जंग ऐ आजादी के सबसे पहले शहीद शहजादा फतेह अली खान उर्फ टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसफाबाद) हुआ था उनके पिता का नाम हैदर अली थे। उनका पूरा नाम शहजादा फतेह अली खान शाहाब था। आज ही के दिन 4 मई 1799 को 48 साल की उम्र में कर्नाटक के श्रीरंगपट्टनम में आखिरी सांस तक अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते टीपू शहीद हुए।
टीपू सुल्तान की छवि लेकर पिछले कई सालों के राजनीति हो रही है। मैसूर के इस शासक को लेकर अलग-अलग मत है। एक पक्ष उन्हें वीर योद्धा और महान शासक मानता है तो दूसरा सांप्रदायिक नजर से देखता है। लेकिन राजनीति के चश्में से उनकी छवि को न देखा जाए तो वो 16वीं सदी के महान शासक थे।
रॉकेट तकनीक का इस्तेमाल और टीपू
वे पहले ऐसे योद्धा थे जिन्होंने दक्षिण में राज्य विस्तार के दौर में युद्ध में पहली बार रॉकेट तकनीक का इस्तेमाल किया। एक तरह से उन्हें भारत में रॉकेट साईंस का पितामह कहा जा सकता है। इतिहासकारों के मुताबिक, पोल्लिलोर की लड़ाई में उनके रॉकेटों के इस्तेमाल ने पूरा खेल ही बदलकर रख दिया था। इससे टीपू की सेना को खासा फायदा हुआ।
भारत के मिसाइलमैन के कहे जाने वाले ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपनी किताब ‘विंग्स ऑफ़ फायर’ में लिखा है कि उन्होंने नासा के एक सेंटर में टीपू की सेना की रॉकेट वाली पेंटिग देखी थी। उन्होंने अपनी इस किताब में लिखा, “मुझे ये लगा कि धरती के दूसरे सिरे पर युद्ध में सबसे पहले इस्तेमाल हुए रॉकेट और उनका इस्तेमाल करने वाले सुल्तान की दूरदृष्टि का जश्न मनाया जा रहा था। वहीं हमारे देश में लोग ये बात या तो जानते नहीं या उसको तवज्जो नहीं देते।”
कहा जाता है कि उन्होंने जिन रॉकेटों इस्तेमाल किया वो बेहद छोटे होते थे लेकिन उनकी मारक क्षमता कमाल की थी। इनमें प्रोपेलेंट को रखने के लिए लोहे की नलियों का इस्तेमाल होता था। ये ट्यूब तलवारों से जुड़ी होती थी। बताया जाता है कि उन रॉकेट की मारक क्षमता लगभग दो किलोमीटर तक होती थी।
शहीद ऐ हिन्द को भी बान दिया विवादित
वहीँ, दक्षिणपंथी संगठन कहते हैं कि टीपू सुल्तान ने तटीय दक्षिण कन्नड़ जिले में मंदिरों और चर्चों को ध्वस्त करवाया और कई लोगों को धर्मातरण करने पर मजबूर किया था। इतना ही नहीं वे इतिहास को थोड़ा तोड़मरोड़ कर कहते हैं कि टीपू सुल्तान की सेना ने हिंदुओं पर जुल्म किया, मंदिरों को लूटा और उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया।
लेकिन लेखकों और इतिहासकारों का नजरिया इससे ठीक उलट है। टीपू से जुड़े दस्तावेजों की छानबीन करने वाले इतिहासकार टी.सी. गौड़ा कहते हैं कि ये सभी कहानियां जानबूझकर गढ़ी गई हैं। वे कहते है कि टीपू ऐसे भारतीय शासक थे जिनकी मौत मैदान-ए-जंग में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते-लड़ते हुई थी।
इसके उलट टीपू ने श्रिंगेरी, मेल्कोटे, नांजनगुंड, सिरीरंगापटनम, कोलूर, मोकंबिका के मंदिरों को जेवरात दिए और सुरक्षा मुहैया करवाई थी। टी.सी. गौड़ा कहते हैं कि ये सभी जानकारी सरकारी दस्तावेजों में मौजूद हैं। टी.सी. गौड़ा ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि टीपू ने सजा के तौर पर उन लोगों को धर्मातरण के लिए मजबूर किया जिन्होंने ब्रितानी सेना का साथ दिया था।
CITY TIMES