याकूब मेनन को फांसी मिली तो देवेन्द्र और सुनील जोशी आतंकियों को उम्रकैद क्यों ?



जयपुर की विशेष अदालत द्वारा 11 अक्टूबर 2007 को विश्व प्रसिद्ध हजरत ख्वाजा गरीब नवाज़ की दरगाह में हुए बम विस्फोट मामलें में जयपुर की विशेष अदालत द्वारा दिए गए फैसले पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए अंजुमन सैयद जादगान के पूर्व सचिव व खादिम सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि जब याकूब मेनन को आतंकवादी होने के कारण फांसी की सजा दी जा सकती है, तो फिर जिन दो आरोपियों को दोषी करार दिया गया उन्हें आजीवन कारावास की सजा से ही क्यों दंडित किया गया.

याद रहे बुधवार को एनआईए की विशेष अदालत ने 10 साल पुराने अजमेर दरगाह ब्लास्ट मामले में फैसला सुनाया. 8 मार्च को दोषी करार दिए गए भावेश , देवेन्द्र और सुनील जोशी को उम्र कैद की सजा सुनाई गयी. कोर्ट ने भावेश और देवेन्द्र को सेक्शन 120 बी के तहत अपराधित साजिश रचने , 295 ए के तहत जाबूझकर किसी धर्म के लोगो की भावनाए आहात करने और एक्सप्लोसिव सब्सटेंस एक्ट और अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट के तहत दोषी ठहराया था.


अंजुमन सैयद जादगान के पूर्व सचिव व खादिम सैयद सरवर चिश्ती ने फैसले के बाद कहा कि न्होंने वर्ष 2007 में दरगाह में हुए बम ब्लास्ट मामले की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. उन्होंने कहा कि फैसले से सभी खादिम समुदाय और मुस्लिम वर्ग व्यथित है. इस मामले में स्वामी असीमानन्द सहित मुख्य आरोपियों को बरी कर दिया है, जबकि वर्ष 2011 तक उनके खिलाफ सभी सबूत सामने आए थे.

चिश्ती ने कहा कि सत्ता बदलते ही एनआईए की जांच की दिशा भी बदल गई. उन्होंने कहा कि असीमानन्द का नाम अजमेर ब्लास्ट, मालेगांव ब्लास्ट व समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में भी आ चुका है. अजमेर दरगाह में 2007 में हुए ​विस्फोट मामले में जांच एजेंसियों ने स्वामी असीमानंद को मुख्य आरोपी बनाया था.



चिश्ती ने कहा कि उक्त मामले में अंजुमन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि मोदी के सत्ता में काबिज होते ही एनआईए पर दबाव बनाया गया जिससे चार्जशीट तक बदल दी गई. चार्जशीट के आधार पर ही न्यायालय ने फैसला किया है. (कोहराम से)



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