मैं नास्तिक हूँ भगवान या खुदा को नहीं मानता। पर जब डॉ. कफील अहमद जैसे लोगों को देखता हूँ तो मानने का दिल करता है ,
सच में ईश्वर का भेजा फरिश्ता ही कह सकते है उन्हें। यहाँ फेसबुक में डॉ कफील अहमद के बारे में पढ़ पढ़कर बार -बार आँखे डबडबा रही है कि इस इंसान ने अकेले वहां बच्चों की जान बचाने कैसे संघर्ष किया। ऐसे लोगों को मेरी उम्र लग जाये। यहाँ लोग देश बनने के बाद से रोज मुसलमानों का देशभक्ति टेस्ट करते हैं। लेकिन कई मुस्लिम समय -समय पर अपनी जान देकर या कुर्बानी देकर बताया है कि उनका अल्लाह उन्हें हिन्दू -मुसलमान में फर्क करना नहीं सिखाया।
दूसरी तस्वीर मुंबई के भाई तौसीफ शेख की है जो 2015 में मुंबई के पोवाई में एक चाल में लगी भयानक आग से वहां रहने वाले हिन्दू भाइयों की जान बचाने अपनी जान की बाजी लगा दिया। वे छह जिंदगी बचा चुके थे और सातवें को बचाते खुद की जान गंवा दिया। तीसरी तस्वीर डॉक्टर साहब फ़ारसी की है। मुस्लिमों को आतंकवादी साबित करने के जल्दबाजी में सरकार ने इन्हें भी आतंकवादी बता 5 साल के लिए जेल में डाल दिया था।
उनको 8 सितंबर, 2006 में मालेगांव के मुशवरत चौक पर स्थित हमिदिया मस्जिद के पास हुए बम ब्लास्ट के सिलसिले में जेल भेजा गया था। मालेगांव बम ब्लास्ट के आरोप में 9 मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया गया था। डॉ. फारसी भी इनमें से एक थे। बाद में एनआईए की जांच में पता चला कि ब्लास्ट तो दरअसल एक हिंदू चरमपंथी संगठन ने करवाया था। बाद में वे बेगुनाह साबित हुए।
पिछले दिनों एक ब्लास्ट में गंभीर रूप से घायल एक गड़रिए और किसान की इस संवेदनशील डॉक्टर ने जान बचाई । जेल से बाहर आने के बाद डॉ. फारसी को जॉब मिलना मुश्किल हो गया था। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने मस्जिद में नमाजें आयोजित कीं, यहां तक कि भेड़ें भी चराईं। यह उदहारण आपको इसलिए दे रहा हूँ कि आपको शर्म आ सके। अबकी बार किसी मुसलमान के ईमान पर शक किया तो इसे पढ़ लेना।
– Vikram Singh Chauhan
CITY TIMES
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