चुनाव आयोग ने माना- ‘ईवीएम में छेड़छाड़ संभव’

चुनाव आयोग ने बेहद नाटकीय तरीके से तीन जून को हैकेथोन का आयोजन किया था। लेकिन अब अचानक मदरबोर्ड खोलने से मना करके चुनाव आयोग ने खुद ही मान लिया है कि इवीएम में छेड़छाड़ संभव है। जबकि अब तक चुनाव आयोग यह दावा करता रहा कि इवीएम में छेड़छाड़ संभव ही नहीं है। लिहाजा, अब तीन जून को हैकेथोन का कोई मतलब ही नहीं है। हाँ, अगर अब भी चुनाव आयोग अपने इस दावे पर कायम है कि इवीएम में छेड़छाड़ संभव नहीं, तो इतनी बंदिश न लगाए।
 
डॉ. विष्णु राजगढ़िया
हैकेथोन नहीं फेकेथोन
दरअसल तीन जून को चुनाव आयोग जो कराना चाहता है, वह हैकेथोन है ही नहीं। हैकेथोन का आयोजन किसी सॉफ्टवेयर की सुरक्षा की जाँच के लिए एक सकारात्मक अभ्यास होता है। इसमें विशेषज्ञों को हर तरह से प्रयोग करके देखने की छूट मिलती है कि सॉफ्टवेयर कितना सुरक्षित है। अगर कोई उसमें कमी निकाल दे, तो निर्माता और इंजीनियर खुश होते हैं कि उस कमी को दूर करने का अवसर मिला।
लेकिन चुनाव आयोग का मकसद इवीएम की संभावित कमी को उजागर करना नहीं, बल्कि छुपाना है। यह इवीएम को बेहतर करने का तकनीकी प्रयास नहीं बल्कि उसकी कमियों को ढंकने का राजनीतिक हथकंडा है।
इसीलिए इतनी बंदिशें रख दी हैं कि यह हैकेथोन नहीं बल्कि फेकेथोन बन कर रह गया है।
निर्वाचन आयोग को संवैधानिक तौर पर एक स्वायत्त संस्था का दर्जा प्राप्त है। इसका विवादों में घिरना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। पूर्व में निर्वाचन आयोग को एक कमजोर संस्था माना जाता था। लेकिन टी.एन. शेषन ने इसे एक रीढ़दार संस्था की हैसियत दिलाई। इससे लोकतंत्र मजबूत हुआ। लिहाजा, इवीएम को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवाद में अपनी साख बचाने की चुनौती निर्वाचन आयोग पर है। यह विवाद नहीं, संवाद के जरिये ही संभव है।
 
अभी चुनाव आयोग जो कर रहा है, उसे इस किस्से में समझा जा सकता है।
एक सुनार का स्टाफ रात में मास्टर चाभी के सहारे तिजोरी खोलकर गहने चुरा लेता था। दरबान को पता चला, तो उसने शिकायत की। लेकिन स्टाफ ने मानने से इंकार कर दिया। उलटे, दरबान को ही चुनौती दी कि तिजोरी खोलकर दिखाओ। दरबान ने चुनौती स्वीकार कर ली। तब शर्त रख दी गई कि मास्टर चाभी के बगैर ही तिजोरी खोलकर दिखाओ।
 
धूमिल हो रही है आयोग की प्रतिष्ठा
इवीएम को लेकर चुनाव आयोग का रवैया ऐसा ही है। मदरबोर्ड में छेड़छाड़ के जरिये हैकिंग संभव है, इस तथ्य को मानकर पुख्ता इंतजाम करने के बजाय अनावश्यक टकराव में जाने से निर्वाचन आयोग की ही प्रतिष्ठा धूमिल होगी। देश की कई प्रतिष्ठित परीक्षाओं में भी तरह-तरह की धांधली होती है। फिर इवीएम का मदरबोर्ड बदलकर हेराफेरी की गुंजाइश को सिरे से नकारना हास्यास्पद है। इसी सप्ताह दिल्ली नगर निगम की दो सीटों पर वीवीपैट वाली नई इवीएम से चुनाव हुए। दोनों में भाजपा हार गई। सच चाहे जो हो, ऐसे उदाहरणों से चुनाव आयोग की ही छवि ख़राब होगी।
इस प्रसंग में दो तथ्य गौरतलब हैं। पहला यह, कि दुनिया के ज्यादातर देशों ने इवीएम का उपयोग करना बंद कर दिया है। ऐसा क्यों हुआ, इस पर गहन विचार जरूरी है।
दूसरा यह, कि जिन इवीएम में वीवीपैट लगी थी, उनकी पर्चियों से चुनावी नतीजे का मिलान करने की तर्कसंगत मांग को चुनाव आयोग ने क्यों ठुकरा दिया? आखिर ऐसे मामलों में खुद आगे बढ़कर अपनी निष्पक्षता और नेकनीयती साबित करने में चुनाव आयोग को किस बात का भय है?
 
आयोग का अड़ियल रवैया उचित नहीं
जो लोग आज इवीएम के सवाल पर केजरीवाल का मजाक उड़ा रहे हैं, उन्हें याद करना चाहिए कि इवीएम पर सबसे ज्यादा सवाल तो खुद आडवाणी जी और सुब्रह्मण्यम स्वामी ने किए हैं। लोकतंत्र की मजबूती के लिए अगर केजरीवाल ने इन सवालों को सामने लाया है, तो धैर्य के साथ इस मामले को नतीजे तक पहुँचने दें।
एक बात और। मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में धांधली रोकने के लिए पिछले दिनों छात्राओं के नाक का कांटा और कान की बाली तक निकलवा दी गई। नाक-कान के कांटे से नकल असंभव है। इसके बावजूद परीक्षा कराने वालों ने इतनी सावधानी बरती। लेकिन चुनाव आयोग तो इस कदर अड़ा है मानो स्वयं ब्रह्मा जी ने उसे कोई अजेय शक्ति दे दी हो।
CITY TIMES

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *