कॉरपोरेट को ‘गूँगे ग़ुलामों’ का गिफ़्ट ! श्रम क़ानून का ख़ून करने में जुटी सरकार !
पिछले दिनों ख़बर आई थी कि 2013-16 के बीच कुल कॉरपोरेट फंडिंग का क़रीब 74 फ़ीसदी (705.81 करोड़) अकेले भारतीय जनता पार्टी के ख़ज़ाने में गया। आख़िर बीजेपी पर इस मेहरबानी की वजह यूँ ही तो नहीं है। मोदी सरकार लगातार संकेत दे रही है कि अगर कॉरपोरेट कंपनियाँ बीजेपी की अंटी इसी तरह गरम करती रहें तो सरकार बदले में वह सब कुछ करेगी जो वे चाहती हैं। चुनावों को बेहद ख़र्चीला बनाकर सामान्य खिलाड़ियों को मैदान से बाहर कर देने की मोदी-अमित शाह रणनीति का आधार कॉरपोरेट कंपनियाँ ही हैं।
सभ्य होने की कसौटी एक ऐसा जीवन है जिसमें सबको काम, आराम और मनोरंजन हासिल हो। इन सभी के लिए 8-8 घंटे का सिद्धांत को आदर्श माना गया। लेकिन इस सिद्धांत को उन्होंने कभी नहीं माना जो मज़दूरों के श्रम के शोषण पर अपना साम्राज्य खड़ा करना चाहते हैं।
इस स्थिति के ख़िलाफ़ कोई बड़ा विद्रोह ना पनपने पाए, इसके लए “गोमाता से लेकर भारतमाता” तक के मसले उछाले जा रहे हैं ताकि देश ‘हिंदू-मुसलमान’ में फँसे रहे। मज़दूरों की आवाज़ पूरी तरह ग़ायब हो जाए। कॉरपोरेट संचालित मीडिया की नज़र में मज़दूरों और उनके हक़ की बात करना ‘अपराध’ ही है, सो वहाँ भी कोई गुन्जाइश नहीं बची।
यह कहना ग़लत ना होगा कि मोदी सरकार श्रम सुधार के नाम पर मज़दूरों की महान उपलब्धियों का ख़ून करना चाहती है। जो क़ानून आठ घंटों से ज़्यादा काम को अपराध घोषित करते थे या न्यूनतम् मज़दूरी को बाध्यकारी बनाते थे, उनमें बदलाव की पुरज़ोर तैयारी हो रही है।
कार्टूनिस्ट काजल कुमार ने अपनी फ़ेसबुक दीवार पर जो लिखा है, वह आने वाले भयावह दिनों की तस्वीर है-
“ क्षमा करें, यह मेरी आज तक की सबसे लंबी पोस्ट है। नौकरीपेशा लोगों को यह ज़रूर पढ़नी चाहिए क्योंकि अब उनकी ज़िंदगी बदलने जा रही है आैर, मीडिया इस पर चुप है.