दो नाबालिग लड़कियां हैं. अपने पिता के साथ घर लौट रही हैं. पिता दुकान चलाते हैं. 6 लड़के मोटरसाइकिल और बड़ी गाड़ी में आते हैं. पिता पर हमला करते हैं. पिता को बेहाल कर बेटियों को पकड़ते हैं. उन्हें गाड़ी में ठूंसते हैं. और पिता की आंखों के सामने उनका गैंगरेप करते हैं.
वजह: बदला
लड़कियों का गैंगरेप बदला लेने के लिए किया गया था. मगर बदला उन लड़कियों से नहीं, उनके भाई से था, जो वहां मौजूद ही नहीं था.
रिपोर्ट बताती हैं कि लड़कियों के भाई को पुलिस ने किसी आरोप में धरा था. पूछताछ में उनके भाई ने बता दिया था कि वो कुमत बरिया नाम के आदमी से अवैध तरीके से शराब लिया करता था. इसलिए पुलिस की तलवार अब कुमत पर लटकने लगी थी. बस इसी बात का बदला लेने के लिए कुमत ने 5 और लड़कों के साथ मिलकर उसकी बहनों का रेप कर दिया.
ये मामला गुजरात के दाहोड़ का है.
ये सुनकर हमें अजीब नहीं लगता कि बदला जब एक पुरुष से लेना था तो रेप उसकी बहनों का क्यों? क्योंकि ये हमारे लिए आम बात है. याद है वो फ़िल्में, जब विलेन हीरो से बदला लेने के लिए उसकी मां या बहन को किडनैप कर लेता था. और विलेन ज्यादा बुरा हो तो बहन का रेप भी कर देता था. हीरो उसे बचाता था. इससे न सिर्फ बहन की जान बचती थी, बल्कि हीरो का पौरुष स्थापित होता था.
कभी किसी पुरुष को गाली भी दी जाती है, तो टारगेट उसकी मां और बहन को किया जाता है. गाली का अर्थ होता है, ‘तुम वो हो जो अपनी मां/बहन के साथ संबंध बनाते हो’. चूंकि सेक्स को केवल पुरुष का काम माना जाता है, औरत का नहीं, इस सेक्स संबंध में मां या बहन की सहमति की बात नहीं होती. कुल मिलकर गाली कहती है: तुम वो हो जो अपनी मां/बहन का रेप करते हो.
मगर ये शाब्दिक हिंसा है. वक़्त जब असल हिंसा का हो तो पुरुष को लक्ष्य न बनाकर उसके जीवन में महत्व रखने वाली औरत को लक्ष्य बनाते हैं. क्योंकि पुरुष के साथ हिंसा करने में वो शारीरिक रूप से टूटता है. मगर उसकी (चूंकि औरत को पुरुष की प्रॉपर्टी माना गया है) औरत के साथ सेक्शुअल हिंसा करने से उसको मानसिक चोट पहुंचेगी. उसकी इज्ज़त घटेगी. समाज में वो मुंह उठाकर चल नहीं पाएगा. इसलिए औरत का रेप करो. इससे बदला पूरा होगा. या यूं कहें कि बदला पूरा होने की प्रक्रिया पर पूर्ण विराम लगेगा.
हम पुरुषों के लिंग महज सेक्स ऑर्गन नहीं, हमारा पौरुष हैं. हमारा पौरुष इसे जबरन किसी योनि में घुसाकर ही स्थापित होगा.
लेकिन जब बदला औरत से लेना हो, तो भी रेप औरत का ही होता है. औरत का रेप किया जाए, इसके लिए कोई ख़ास गुनाह करने की जरूरत नहीं है. किसी का नुकसान करने की जरूरत नहीं है. औरत अगर एक आलू के बोरे की तरह एक ही जगह पड़ी रहे, तो भी उसका रेप हो सकता है. राजस्थान की भंवरी देवी ने तो फिर भी एक गुनाह किया था.
गुनाह: एक बाल विवाह को रोकना
इसका बदला लेने के लिए तथाकथित ऊंची जाति के पुरुषों ने तथाकथित नीची जाति की भंवरी देवी और उनके पति पर हमला किया. वो दोनों खेत में काम रहे थे. पुरुषों ने पहले उनके पति को पीटा. उन्हें बेहाल करने के बाद भंवरी देवी के पास गए. चूंकि भंवरी देवी औरत थीं, महज उन्हें पीटना इन पुरुषों को संतुष्टि नहीं देता. इसलिए उनका रेप किया गया.
कोई और औरत होती तो शायद चुप बैठ जाती. और आज से 25 साल पहले, जब रेप को औरत की ही गलती मानते थे, तब तो कोई औरत शायद आत्महत्या कर लेती. या खुद को घर की दीवारों में कैद कर लेती और समाज की भलाई के लिए सड़कों पर उतरना छोड़ देती.
मगर भंवरी देवी ने तय किया कि वो लड़ेंगी. मामला कोर्ट तक पहुंचा. और कोर्ट ने जो कहा, वो सुनकर विश्वास नहीं होता कि यही न्याय के ठेकेदार हैं. कोर्ट ने कुछ इस तरह की बातें कही थीं:
1. कोई पति चुपचाप खड़ा होकर अपनी पत्नी का रेप होते कैसे देख सकता है.
2. कोई ‘ऊंची जाति’ का व्यक्ति किसी ‘नीची जाति’ की ‘अशुद्ध’ औरत का रेप क्यों करेगा.
3. कोई 70 साल का वृद्ध रेप कैसे कर सकता है.
4. दो रिश्तेदार एक-दूसरे के सामने एक ही औरत से रेप कैसे कर सकते हैं.
5. अलग-अलग जाति के लोग एक साथ रेप कैसे कर सकते हैं.
जी हां, ये दलीलें कोर्ट ने दी थीं. ये सवाल भंवरी देवी पर उठाए गए थे. और ये तो कुछ ही बातें हैं. ये जजमेंट आधारहीन बातों से भरा पड़ा था. बहुत कोशिशों के बाद राजस्थान हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती भी दी गई. मगर बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले 22 सालों में महज एक बार केस की सुनवाई हुई है.
ऐसे सिस्टम में इन नाबालिग लड़कियों के गुनहगारों के साथ क्या होगा और कब तक, मालूम नहीं. फिलहाल आरोपियों को पकड़ लिया गया है. मगर कल को कोई कहे कि बेटियों को रेप होता देख कौन सा बाद अचेत पड़ा रहता है तो आश्चर्य नहीं होगा. यहां रेप के आरोप को छोड़कर हर चीज को आधार मिल जाता है. (thelallantoppp से)
– प्रतीक्षा पीपी
thelallantoppp@gmail.com
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