इसके अलावा अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप पर अकेले 1, 21, 000 करोड़ का बैड लोन है। इस कंपनी को 8,299 करोड़ तो साल का ब्याज़ देना है। कंपनी ने 44,000 करोड़ की संपत्ति बेचने का फ़ैसला किया है।
रूइया के एस्सार ग्रुप की कंपनियों पर 1, 01,461 करोड़ का लोन बक़ाया है।
गौतम अदानी की कंपनी पर 96,031 करोड़ का लोन बाक़ी है। कहीं 72000 करोड़ भी छपा है। मनोज गौड़ के जे पी ग्रुप पर 75,000 करोड़ का लोन बाकी है।
10 बड़े बिजनेस समूहों पर 5 लाख करोड़ का बक़ाया कर्ज़ा है। किसान पांच हज़ार करोड़ का लोन लेकर आत्महत्या कर ले रहा है। इन पांच लाख करोड़ के लोन डिफॉल्टर वालों के यहां मंत्री से लेकर मीडिया तक सब हाज़िरी लगाते हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक इन्हें वसूलने में बहुत जल्दी में नहीं दिखता, वैसे उसे नोटबंदी के नोट भी गिनने है। इसलिए 2 लाख करोड़ के एन पी ए की साफ-सफाई की पहल होने की ख़बरें छपी हैं। इन समूहों को 2 लाख करोड़ की संपत्ति बेचनी होगी।
2016 के दिसंबर तक 42 बैंकों का एन पी ए 7 लाख 32 हज़ार करोड़ हो गया । एक साल पहले यह 4 लाख 51 हज़ार करोड़ था।
इस साल के पहले आर्थिक सर्वे में लिखा हुआ है एशियाई संकट के वक्त कोरिया में जितना एन पी था, भारत में उससे भी ज़्यादा हो गया है।
एन पी ए को लेकर शुरू में लेफ्ट के नेताओं ने कई साल तक हंगामा किया, मगर पब्लिक डिस्कोर्स का हिस्सा नहीं बन सका। बाद में किसानों के कर्ज़ माफ़ी के संदर्भ में एन पी ए का ज़िक्र आने लगा।
एन पी ए को भी उद्योगपतियों को मिलि कर्ज़ माफ़ी की नज़र से देखा जाने लगा। इसका दबाव सरकार पर पड़ रहा है। तीन साल तक कुछ नहीं करने के बाद पहली बार कोई सरकार एन पी ए की तरफ कदम बढ़ाती नज़र आ रही है। बैंकिंग कोड बना है, दिवालिया करने का कानून बना है।
लोन न चुकाने वाली कंपनियों के ख़िलाफ़ NATIONAL COMPANY LAW TRIBUNAL( NCLT) में याचिका दायर की गई है।
मगर बैड लोन को लेकर कितनी शांति है। 8 लाख करोड़ लोन है तो मात्इर 25 फीसदी को लेकर ही हरकत क्यों है?
इन सवालों को लेकर कोई भी मीडिया इनके घर नहीं जाएगा। वरना बेचारा रिपोर्टर कंट्री के साथ साथ इकोनोमी से ही बाहर कर दिया जाएगा। सब कुछ आदर से हो रहा है। रिपोर्टर ही नहीं, कोई मंत्री तक बयान नहीं दे सकता है। बेचारा उसकी भी छुट्टी हो जाएगी।
सीबीआई की प्रेस रीलीज़ के अध्ययन के दौरान नोटिस किया कि दस हज़ार करोड़ से भी ज़्यादा बैंकों में फ्राड के मामले की जांच एजेंसी कर रही है। बैंकों में चार हज़ार तक का घोटाला हो जाता है। शिव शंभु, शिव शंभु।
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने उन 12 खातों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं जिन पर 5000 करोड़ से अधिक का एन पी ए है। कुल एन पी ए का यह मात्र 25 फीसदी है।
अर्थव्यवस्था में जब संकुचन आता है तो निवेश का रिटर्न कम होने लगता है। कंपनियां लोन नहीं चुका पाती हैं। यही कारण है कि 2017 के पहले तीन महीने में प्राइवेट कैपिटल इंवेस्टमेंट सिकुड़ गया है। CMIE नाम की एक प्रतिष्ठित संस्था है, इसका कहना है कि अप्रैल और मई में नए निवेश के प्रस्ताव पिछले दो साल में घटकर आधे हो गए हैं। कंपनियों के पास पैसे ही नहीं रहेंगे तो निवेश कहां से करेंगे।
2016 की दूसरी छमाही के बाद से बैड लोन बढ़ता जा रहा है। इस कड़ी में अब छोटी और मझोली कंपनियां भी आ गईं है। बिक्री और मुनाफा गिरने के कारण ये कंपनियां लोन चुकाने में असर्मथ होती जा रही हैं। कई कंपनियां अपनी संपत्ति बेचकर लोन चुकाने जा रही हैं। क्या उनके पास इतनी संपत्ति है, क्या इतने ख़रीदार हैं?
बैंक चरमरा रहे हैं। विलय का रास्ता निकाला गया है। विलय करने से NPA पर क्या असर पड़ेगा, मुझमें यह समझने की क्षमता नहीं है। बिजनेस अख़बारों में इस पर काफी चर्चा होती है मगर बाकी मीडिया को इससे मतलब नहीं। NPA एक तरह का आर्थिक घोटाला भी है। आठ लाख करोड़ के घोटाले की प्रक्रिया को नहीं समझना चाहेंगे आप?
आज के फाइनेंशियल एक्सप्रेस में ख़बर है कि 21 पब्लिक सेक्टर बैंकों के विलय से 10 या 12 बैंक बनाए जायेंगे। देश में स्टेट बैंक की तरह 3-4 बैंक ही रहेंगे। हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक में छह बैंकों का विलय हुआ है। इसकी सफलता को देखते हुए बाकी बैंकों को भी इस प्रक्रिया से गुज़रना पड़ सकता है। 2008 में भी भारतीय स्टेट बैंक में स्टेट बैंक आफ सौराष्ट्र का विलय हुआ था। 2010 में स्टेट बैंक आफ इंदौर का भारतीय स्टेट बैंक में विलय हुआ था।
इस लेख के लिए 16.7.2017 का बिजनेस स्टैंडर्ड, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, 8.5.2016 का हिन्दू, 20.2.2017 का FIRSTPOST.COM, 9.6.2017 का MONEYCONTROL.COM की मदद ली है। सारी जानकारी इन्हीं की रिपोर्ट के आधार पर है।