बर्मा में हो रहे खुलेआम क़त्लेआम पर सारी दुनिया की खामोशी की वजह शायद यही है कि बर्मा में क़त्ल किये जा रहे लोग मुस्लिम हैं? लानत हो उन तमाम मुस्लिम हुक्मरानों पर जो अपनी ऐश इशरत में डूबे हुए हैं जिनको ये हैवानियत नहीं दिख रही है क्यों बौद्धिष्ट आतंकइयों की आतंकवाद पे चुप हैं? क्या UN को रोहिंग्या के मुस्लिमो की चींखें नहीं सुनाई देती?
मुझे लगता है UN खुद एक आतंकियों का गिरोह है ये उन्ही के कंट्रोल में है जो पूरी दुनिया में हो रहे क़त्लेआम के ज़म्मेदार हैं जिन्होंने आतंकवाद को पैदा किया और फिर पूरी दुनिया में आतंकवाद को फैलाया UN को ना सीरिया दिखता है ना फलीस्तीन दिखता है और ना बर्मा में हो रहा क़त्लेआम दिखता है क्या आतंकवाद का नाम तभी जोड़ा जाएगा जब सामने वाला मुस्लिम होगा? रोहिंग्या में क़त्लेआम करने वाले आतंकवादी नहीं है?