मथुरा के विशम्भरा गांव में 2 अगस्त 2017 को दिन में 2-3 बजे साहून से मुठभेड़ के नाम पर कासिम नाम के युवक को पुलिस ने उसका साथी बताते हुए मुठभेड़ में मारने का दावा किया. दूसरी तरफ गांव वालों ने उसे निर्दोष बताते हुए आटा चक्की चलाने वाला बताया और पुलिस पर मुकदमा दर्ज करने के लिए सड़क पर आए. इससे साफ होता है कि पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ का आरोप गांव वाले लगा रहे हैं. और अब पुलिस समझौते का दबाव बना रही है.
वहीं 3 अगस्त को आज़मगढ़ के मेंहनगर क्षेत्र में जयहिंद यादव के मुठभेड़ पर भी इसी तरह सवाल है की उसे कई दिन पहले ही पुलिस ने उठा लिया था. ठीक इसी तरह 29 जुलाई को शामली जिले के कैराना थाना क्षेत्र में नौशाद और सरवर के एनकाउंटर पर बहुतेरे सवाल हैं.
याद रहे कि ये वही कैराना है जहां के हिन्दुओं के झूठे पलायन की झूठी सूची के जरिए मुज़फ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा के आरोपी रहे भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने मुसलमानों के आंतक का माहौल बना पूरे देश में साम्प्रदायिकता भड़काई. उसमें भी उन्होंने यहां के स्थानीय मुस्लिम अपराधियों को दोषी ठहराया था. और अब एनकाउंटर से निश्चित तौर पर सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं साम्प्रदायिक हिन्दू जन मानस को संतुष्ट करने के लिए तो ये नहीं हो रहा है.
सबसे अहम सवाल रोज आ रही खबरों से उठता है कि आखिर इस दौर में जो गिरफ्तारियां हो रही हैं उसमें अधिकतर मुस्लिम और यादव की ही क्यों हैं. हम बिल्कुल इस बात को नहीं कहते हैं कि यादव या मुस्लिम अपराधी नहीं होता. पर जिस तरह से अपराध मुक्त प्रदेश के दावे के साथ जो गिरफ्तारियां या एनकाउंटर किए जा रहे हैं वो सियासी ऑपरेशन मालूम पड़ता है.
क्यों कि दरअसल हमारे समाज में अपराध एक सच्चाई है और उसका राजनीतिक होना भी सच्चाई है. ये अपराधी चाहे वो किसी जाति के हों ये अपने क्षेत्रीय जातीय क्षत्रपों के सरंक्षण में फलते-फूलते हैं. और विपक्ष की आंखों की किरकिरी बनते हैं क्यों कि यही निचले स्तर का केन्द्रक होता है जो राजनीतिक दबंगई कर अपने नेता की निचले स्तर पर हनक बनाता है. यूपी में बड़े दिनों बाद सपा-बसपा के बाद भाजपा को सत्ता हासिल हुई है. ये मुठभेड़-गिरफ्तारियां इस तरफ इशारा करती हैं कि वो अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति, ऐसे ऑपरेशन के जरिए कर रहे है.
पुलिस को हत्या का लाइसेंस मिल गया है ऐसी फर्जी मुठभेड़ें पिछली भाजपा सरकार में राजनाथ सिंह ने भी करवाई थी.