सीखो का मनुवादियों को करारा तमाचा, गुरूद्वारे के मुख्यद्वार का नाम रखा “शेर मुहम्मद खान”

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सिखों ने शहीदी स्थान गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब का मुख्य द्वार शेर मुहम्मद…
ये तस्वीर है मलेरकोटला के नवाब शेर मुहम्मद खान की। मलेरकोटला पंजाब के संगरूर ज़िले में आने वाला पुरे पंजाब हरियाणा का इकलौता मुस्लिम बाहुल्य इलाका है। 1947 के बंटवारे या 1984 के नरसंहार के वक़्त भी इस इलाके में कोई हिंसा या अप्रिय घटना नही हुई।

रमजान के वक़्त भी जितनी रौनक यहां रहती है, उतनी पंजाब के किसी भी इलाके में नही होती। मुस्लिम सिख एकता की अद्वितीय मिसाल मलेरकोटला की सरज़मी है। इसका कारण भी बड़ा ऐतिहासिक है।

सन 1704 ई में जब गुरु गोबिंद सिंघ जी महाराज के दोनों छोटे साहिबजादे जोरावर सिंघ और फ़तेह सिंघ को सरहिंद के सूबेदार वज़ीर खां की कचहरी में जब जिन्दा दिवार में चुनकर सजा ए मौत का फरमान सुनाया तो उस कचहरी में मलेर कोटला नवाब शेर मुहम्मद खां भी मौजूद थे।

उन्होंने इस पाप के खिलाफ आवाज़ उठाई और सूबेदार के इस फैसले का डट कर विरोध किया। नवाब साहब को याद दिलाया गया कि कैसे सिक्खों के साथ जंग में उनका सगा भाई मारा गया । नवाब साहब ने कहा कि जंग दो सेनाओं में होती है।

जब सैनिक आमने सामने होते हैं तो दोनों तरफ से लोग मरते हैं, उसमे इन मासूम बच्चों का क्या कसूर। हां, मैं जंग का बदला जंग में लूंगा, इन नन्हें बच्चों को मार कर नही। ये इस्लाम के खिलाफ है। फिर भी सूबेदार सरहिंद वज़ीर खां नही माना। उसने गुरु गोबिंद सिंघ के दोनों पुत्रों की सजा बरकरार रखी।


यह देख सुन कर नवाब साहब ” हा दा नारा” यानी हक़ की आवाज़ बोल कर वहां से बाहर चले गए। ये हा दा नारा सिख कौम के लिए एक अमर नारा बन गया। जब इस घटना की जानकारी दशम पिता गुरु गोबिंद सिंघ जी महाराज को हुई तो उन्होंने पत्र लिखकर नवाब शेर मुहम्मद खान के प्रति आभार जताया।

बाद के दिनों में सन 1783 ई में जब सरदार जस्सा सिंघ अहलूवालिया और सरदार बघेल सिंघ के नेतृत्व में सिख राज्य का विस्तार दिल्ली से लेकर कैथल, करनाल, दर्रा खैबर तक फैला, तब भी मलेर कोटला की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा। मलेर कोटला के नवाब साहब ने जो अहसान सिखों पर किया, वो आज भी सिख समुदाय मानता है। 1947 में बंटवारे के वक़्त एक भी मुस्लिम परिवार यहां से पलायन कर पाकिस्तान नही गया ।

आज भी मलेर कोटला नवाब शेर मुहम्मद खान की यादगार और हा के नारे को अमर बनाने के लिए सिख क़ौम ने शहीदी स्थान गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब का मुख्य द्वार शेर मुहम्मद खान के नाम पर है जो सिख मुस्लिम भाईचारे की अद्भुत मिसाल है।

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