सिकंदराबाद में कल एक मुस्लिम युवक वाहिद और हापुड़ में भी एक युवक इब्राहिम की भी पीट पीट कर हत्या की ख़बर। हरियाणा में एतेकाफ में कुरान की तिलावत कर रहे एक शख्स की हत्या कर दी गयी।
अब यह खबरें विचलित नहीं करतीं , ना मुझे ना आपको ना ही इस हिन्दुस्तान को।
कभी पड़ोस के बंगलादेश या पाकिस्तान से आती ऐसी ही खबरें पूरे देश को विचलित करतीं थीं क्युँकि वहाँ मरे लोग इस देश के बहुसंख्यक वाले धर्म के लोग होते थे।
मुसलमान मरे तो मरे , वह संवेदना का भी हकदार नहीं है। उदाहरण देखिए कि इस देश के धर्म निरपेक्ष 69% लोगों को भी अब मुसलमानों की ऐसी हत्याओं पर दुख नहीं होता ना यह उनके लिए अब महत्वपूर्ण है।
आज भारत की संवेदना मर गयी है , जीवित होती है तब जब कोई जानवर मरता है , मनुष्य के मरने पर संवेदना मरी पड़ी रहती है , एक लाश की तरह। दरअसल इस देश में अब दलित और मुसलमान एक जानवर से भी बदतर हैं।
यह दुर्घटनाएँ नहीं हैं ना ही सामान्य क्राइम है , दुर्घटना या क्राइम होता तो किसी ऐसी ही दुर्घटना या क्राइम में कोई तिवारी , मिश्र , दूबे , चतुर्वेदी , बनिया या ठाकुर की हत्या होती , ऐसी ही भीड़ द्वारा मारा जाता ? कभी सुना है आपने ?
नहीं , दरअसल भगवा तालिबानी हुकूमत के इस दौर में यह अत्याचार केवल दलितों और मुसलमानों पर जारी है। सोए रहिए , भीड़ द्वारा मारे गये मुसलमानों की संख्या 20 हो चुकी है। शतक बनेगा तो सेलेब्रेशन होगा , तब ताली बजा कर हम और आप जश्न मनाएंगे।
Mohd Zahid भाई की कलम से