“मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान ने के जालिमों ने. पीट पीट कर मार डाला कामरेड ज़फ्फर को.” -हिमांशु रविदास

अखलाक, पहलू खान और और आज मारे गए जफ़र हुसैन में एक और समानता है. ज़फर हुसैन के खिलाफ भी ऍफ़ आई आर हुई है – सरकारी काम काज में बाधा डालने की.
ये सारे मृतक दोषी थे. इनके हत्यारे बेगुनाह हैं.

रामराज्य आ ही गया है.
‘स्वच्छ भारत’ अभियान ने आज हमारे राज्य में एक बलि ले ली. सीपीआई-एमएल के कॉमरेड जफ़र हुसैन की. वे नगरपालिका कर्मचारियों को खुले में शौच कर रही महिलाओं की तस्वीर लेने से रोक रहे थे. वे महिलाएं जिस कच्ची बस्ती से आती हैं, वहां शौचालय न होने के बाबत वे पहले भी शिकायत कर चुके थे.

राजस्थान में लम्बे अरसे तक रहे और अब झारखण्ड निवासी कॉमरेड जिज्ञासु ने उनके बारे में लिखा है, “अपने डेढ़ दशक के राजस्थान प्रवास के दौरान जिन चुनिन्दा साथियों के साथ गरीबों, अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ उन साथियों में से एक अत्यंत जुझारू और संघर्षशील साथी थे कामरेड ज़फर हुसैन. कई आन्दोलनों में राजस्थान पार्टी कमिटी ने मुझे उस क्षेत्र में संगठन निर्माण के लिए जिम्मेवारी दी जहाँ कामरेड ज़फ्फर कार्यरत थे. कामरेड चंद्रदेव ओला और शंकरलाल चौधरी के साथ मिलकर आन्दोलन और संघर्ष की रणनीति बनती थी. राजस्थान निर्माण मजदूर संगठन हो या ट्रेड यूनियन के मोर्चे पर संगठनात्मक गतिविधियाँ- हर वक़्त कामरेड ज़फ्फर तैनात रहते थे.

मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान ने उनकी जान ले ली. प्रतापगढ़ आदिवासी बहुल इलाका है. एक दशक से भी ज्यादा समय से गरीबों के लिए आवाज़ उठाकर आरएसएस और बीजेपी की आँखों की किरकिरी बन गए थे कामरेड ज़फ्फर. एक तो मुसलमान ऊपर से कम्युनिस्ट क्रांतिकारी. फासीवादी सोच की वर्तमान अवधारणा ने स्वच्छ भारत अभियान की पोल खुलते देख उन्हें निशाना बनाया. शौचालय नहीं, महिलाएं खुले में शौच को बाध्य और बीजेपी आरएसएस के लोग इस स्थिति की तस्वीरें लगातार ले रहे थे. महिलाओं को बेईज्ज़त कर रहे थे. संघर्ष की बुलंद आवाज़ एक बार फिर मुखर हुई. कामरेड ज़फ्फर ने विरोध करना शुरू किया. शौच करती महिलाओं की तस्वीरें क्यों ले रहे हो _ बस, क्या था. निशाना बना डाला जालिमों ने. पीट पीट कर मार डाला कामरेड ज़फ्फर को.”

इस हत्या की पूरी रिपोर्ट आप यहाँ पढ़ सकते हैं :

वैसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि इस सरकार की सारी बड़ी पहलकदमियाँ अंततः दलित, अल्पसंख्यक, किसान, मजदूर विरोधी ही क्यों साबित होती हैं.

आपातकाल को याद कीजिये. तब भी बड़ी मानीखेज पहलकदमियाँ हुई थीं.

हिमांशु रविदास की वाल से

CITY TIMES

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