ध्रुव सक्सेना समेत 17 पाकिस्तानी isi एजंटो पर देश के खिलाफ युद्ध पुकारने का चालान, जानिये और क्या हुआ

भोपाल। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के लिए जासूसी करने के आरोप में पकड़े गए भाजपा नेता ध्रुव सक्सेना और विश्व हिंदू परिषद के उसके साथियों के खिलाफ एटीएस ने चालान पेश कर दिया है। एटीएस ने 600 पेज के चालान में आरोपियों के खिलाफ इंडियन टेलीग्राफ एक्ट, देश के खिलाफ युद्ध की साजिश रचने का सिलसिलेवार खुलासा किया है।

एटीएस ने आरोपी मनीष गांधी, बलराम सिंह, ध्रुव सक्सेना, मोहित अग्रवाल, मनोज भारती, संदीप गुप्ता, अब्दुल जब्बार, राजीव उर्फ रज्जन तिवारी, संयोग सिंह उर्फ गोविंद, मनोज मंडल, बलराम सिंह, कुश पंडित, जितेंद्र ठाकुर, रितेश खुल्लर, जितेंद्र सिंह यादव और त्रिलोक भदौरिया को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सिस्टम के जरिये अदालत में पेश किया। अदालत ने आरोपियों की हिरासत अवधि 14 दिन के लिए आगे बढ़ा दी है।





आपको बता दें कि 8 फरवरी को बीजेपी की IT सेल में काम करने वाला ध्रुव सक्सेना पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के लिए जासूसी करने के आरोप में पकड़ा गया था। ध्रुव सक्सेना भोपाल जिला भाजयुमो की आईटी सेल में संयोजक था। वह भाजपा के कई बड़े नेताओं का करीबी भी था। उसके फेसबुक प्रोफाइल पर आपको ध्रुव की कई बड़े बीजेपी नेताओं के साथ फोटो देखने को मिल जाएगी।

एटीएस ने ध्रुव सक्सेना के साथ 6 आरोपियों को गिरफ्तार किया था। ये आरोपी फोन के जरिए भारतीय सेना की खुफिया सूचनाएं पाकिस्तान भेजते थे। आरोपियों की गिरफ्तारी भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और सतना के अलावा दिल्ली से की गई थी। सतना जिले के कोलगवां थाना इलाके से पकड़ा गया बलराम सिंह पाकिस्तान से मिले पैसे से कश्मीर के आतंकियों को सूचनाएं पहुंचाता था। ये लोग इंटरनेट कॉल को सेल्यूलर नेटवर्क में बदलकर दूसरे देशों में बैठे अपने आकाओं तक जानकारियां पहुंचाते थे।

जांच में सामने आया था कि आरोपी एक समानांतर टेलीकॉम एक्सचेंज चला रहे थे, जो आईएसआई की मदद के लिए तैयार किया गया था। एटीएस ने आरोपियों के पास से कई चाइनीज उपकरण और मोबाइल फोन, सिम बॉक्स, विभिन्न टेलीकॉम कंपनियों के प्री पेड सिम कार्ड, लैपटॉप और डाटा कार्ड बरामद किए थे। ये अवैध वीओआईपी ट्रैफिक के जरिए इंटरनेट से कॉल करते थे। इन एजेंटों को पकड़ने में केंद्रीय टेलीकॉम मंत्रालय की टीआरए (टेलीकॉम एनफोर्समेंट रिसोर्स एंड मॉनीटरिंग) सेल ने एटीएस की मदद की है।


एटीएस के मुताबिक, टेलीफोन एक्सचेंज के जरिए कॉलर की पहचान नहीं हो पाती थी। इनकी जगह फर्जी नाम और पतों से ली गई सिम की आइडेंटिटी दिखाई देती थी। इन एक्सचेंज के जरिए हवाला और लॉटरी के नाम पर होने वाली धोखाधड़ी को भी अंजाम दिया जाता था।
 
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