भारत में होलिका दहन का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है जिसमें एक औरत को जिन्दा जलाया गया और आज भी हम उसी रवायत को ढोते आ रहे हैं। दुनिया का शायद ही कोई धर्म या पंथ होगा जिसमें किसी औरत के जिन्दा जलाने को इतना महिमामण्डित किया जाता हो। लेकिन जिस देश में हर साल हजारों औरतों को दहेज की बलिवेदी पर मिटटी का तेल छिड़ककर या गैस सिलेंडर में जलाकर मार दिया जाता हो, हर साल करोड़ों अजन्मी बच्चियों को जन्म से पहले ही कोख में कत्ल कर दिया जाता हो; उस देश में एक विधर्मी महिला के साथ ऐसे सलूक पर खुशियां ही तो मनाई जाएगी।
(नोट- मनुवादियों द्वारा रिपोर्ट करने के कारण और दो दिन तक सोशल डायरी ऑनलाइन प्रकाशन रोका गया है)
मिथकों के अनुसार दरअसल होलिका अनार्यों के राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी, उस हिरण्यकश्यप की जिसे आर्यों द्वारा धोखे से मार दिया गया था। लेकिन भारत का इतिहास आर्यों के आक्रमण और यहाँ के स्थानीय निवासी द्रविड़ों के संघर्ष और द्रविड़ों की पराजय का इतिहास है जिसमें विजेता आर्यों को देव् और पराजित द्रविड़ों को असुर, दस्यु, राक्षष कहकर संबोधित किया गया। इन्हीं मिथकों के अनुसार हिरण्यकश्यप असुरों का राजा था जो भगवान को नहीं मानता था लेकिन कहीं भी यह नहीं लिखा है कि हिरण्यकश्यप के खिलाफ प्रजा में विद्रोह था इसीलिए विष्णु को उसे खत्म करने के लिए उसके खिलाफ उसके पुत्र प्रल्हाद के अलावा कोई नहीं मिला। तब नारद ने प्रल्हाद को विष्णु भक्ति में और अपने पिता हिरण्यकश्यप के खिलाफ तैयार किया लेकिन प्रल्हाद अपने पिता को मारने के लिए तैयार नहीं हो पाया लेकिन वह अपने पिता का और इस तरह तमाम असुर जाति का दुश्मन जरूर बन गया। मिथकीय गाथाओं के अनुसार तब हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रल्हाद को आग में लेकर बैठ गई क्योंकि उसे आग में न जलने का वरदान था। लेकिन इस आग में होलिका जल गई और प्रल्हाद सकुशल बच गया। अब यह सवाल लाज़िमी है कि होलिका वरदान के बावजूद जल गई और प्रल्हाद बच गया। दरअसल यह पंडावादी ग्रन्थों के लेखक ब्राह्मणों को मिथ्याप्रचार ही है क्योंकि हम आज भी देखते हैं कि होलिका को बाहर से आग लगाई जाती है।सीता को एक साल रावण की कैद में रहने के बावजूद अपने चरित्र की शुचिता को साबित करने के लिए अग्निपरीक्षा देनी पड़ी।
आज भी जो औरतें इस व्यवस्था के खिलाफ हैं उन्हें इस ब्राह्मणवादी सामंती व्यवस्था में बिहार झारखण्ड में डायन कहकर उनकी जमीन हथियाने के लिए मार दिया जाता है। हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश अपनी मर्जी से गैर जाति या समगोत्र में शादी करने पर लड़के लड़की दोनों को जिन्दा जला दिए जाने के लिए कुख्यात हैं। इसलिए यही सम्भव रहा होगा कि उस समय भी होलिका को आर्यों द्वारा पकड़कर जिन्दा जला दिया गया हो और इस तरह की कहानी रची गई हो क्योंकि पिछली सदी के आखिर तक भी भारत में विधवा स्त्री के उसकी पति की जलती चिता में जलाकर मारने पर हर्ष उल्लास और उसका महिमामंडन आम था।आज भी राजस्थान के बड़े इलाके में सती के मंदिर मिल जाएंगे।अभी भी कुछ दिन पहले रामजस कॉलेज के विवाद के बाद कारगिल में खेत रहे एक सैनिक की बेटी ने जब छद्मराष्ट्रवादियों को आइना दिखाया और उनके खिलाफ खड़ी हुई तो उसके खिलाफ सोशल मीडिया पर एक तरह का युद्ध ही छेड़ दिया गया।गुरमेहर कौर को बलात्कार करने व जान से मारने तक की धमकियां दी गईं।भारत के ह्र्दयस्थल आदिवासी इलाको में आज भी भारत के स्वर्ण शासकोंने आदिवासियों के जल, जंगल,  जमीन को कब्जाने के लिए एक तरह का युद्ध छेड़ रखा है जिस में कभी भी उनका शिकार करना, घरों को जला देना मामूली सी बात है।आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार करना, उन्हें गायब कर देना, ज़िंदा जला देना उनके खिलाफ युद्ध का एक पुराना तरीका है।पिछले दिनों आदिवासी शिक्षिका सोनी सोरी के साथ थाने में टॉर्चर किया गया और उसके गुप्तांगों में पत्थर तक घुसेड़ दिए गए।ऐसे ही दलित और अल्पसंख्यक उत्पीड़न के मामलों में दलित और अल्पसंख्यक महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया जाता है; उन्हें जिन्दा जलाकर वंचितों को सबक सिखाने की कोशिश की जाती है।
होली के अगले दिन दुल्हेंडी या फाग पर तो औरतों की और भी ज्यादा दुर्गति होती है। इस दिन तो जैसे पुरुषों को रंग गुलाल लगाने की आड़ में औरतों के यौन उत्पीड़न का बहाना और सर्टिफिकेट सा ही मिल जाता है। उत्तर भारत में तो औरतों पर जबर्दस्ती पानी गिराना, उन्हें गोबर-कीचड़ में लिटाना, अश्लील और अभद्र हरकतें करना, औरतों को कहीं से भी छूना और उसे ‘होली है’ कहकर सही ठहराना औरतों के खिलाफ एक बड़ा अपराध ही माना जाना चाहिए और उसे यौन उत्पीड़न की ही श्रेणी में रखा जाना चाहिए।दर असल यह ब्राह्मणवादी सामंती संस्कृति औरतों को उपभोग की व सेक्स पूर्ति के एक साधन के रूप में ही समझती है।इस की नजर में औरतों का कोई इंसानी दर्ज ही नहीं है।
इसलिए अगर हम एक संवेदनशील और तरक्की-इंसाफ़पसन्द इंसान हैं तो हमें होलिका दहन के रूप में औरतों के जलाये जाने पर खुश होने उसका महिमामंडन किये जाने का विरोध करना चाहिए और महिलाओं की इज़्ज़त करनी चाहिए। फाग में पुरुषवादी-सामंती अश्लील संस्कृति का विरोध करना होगा। असल में फाग प्रकृति से जुड़ा हुआ उत्सव है जब ठंड का मौसम खत्म हो हल्की गर्मी में तब्दील होता है, जब खेतों में सुनहरी कनक की फसल पककर तैयार होती है और किसान को उसके परिवार को गाँव समुदाय को ख़ुशी और उमंग-उल्लास से भर देती है लेकिन ब्राह्मणवादी-सामंती संस्कृति ने इसे औरतों के अपमान का हथियार बना लिया है; हमें इस किसानी पर्व से अश्लील सामंती संस्कृति को उखाड़ फेंककर दोबारा इसे प्रकृति से जोड़ना चाहिए।
-संजय कुमार, पानीपत
(यह लेखक के निजी विचार है)
CITY TIMES

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