हमारी तहज़ीब गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड की नहीं, “निकाह” की है! “इज्जत, हया, पाकीज़गी, ताज़ीम, पाक दामनी की है।
क्योंकि……
हम कोई ऐसै वैसे नहीं, उम्मत_ए_मोहम्मदी ﷺ हैं।
हमारा इस्लाम अपनी पसंद का इज़हार करने की इजाज़त देता है, मगर मां बाप की ना फरमानी की इजाज़त नहीं देता।
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