क्या डॉक्टर कफ़ील सरकारी ऑक्सीजन सिलिंडर चुरा रहे थे?
भाजपा और योगी आदित्यनाथ के समर्थक सोशल मीडिया पर ये आरोप लगा रहे हैं कि डॉ. कफ़ील अहमद गोरखपुर के सरकारी अस्पताल से ऑक्सीजन सिलिंडर चोरी करके अपने अस्पताल में भेज रहे थे. डॉ. कफ़ील वही शख़्स हैं जिनका ज़िक्र पहले यों आया कि उन्होंने गोरखपुर के उस सरकारी अस्पताल में जहाँ ६३ लोगों की मौत हो गई है, मरीज़ बच्चों को ज़िंदा रखने के लिए अपने ख़र्च पर ऑक्सीजन सिलिंडर मँगाया. पहले उनकी चारों ओर सराहना हुई लेकिन फिर आज मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने उनको उनके पद से हटा दिया. तफ़्तीश के मक़सद से अभी थोड़ी देर पहले मैंने गोरखपुर में पत्रकार मनोज सिंह से फ़ोन पर बात की. मनोज सिंह वही पत्रकार हैं जो ६३ लोगों की मौत के पहले से ख़बर लिख रहे थे कि ऐसा होने की पूरी संभावना बन रही है. साथ ही मैंने डॉ. अज़ीज़ अहमद से बात की जो गोरखपुर के नामी डॉक्टर हैं और ख़ुद अपना बड़ा अस्पताल चलाते हैं.
भाजपा और योगी आदित्यनाथ के समर्थक सोशल मीडिया पर ये आरोप लगा रहे हैं कि डॉ. कफ़ील अहमद गोरखपुर के सरकारी अस्पताल से ऑक्सीजन सिलिंडर चोरी करके अपने अस्पताल में भेज रहे थे. डॉ. कफ़ील वही शख़्स हैं जिनका ज़िक्र पहले यों आया कि उन्होंने गोरखपुर के उस सरकारी अस्पताल में जहाँ ६३ लोगों की मौत हो गई है, मरीज़ बच्चों को ज़िंदा रखने के लिए अपने ख़र्च पर ऑक्सीजन सिलिंडर मँगाया. पहले उनकी चारों ओर सराहना हुई लेकिन फिर आज मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने उनको उनके पद से हटा दिया. तफ़्तीश के मक़सद से अभी थोड़ी देर पहले मैंने गोरखपुर में पत्रकार मनोज सिंह से फ़ोन पर बात की. मनोज सिंह वही पत्रकार हैं जो ६३ लोगों की मौत के पहले से ख़बर लिख रहे थे कि ऐसा होने की पूरी संभावना बन रही है. साथ ही मैंने डॉ. अज़ीज़ अहमद से बात की जो गोरखपुर के नामी डॉक्टर हैं और ख़ुद अपना बड़ा अस्पताल चलाते हैं.
मनोज सिंह ने जो बताया वो चौंका देता है. उन्होंने कहा कि अस्पताल से सिलिंडर चोरी करने का सवाल ही नहीं उठता है क्योंकि अस्पताल के उस एंसिफ़लाइटिस वार्ड में जहाँ मौतें हुईं मरीज़ों को सीधे सिलिंडर से नहीं बल्कि पाइप के ज़रिए हर बिस्तर पर ऑक्सीजन पहुँचाई जाती है. मनोज ने कहा कि पहले ज़रूर ऑक्सीजन के सिलिंडर काम में लाए जाते थे लेकिन २०१४ में अस्पताल ने ये नया सिस्टम लगाया. डॉ. अज़ीज़ अहमद ने बताया कि उन पाइपों में ऑक्सीजन डालने के लिए ज़रूर सिलिंडर लगाए जाते हैं लेकिन वो बहुत बड़े सिलिंडर होते हैं और एक-एक को उठाने के लिए तीन से चार आदमियों की ज़रूरत पड़ती है. फिर, वो सिलिंडर अलग कमरे में लगाए जाते हैं और उनके रखरखाव वाले विभाग से डॉ. कफ़ील अहमद का कोई लेनादेना नहीं है. उन बड़े सिलिंडरों का अस्पताल में पूरा लेखाजोखा होता है और ये मानना मुश्किल है कि उनकी तस्करी सिलसिलेवार तरीक़े से हो रही थी और अब तक पकड़ी नहीं जा सकी थी. डॉ. अज़ीज़ अहमद ने ये भी बताया कि इसी विभाग के जानकारी देने के बाद ही डॉ. कफ़ील अहमद को पता पड़ा कि ऑक्सीजन ख़त्म हो रही है.
जहाँ तक उस आरोप का सवाल है कि डॉ. कफ़ील सरकारी डॉक्टर होने के बावजूद ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे थे तो डॉ. अज़ीज़ अहमद ने कहा कि डॉ. कफ़ील अहमद अस्थायी नौकर हैं, जिसे ad hoc appointee कहा जाता है, और ऐसे डॉक्टरों पर प्राइवेट प्रैक्टिस करने की पाबंदी नहीं है क्योंकि वो अस्थायी हैं और कभी भी निकाले जा सकते हैं.
अजित साही वरिष्ठ पत्रकार है.
Varun Shailesh, लिखते है बच्चों की मौत तो समझ में आती है कि वह सांस्थानिक हत्या है, लेकिन उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों को क्या हो गया है। लकवा मार गया है? सपा, बसपा और कांग्रेस सहित दूसरी पार्टियों में अगर थोड़ी भी संवेदना होती तो योगी को प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए 24 के बजाय दो घंटे में मजबूर कर दिए होते। सच में ये पार्टियाँ जन विरोधी हो गई हैं। संवेदना शून्य। बढिय़ा है….एसी में बैठकर प्रेस रिलीज जारी करते रहिए, ANI को बाइट देते रहिए।अगर सब कुछ ऐसा ही रहा तो यकीन मानिए एक दिन इस काम से भी आप लोगों को छुटकारा मिल जाएगा।
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