सोशल मीडिया पर सुर्खियाँ बनी तीन बलात्कार की सनसनीखेज घटनाएं

उफ़्फ़ यह पागलपन !
पिछले दो-तीन दिनों से सोशल मीडिया की सुर्खियां बनीं सिर्फ तीन घटनाओं को याद करें ! पहली घटना में बिहार के मधुबनी जिले के महादेव मठ गांव की बारह साल की बच्ची के साथ बलात्कार के बाद अपराधियों ने पहले उसकी नसें काटी और फिर उसके शरीर को एसिड से नहलाकर न सिर्फ उसकी हत्या की, बल्कि शव को भी विकृत कर दिया। एक दूसरी घटना में आज सुबह जालौन में छह साल की एक बच्ची के साथ दो लोगों ने बलात्कार किया और बेहोशी में उसे मरा समझ कर उसे फेककर चलते बने। तीसरी घटना बिजनोर की है जहां ट्रेन से यात्रा कर रही एक महिला के साथ रेल पुलिस के एक जवान ने बलात्कार किया। पीड़ित महिला का अस्पताल में इलाज़ चल रहा है।
इनके अलावा ऐसी और कई और वारदातें भी होंगी जो खबरों में जगह नहीं पा सकी होंगी। ये ख़बरें पढ़कर आपको डर ज़रूर लगा होगा। अपनी बहनों, बच्चियों के भविष्य को लेकर चिंताएं भी बढ़ गई होंगी। बलात्कार हर दौर में होते रहे हैं, लेकिन मुझे याद नहीं कि अपने लंबे जीवन में मैंने ऐसा पागलपन कभी देखा था जैसा हाल के कुछ वर्षों में दिखा है। देश में बलात्कार के खिलाफ़ कड़े से कड़े क़ानून के बावजूद पशुता का यह दौर अभी थमता नहीं दिखता। लगता है कि इस देश से स्त्रियों को मिटा देने की ही कोई साज़िश चल रही है।कुछ मूर्ख यह भी कहते पाए जाते हैं कि लड़कियों के उत्तेजक कपड़े लोगों को बलात्कार के लिए प्रेरित करते हैं। ऊपर लिखे तीनों मामले में किसी ने उत्तेजक कपड़े नहीं पहन रखे थे। एक तो बुरके में भी लिपटी हुई थी। आज यह सवाल हर मां-बाप के मन में होगा कि इस वहशी समय में हम कैसे बचाएं अपनी बहनों-बेटियों को ? इन्हें घर में बंद रखना इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। अपनी ज़िंदगी जीने का उन्हें पूरा हक़ है। 
वे सड़कों पर, खेतों में, बसों और ट्रेनों में निकलेंगी और दुर्भाग्य से हर जगह अपराधियों का कब्ज़ा है। पुलिस और क़ानून का डर अब अपराधियों को रहा ही नहीं। वैसे भी हमारे देश के क़ानून में जेल, बेल, रिश्वत और अपील का इतना लंबा खेल है कि न्याय के इंतज़ार में एक जीवन खप जाता है। इक्का-दुक्का चर्चित मामलों को छोड़ दें तो देश के थानों और न्यायालयों में बलात्कार के लाखों मामलों की संचिकाएं बरसों, दशकों से धूल फांक रही हैं। आज की बेहद डरावनी परिस्थितियों में इस्लामी कानूनों के मुताबिक़ एकदम संक्षिप्त सुनवाई के बाद बीच चौराहों पर लटकाकर इन हैवानों को मार डालना एक कारगर क़दम होता, पर एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह संभव नहीं। यह मत कहिए कि मां-बाप बच्चों को नैतिक शिक्षा और अच्छे संस्कार देने की कोशिश करें। मोबाइल और इन्टरनेट के दौर में ज्यादातर बच्चे मां-बाप से नहीं, यो यो हनी सिंह, सनी लिओनी और गूगल पर मुफ्त में उपलब्ध असंख्य अश्लील वीडियो क्लिप से ही प्रेरणा ग्रहण करेंगे।
तो क्या करें हम ? देश की अपनी बहनों-बेटियों के साथ पाशविकता का यह खेल चुपचाप देखते रहें और सोशल मीडिया पर अपडेट डालते रहें ? इसके पहले कि वहशियों के नापाक हाथ हमारे-आपके घरों तक पहुंचे, आईए मिलकर कुछ सोचते हैं।
लेखक ध्रुव गुप्त, पूर्व आईपीएस, पटना
CITY TIMES

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