loading…
सोशल डायरी ब्यूरो
आये दिन मुसलमानों के खिलाफ देशद्रोही होने का आरोप वह लोग लगाते आये हैजिन्होंने जंग-ए-आजादी में अंग्रेजो के सामने घुटने टेके, माफ़ी मांगी और फांसी से छुटकारा पा लिए फिट भी स्वातंत्र्यवीर हो गए.
8 अगस्त 1857 को पटना में तीसरा ट्रायल होता है जिसमे औसफ़ हुसैन और छेदी ग्वाला को फांसी पर लटका दिया जाता है, शेख़ नबी बख़्श, रहमत अली व दिलावर को आजीवन कारावास की सज़ा होती है और ख़्वाजा आमिर जान को 14 साल की जेल होती है।
इससे पहले पटना में अंग्रेजी हुकूमत ने 7 जुलाई, 1857 को पीर अली के साथ घासिटा, खलीफ़ा, गुलाम अब्बास, नंदू लाल उर्फ सिपाही, जुम्मन, मदुवा, काजिल खान, रमजानी, पीर बख्श, वाहिद अली, गुलाम अली, महमूद अकबर और असरार अली को बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया था।
वहीं 13 जुलाई 1857 को दूसरा ट्रायल होता है जिसमे डोमेन, कल्लू खान और पैग़म्बर बख़्श को फांसी पर लटका दिया जाता है, अशरफ़ अली को 14 साल की जेल होती है।
इन तमाम लोगों पर इलज़ाम था के इन्होने पीर अली ख़ान की क़यादत में 3 जुलाई 1857 को पटना में बग़ावत का झंडा बुलंद कर कई अंग्रेज़ो की जान ली थी।
loading…
CITY TIMES